SC बार एसोसिएशन में महिलाओं की हिस्सेदारी एक तिहाई

By: May 3rd, 2024 12:08 am

महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक और कदम आगे बढ़ाया

दिव्य हिमाचल ब्यूरो — नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक क्षेत्र में महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक और कदम आगे बढ़ाया है। सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) में एक तिहाई महिला आरक्षण लागू करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने बीडी कौशिक के मामले में कोर्ट के पुराने फैसले को स्पष्ट करते हुए ये निर्देश दिए हैं। बेंच के निर्देश के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के ट्रेजरी यानी कोषाध्यक्ष का पद महिला के लिए आरक्षित रहेगा। इसके अलावा एसोसिएशन की कार्यसमिति के नौ में से तीन सदस्यों के पद महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगे। बता दें कि अब एससीबीए के पदाधिकारियों अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष में कोषाध्यक्ष पद महिलाओं के लिए आरक्षित रहेगा।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन में सीनियर एडवोकेट्स के लिए बनी सीनियर कार्यकारिणी के छह सदस्यों में से दो और सामान्य कार्यकारिणी के नौ सदस्यों में से तीन सदस्य के पद महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे। कोर्ट ने कहा कि उम्मीदवारों की योग्यता और शर्तों में आवश्यक बदलाव व सुधार की बाबत आठ प्रस्ताव आए, लेकिन वे नाकाम हो गए। इनके अलावा एसोसिएशन का सदस्य बनने के लिए फीस और चुनाव लडऩे के लिए उम्मीदवार की जमानत राशि को लेकर भी लाए गए प्रस्ताव 30 अप्रैल को आयोजित स्पेशल जनरल बॉडी मीटिंग में गिर गए. ऐसे में कोर्ट ने महसूस किया कि नियम, योग्यता, शर्तों और फीस को लेकर निर्णय लेने को जरूरत है, क्योंकि इन चीजों को दशकों तक लटकाए नहीं रखा जा सकता। समय रहते सुधार और बदलाव जरूरी हैं।

16 मई को होगा एससीबीए का चुनाव

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) का चुनाव 16 मई को होना है, जबकि 18 मई को चुनाव के रिजल्ट सामने आएंगे। इस बार के चुनाव में ये सारे बदलाव देखने को मिलेंगे। चुनाव में महिलाओं की भागीदारी अधिक नजर आने वाली है।

गैर-जमानती वारंट आम तौर पर जारी नहीं किया जाना चाहिए

दिव्य हिमाचल ब्यूरो — नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक हालिया फैसले में कहा है कि गैर-जमानती वारंट आम तौर पर जारी नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि आरोपी पर कोई संगीन आपराधिक आरोप न हो और उसके कानूनी प्रक्रिया को प्रभावित करने या सबूतों से छेड़छाड़ की आशंका न हो। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि हालांकि गैर-जमानती वारंट जारी करने के बारे में कोई विस्तृत दिशा-निर्देश नहीं है, शीर्ष अदालत ने कई मौकों पर टिप्पणी की है कि गैर-जमानती वारंट तब तक जारी नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि आरोपी पर कोई संगीन आपराधिक आरोप न हो और उसके कानूनी प्रक्रिया को प्रभावित करने या सबूतों से छेड़छाड़ अथवा उसे नष्ट करने की आशंका न हो।

खंडपीठ में न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी भी शामिल थे। शीर्ष अदालत ने सम्मन के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि इस संबंध में कानून में स्थिति स्पष्ट है कि गैर-जमानती वारंट आम तौर पर जारी नहीं किया जाना चाहिए और किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को तब तक प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि समाज और राष्ट्र के व्यापक हित में ऐसा करना जरूरी न हो।


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