पालमपुर शहर की चीखें

By: Apr 22nd, 2024 12:05 am

नंगे दराट पर खून की धार जिस सार्वजनिक स्थान पर फूटी, वहां समाज, संस्कृति, शासन-प्रशासन और कानून व्यवस्था की नंगई सामने आ गई। पालमपुर शहर की चीखें उस वक्त शिमला तक जरूर पहुंची होंगी, जब असहाय बेटी एक दरिंदे के सामने जान बचाने की कोशिश कर रही थी। कोशिश तो धीरा के गांव में उस औरत ने भी की होगी, जिसकी एक दिन पहले गला रेत कर हत्या कर दी थी। हैरानी यह कि पालमपुर बस स्टैंड जैसी व्यस्त जगह में भी अपराध की टोह में एक बेटी पर घातक प्रहार इसलिए हो गए, क्योंकि कानून व्यवस्था कानों में रुई और आंखों पर काली पट्टी बांध कर अमन-चैन की सूचना देने में मशगूल है। इसी पालमपुर के व्यवसायी ने पुलिस महकमे के शिखर से हर स्रोत तक की शिकायत जब की थी, तो यह एक बुरा अनुभव मान कर औपचारिक कार्रवाई बन गई। मामला डीजीपी और एसपी की ट्रांसफरों तक सिमट कर अदालती हो गया, जबकि अंधी आंखों को भी ऐसे साक्ष्य मिल रहे हैं कि पुलिस व्यवस्था की तासीर में अब खोट उभर रहा है या अब ढर्रा बदलना पड़ेगा। अपराध निरंकुश व बहरूपिया बन कर खतरे बढ़ा रहा है, लेकिन हम राजनीतिक राजाओं और आकाओं की खिदमत में भूल गए कि कानून की असली चुनौतियां हैं कहां। कहीं कांग्रेस छोड़ चुके पूर्व विधायकों को केंद्रीय सुरक्षा बलों के पहरे मिल रहे हैं, तो कहीं सरकार के ओहदेदारों की प्रदेश पुलिस हिफाजत में लगी है।

होती होगी पुलिस अलर्ट जब सत्ता के काफिलों में कलगियों की रक्षा की जाती है या सारा अमला जब बैठकें करता होगा, तो कानून के हर पहलू को जगाया जाता होगा, वरना टोटे-टोटे लाशें और सूटा-सूटा नशा हमारे परिवेश में खतरे की घंटियां बजा रहा है। राजधानी शिमला तक चिट्टे की सप्लाई अगर कूरियर से हो रही है, तो इस नेटवर्क की किलेबंदी में न जाने कितने कसूरवार हैं और तब हम अपनी युवा पीढ़ी को बचाएंगे कैसे। यकीनन दरिंदे के हाथों से कुछ दिलेर लोगों ने बेटी बचा ली, वरना कोसने के सिवा क्या मिलता। आश्चर्य है कि कुछ वर्ष पूर्व गुडिय़ा कांड की सलाखों में दर्ज और अपमानित कानून व्यवस्था ने आज तक कुछ ऐसा नहीं किया कि अपराध बार-बार इस तरह गले पड़ रहा होता। कानून व्यवस्था के वर्तमान में सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक पक्ष को आज के परिप्रेक्ष्य में गंभीरता से लेना होगा। शहरी, ग्रामीण व हिमाचल के सीमांत क्षेत्रों की कानून व्यवस्था के पहरे सशक्त करने की दृष्टि से पुलिस बंदोबस्त की नई व्याख्या जरूरी है। प्रदेश के कुछ जिलों व शहरों की कानून व्यवस्था को पुख्ता करने के लिए पुलिस आयुक्तालयों की स्थापना के साथ ग्रामीण, ट्रैफिक, पर्यटन व सीमांत क्षेत्रों के लिए अलग से इंतजाम करने पड़ेंगे।

शहरी, ट्रैफिक व पर्यटन पैट्रोलिंग के लिए सख्त निर्देश व आवश्यक नियुक्तियां जरूरी हैं। पालमपुर के दराट कांड में अगर बिटिया चीख रही थी, तो उसकी चीखें पुलिस व्यवस्था तक क्यों नहीं पहुंची। हम भाईचारे में कानून-व्यवस्था को कब तक चलाएंगे। शहरों में बाइपास होते हुए भी अगर ट्रैफिक पुलिस का नियंत्रण सही से निर्देशित नहीं करता तो इसका शायद ही कोई समाधान हो। ट्रैफिक के बीच युवा बाइकर जिस तरह परिवहन को असुरक्षित बना रहे हैं, वहां पुलिस महकमे का एक्शन है कहां। पर्यटन, समाज और सडक़ की भीड़ अगर अनियंत्रित छोड़ दी जाए, तो कानून के हाथ-पांव काटने के लिए कोई न कोई दराट चला देगा। पालमपुर के घटनाक्रम से कानून-व्यवस्था, समाज और पुलिस प्रशासन को अनेक सबक मिल रहे हैं। ऐसे में पालमपुर में पीडि़त बेटी को बचाती हुई जो लडक़ी बहादुरी से कर्म की नई परिभाषा लिख पाई, उसके लिए अभिभावकों को सलाम।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App