हिमाचल की खेती में क्रांति लाएगी यह खाद

By: Apr 19th, 2024 12:06 am

आईआईटी मंडी का किसानों को तोहफा; उपज बढ़ेगी, पर जमीन-पानी को नहीं पहुंचेगा नुकसान

दिव्य हिमाचल ब्यूरो-मंडी

आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने स्थायी खेती के लिए बहुक्रियाशील स्मार्ट माइक्रोजेल का विकास किया है। इससे उर्वरक धीरे-धीरे अब भूमि में खुलेंगे और इससे न सिर्फ उत्पादक क्षमता बढ़ेगी बल्कि भूमि और भूजल को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा। इस माइक्रोजेल को विस्तारित अवधि में नाइट्रोजन एन और फास्फोरस पी उर्वरकों की धीमी रिहाई के लिए तैयार किया गया है। जो पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए फसल पोषण को बढ़ाने के लिए सफल सिद्ध हुए हैं। इस व्यापक शोध के निष्कर्ष अमरीकन केमिकल सोसायटी के प्रतिष्ठित जर्नल एसीएस एप्लाइड मैटेरियल्स एंड इंटरफेसेस में प्रकाशित हुए हैं। शोध कार्य का नेतृत्व डा. गरिमा अग्रवाल ने अपनी टीम के साथ किया। इसमें स्कूल ऑफ केमिकल साइंसेज, आईआईटी मंडी से अंकिता धीमान, पीयूष थापर और डिम्पी भारद्वाज शामिल हैं। अनुसंधान को विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड भारत सरकार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित किया गया था।

आईआईआईटी मंडी की डा. गरिमा अग्रवाल सहायक प्रोफेसर स्कूल ऑफ केमिकल साइंसेज का कहना है कि जैसे-जैसे वैश्विक आबादी 2050 तक अनुमानित दस बिलियन की ओर बढ़ेगी, तो खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाएगा। पारंपरिक नाइट्रोजन एन और फ ॉस्फ ोरस पी उर्वरकों की वजह से भूमि व भूजल को नुकसान भी पहुंचता है। इसके साथ ही इनके अवशोषण दर भी काफी कम है। उन्होंने कहा कि यह माइक्रोजेल पौधों के लिए फॉस्फोरस के संभावित स्रोत के रूप में काम करते हैं और लागत प्रभावी, बायोडिग्रेडेबल और पर्यावरण के अनुकूल हैं। यह प्राकृतिक पॉलिमर से बना है। इसे मिट्टी में मिलाकर या पौधों की पत्तियों पर छिडक़ कर लगाया जा सकता है। मक्के के पौधों के साथ हाल के अध्ययनों से पता चला है कि हमारा फ ॉर्मूलेशन शुद्ध यूरिया उर्वरक की तुलना में मक्के के बीज के अंकुरण और समग्र पौधों के विकास में काफ ी सुधार करता है। नाइट्रोजन और फ ास्फोरस उर्वरकों की यह निरंतर रिहाई उर्वरक के उपयोग में कटौती करते हुए फ सलों को बढऩे में मदद करती है।


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