होटल इकाइयों के किरदार बदलो

By: May 4th, 2024 12:05 am

हिमाचल में पर्यटन का ताज ओढ़े एचपीटीडीसी तथा एचआरटीसी के घाटों को समझें, तो यह राज्य किस क्षेत्र में आत्मनिर्भर होगा। आश्चर्य यह कि 55 होटलों का संचालन कर रहा हिमाचल पर्यटन निगम 31 इकाइयों की वित्तीय लाज नहीं बचा पा रहा। ताज्जुब यह कि चिंतपूर्णी, ज्वालाजी, चंबा, बिलासपुर, कुल्लू-मनाली, शिमला, धर्मशाला-मकलोडगंज व औद्योगिक क्षेत्र परवाणू तक के होटल घाटा पैदा कर रहे हैं। बावजूद इसके हमारे पास एशियन विकास बैंक से इतना ऋण तो मिल ही जाएगा कि आने वाले वर्षों में कुछ और राजनीतिक इकाइयां खोल लेंगे। इससे क्या फर्क पड़ता कि हिमाचल में करीब पौने दो करोड़ सैलानी आ रहे हैं या आगामी लक्ष्य पांच करोड़ का है। आश्चर्य यह कि बढ़ते सैलानी निजी वोल्वो बसों में बैठकर प्राइवेट होटलों को अधिमान दे रहे हैं, जबकि एचपीटीडीसी व एचआरटीसी के पास बेहतरीन स्टाफ तथा उच्च काबिलीयत के अधिकारियों के अलावा बेहतरीन साइट्स व संपत्तियां हैं।

मुख्य तौर पर न योजनाओं में व्यावसायिक दृष्टि है और न ही प्रबंधन में इस तरह के सरोकार हैं, जो पल-पल बदलते उद्योग की जरूरतें समझ सकें। उदाहरण के लिए धर्मशाला की पांच इकाइयों में से तीन घाटे पर हैं, तो यह करामात निठल्लेपन और उबाऊ ठहराव की है। महामहिम दलाईलामा के प्रवास, प्रवासी तिब्बती सरकार के मुख्यालय के अलावा अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम ने धर्मशाला में हर बड़ी होटल शृंखला को अपनी इकाई चलाने का मौका दिया, लेकिन हिमाचल पर्यटन निगम अपनी बूढ़ी लीलन, क्रॉकरी और थकी हुई अधोसंरचना से निजात नहीं पाना चाहता, नतीजतन जब सारे निजी होटल बुक हो जाएं तो सरकारी इकाइयों में स्थान ढूंढा जा सकता है। कब तक सरकारी होटलों को कुल्लू-मनाली, शिमला या मकलोडगंज में भी घाटे की माला पहननी पड़ेगी। घाटे के होटलों की शृंखला बनाने के बजाय इनकी उपयोगिता बढ़ाने का सोचना होगा। मसलन परवाणू या बीबीएन में पर्यटन निगम की इकाइयां वो कमाल कर सकती हैं, जिसके लिए ये औद्योगिक शहर चंडीगढ़ या पंचकूला का रुख करते हैं। प्रदेश के हर शहर और कस्बे में पर्यटन निगम वेडिंग जोन, कान्फ्रेंस एरिया, शॉपिंग परिसर तथा वे साइड फूड मार्ट स्थापित करे, तो हंगामा हो सकता है। पर्यटन निगम को हाईवे पर्यटन की अधोसंरचना स्थापित करके प्रदेश के एचपीएमसी, मिल्क फेडरेशन व हथकरघा निगम के साथ उपहार तथा खानपान के केंद्रों की लाभकारी उपस्थिति दर्ज कर सकता है। हैरानी यह कि धार्मिक स्थलों की इकाइयां या यात्री निवास जैसे बजट होटल भी घाटे में हैं। कारण यही कि इन परिसरों को कमजोर प्रदर्शन के लिए छोड़ दिया गया है। हिमाचल प्रदेश परिवहन निगम की अंतरराज्यीय बसों की बुकिंग के साथ एचपीटीडीसी के होटलों की बुकिंग जोड़ दी जाए, तो नित नए रूट शुरू करने के साथ सरकारी होटलों की आक्यूपेंसी भी बढ़ सकती है। जिस दिन एचआरटीसी व पर्यटन निगम का एमडी एक ही अधिकारी होगा, हिमाचल आने वाले यात्री पर्यटक बन जाएंगे।

कायदे से हिमाचल को अपने दर्जनों बस अड्डों को पर्यटक, मनोरंजन एवं सिटी सेंटर तथा महापार्किंग स्थलों के रूप में विकसित करना होगा ताकि हर पर्यटक वहां पहुंचकर सर्वप्रथम सरकारी होटल इकाइयों का किरदार बने। इसमें दो राय नहीं कि हिमाचल पर्यटन निगम के होटलों का खाना सबसे बेहतरीन व प्रदेश की ब्रांडिंग कर रहा है, लेकिन चाहकर भी पर्यटक को हम यह संदेश नहीं दे पा रहे कि हिमाचली थाली के मायने क्या हैं। एचपीटीडीसी अगर शिद्दत से हिमाचली थाली, सिड्डू, कचौरी व क्षेत्रीय खाद्य व्यंजनों की महफिल सजा दे, तो सारे घाटे सैलानी का पेट निगल लेगा। इसके लिए व्यासायिक नजरिए की जरूरत ही नहीं जबरदस्त प्लानिंग की जरूरत है और यह तब होगा जब एडीबी फंडिड परियोजनाओं में राजनीतिक दुरुपयोग नहीं होगा। कम से कम पर्यटक व धार्मिक स्थलों में सरकारी होटलों की इज्जत बचानी चाहिए, वरना पहले भी कई कैफे व होटल सरकारी पैसे को जाया कर चुके हैं।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App