पहाड़ में किसका जोर… कौन कहां मजबूत, कहां कमजोर

By: Apr 16th, 2024 12:08 am

प्रदेश में लोकसभा के साथ विधानसभा उपचुनाव के लिए सियासी दलों की कसरत शुरू

राकेश शर्मा — शिमला

सियासी ज्योतिष में नेताओं के ग्रह-चाल के साथ अंकों के जोड़ जमा की कसरत भी शुरू हो गई है। हिमाचल में चुनाव के लिहाज से बेहद शुरुआती माहौल है और यहीं से दोनों राजनीतिक दलों को जीतने की तैयारी भी करनी है। चारों लोकसभा सीटों पर जहां कांग्रेस और भाजपा के मजबूत पक्ष हैं, तो कई कमजोरियां भी हैं जिन पार्टी को सुधार की जरूरत है। कांगड़ा और मंडी संसदीय क्षेत्रों में भाजपा और कांग्रेस में कड़ी टक्कर होने के आसार हैं, जबकि कांग्रेस शिमला संसदीय क्षेत्र में अपनी मजबूत पकड़ बनाने का प्रयास कर रही है। हालांकि कांगड़ा में कांग्रेस ने अभी उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है और पार्टी को धर्मशाला विधानसभा क्षेत्र में भी बड़ी अग्निपरीक्षा देनी है, लेकिन शिमला संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस के लिए मैदान पूरी तरह से खुला है। इस सीट पर कुल 17 विधायकों में से 13 कांग्रेस के हैं।

बड़ी बात यह है कि पांच मंत्री और तीन सीपीएस भी शिमला से ही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के समय से ही शिमला में कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक रहा है। वहीं, बीते दो लोकसभा चुनाव में यहां मोदी लहर का असर जरूर देखने को मिला है, लेकिन इस बार स्थिति अनुकूल होने के बाद कांग्रेस मोदी लहर को शिमला तक पहुंचने में कैसे रोक पाती है, यह देखने वाली बड़ी बात होगी। बहरहाल, प्रदेश सरकार के लिए लोकसभा चुनाव जीतने के साथ ही सरकार को बचाना भी एक चुनौती है, तो वहीं भाजपा की साख भी दांव पर लगी है।

शिमला में कांग्रेस का पलड़ा थोड़ा भारी

धरातल के आंकड़ों की परख करें तो शिमला का चुनाव सबसे बड़ा होने वाला है। यहां अभी तक का अंकगणित पूरी तरह से कांग्रेस के खाते में है। मौजूदा सरकार में सबसे ज्यादा ओहदेदार इसी संसदीय क्षेत्र से हैं। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री समेत 11 नेताओं का मंत्रिमंडल है और इनमें से पांच मंत्री शिमला संसदीय क्षेत्र से ही हैं। इसके अलावा तीन मुख्य संसदीय सचिव भी इसी लोकसभा में हैं। सरकार ने हाल ही में श्रीरेणुकाजी से विधायक विनय कुमार को विधानसभा उपाध्यक्ष बनाया है, जबकि सरकार में बड़े पदों पर हुई नियुक्तियां भी ज्यादातर शिमला संसदीय क्षेत्र से ही की गई हैं। आंकड़ों की बात करें तो शिमला संसदीय क्षेत्र की 17 विधानसभा सीटों में से 13 कांग्रेस के पास हैं और चार भाजपा के पास। यहां कांग्रेस हर लिहाज से अभी तक भाजपा पर भारी है। हालांकि प्रचार शुरू होने के बाद स्थिति कितनी बदलती है, यह आने वाले दिनों में साफ हो पाएगा। बहरहाल प्रदेश में होने वाले चुनावों के लिए दोनों दलों ने कमर कस ली है। इसके लिए बूथ स्तर पर रणनीति बनाई जा रही है।

मंडी संसदीय क्षेत्र में कांटे की टक्कर

मंडी में चार विधानसभा सीटों पर कांग्रेस और 12 पर भाजपा काबिज है। पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सराज से सबसे बड़े अंतर से चुनाव जीते हैं। अकेले मंडी जिला की बात करें तो यहां धर्मपुर की सीट को छोडक़र अन्य सभी भाजपा के पास ही हैं, लेकिन लोकसभा में धर्मपुर हमीरपुर संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। भाजपा ने यहां से कंगना रणौत को टिकट दी है, जबकि कांग्रेस ने पीडब्ल्यूडी मंत्री विक्रमादित्य सिंह को मैदान में उतारकर इस मुकाबले को रोचक बना दिया है। मंडी सीट पर ही लाहुल-स्पीति विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव होने हैं। यह सीट पहले कांग्रेस के पास थी। इस समय कांग्रेस मंडी में मनाली, कुल्लू, रामपुर और किन्नौर में काबिज है।

कांगड़ा में धर्मशाला ज्यादा जरूरी

कांगड़ा में 17 विधानसभा क्षेत्र हैं। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां 12 सीटें जीती थीं, लेकिन इनमें से अब धर्मशाला में उपचुनाव हो रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस की एक सीट यहां भी कम हुई है। विधानसभा चुनाव के समय भाजपा को कांगड़ा में बड़ा झटका लगा था। पार्टी यहां से महज पांच ही सीटें जीत पाई थी। अब कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में लोकसभा के साथ ही पार्टी को धर्मशाला की सीट वापस लेने के लिए विधानसभा में भी ताकत झोंकनी पड़ रही है। यहां से भाजपा ने सुधीर शर्मा को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस की तरफ से अभी तक उम्मीदवार का फैसला नहीं हो पाया है। कांगड़ा में कांग्रेस की मौजूदा स्थिति भाजपा से बेहतर है। यहां से दो मंत्री, पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष, दो सीपीएस सरकार और एक डिप्टी चीफ व्हिप सरकार दे चुकी है।

हमीरपुर में कांग्रेस को नुकसान

हमीरपुर में भाजपा और कांग्रेस दोनों बराबरी पर हैं। यहां बगावत के बाद कांग्रेस के पास अब संसदीय क्षेत्र में छह विधायक बचे हैं। पार्टी से चार विधायकों ने बगावत की है, तो एक निर्दलीय विधायक भी भाजपा के साथ नई पारी की शुरुआत की तैयारी में है। हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा उपचुनाव होने हैं। इनमें सुजानपुर, हमीरपुर, गगरेट और बड़सर शामिल हैं। राज्यसभा चुनाव से पहले यहां कांग्रेस का पलड़ा भारी था। कांग्रेस ने 17 में से 10 सीटें जीती थीं, जबकि भाजपा छह पर सिमट गई थी, लेकिन अब हालात बदल गए हैं।


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