गीता रहस्य

By: May 4th, 2024 12:14 am

स्वामी रामस्वरूप
उसी प्रकार प्रलय सब स्थूल अर्थात ब्रह्मांड के रचे हुए पदार्थों को निगल जाती है अर्थात प्रलयावस्था में समस्त संसार के पदार्थ अपना रूप समाप्त करके प्रकृति के स्वरूप में बदल जाते हैं और प्रकृति तथा जीवात्माएं निराकार परमेश्वर का आश्रय
लेती हैं…

गतांक से आगे…
संपूर्ण संसार के रहने का आश्रय/ स्थान है। वह (विष्णु:) सर्वव्यापक और संसार का अंतर्यामी परमेश्वर है। अगले मंत्र 19 का भाव है कि परमेश्वर ने पृथ्वी आदि लोक रचे और जीवात्मा के शरीर रचे हैं। यदि ईश्वर रचना नहीं करता तो कोई भी प्राणी किसी भी कार्य को करने में समर्थ नहीं होता। प्रस्तुत भगवद्गीता श£ोक पर जगन्निवास पद के विषय में और अधिक ज्ञान प्राप्त करें कि यजुर्वेद मंत्र 23/52 में कहा कि हे जीव (पुरुष:) वह निराकार पूर्ण परमात्मा (पंचसु) पृथ्वी, जल आदि पांच भूतों के (अंत:) मध्य में (आविवेश) अपने स्वाभाविक सर्वव्यापक गुण के कारण इनमें प्रवेश किए हुए है।

अर्थात संसार के कण-कण में व्यापक है। (तानि) वह पांच भूत एवं तन्मात्राएं (पुरुष) उस पूर्ण परमात्मा के (अंत:) बीच में (अर्पितानि:) स्थापित हैं अर्थात यह निराकार परमेश्वर ही इनका आश्रय स्थान है। भाव यह है कि परमेश्वर से बढक़र न कोई था, न कोई है और न कोई होगा। अगले मंत्र 23/54 का भाव है कि जैसे रात्रि प्रकाश को निगल जाती है अर्थात रात्रि में सूर्य का प्रकाश नहीं रहता।

उसी प्रकार प्रलय सब स्थूल अर्थात ब्रह्मांड के रचे हुए पदार्थों को निगल जाती है अर्थात प्रलयावस्था में समस्त संसार के पदार्थ अपना रूप समाप्त करके प्रकृति के स्वरूप में बदल जाते हैं और प्रकृति तथा जीवात्माएं निराकार परमेश्वर का आश्रय लेती हैं। ऋग्वेद मंडल10 सूक्त 129 के अनुसार प्रलयावस्था में यह दिखाई देने वाली रचना अर्थात सूर्य, चंद्रमा, आकाश, प्राणियों के शरीर, दिन-रात्रि आदि व्यवहार समाप्त हो जाता है, कुछ भी नहीं रहता और प्रलय काल समाप्त होने के पश्चात ईश्वर की शक्ति से पुन: सृष्टि रचना प्रारंभ हो जाती है। – क्रमश:


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