रेल पर सिरमौर की झूठी सवारी कहीं चुनावों में न पड़ जाए भारी

By: May 27th, 2024 12:08 am

लोकसभा में मोदी सरकार को बड़ी चुनौती, डबल इंजन सरकार में भी ट्रेन का सपना अधूरा

सूरत पुंडीर-नाहन

सिरमौर को रेल के मुद्दे पर सवार होकर लगातार दिल्ली पहुंचे सांसदों को मोदी सरकार आज तक रेल से नहीं जोड़ पाई है। ऐसे में पहली जून को होने जा रहे लोकसभा चुनाव में भाजपा का संकल्प पत्र कहीं न कहीं सिरमौर में जनता के गले से नहीं उतर पाएगा। 2014 से 2024 तक लगातार केंद्र में काबिज रहे शिमला संसदीय क्षेत्र के सांसद सिरमौर को रेल नहीं दिलवा पाए। ऐसा नहीं है कि सांसद रहे वीरेंद्र कश्यप तथा मौजूदा सांसद सुरेश कश्यप सिरमौर को रेल की मांग को लेकर चुप रहे। बल्कि दोनों सांसदों ने कई बार केंद्र सरकार के समक्ष सिरमौर को रेल दिलाए जाने का मुद्दा उठाया। बावजूद इसके केंद्र की मोदी सरकार पूर्व में हुए चुनाव में भारी बहुमत लेने के बावजूद सिरमौर के इस प्रमुख मुद्दे पर चुप रही। सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र के हाटी समुदाय को भले ही अनुसूचित जनजाति का आरक्षण केंद्र सरकार दे चुकी है परंतु विकास के मुद्दे पर जहां रेल इस जिला सहित पूरे प्रदेश के लिए वरदान साबित होती उस पर केंद्र के दिग्गज भाजपा नेताओं ने कोई आश्वासन नहीं दिया।

सिरमौर को रेल न केवल सामरिक दृष्टि से बल्कि किन्नौर से लेकर शिमला जिला के सेब के लिए यह रेल संजीवनी साबित होती। पांवटा साहिब-शिलाई फोरलेन, रोहडू, जुब्बल, कोटखाई और उसके साथ लगते उत्तरांचल की सेब बेल्ट को भी ईजी अप्रोच करता है। ऐसे में यदि पांवटा साहिब और कालाअंब में रेल का मुख्य जंक्शन बनता है तो निश्चित ही न केवल प्रदेश के किसानों का सेब बल्कि सिरमौर का टमाटर, लहसुन, मटर देश की बड़ी मंडियों तक सही समय पर पहुंच सकता है। यही नहीं डीआरडीओ तथा देश की स्पेशल फोर्सज का ट्रेनिंग सेंटर भी सिरमौर में है, जिसका सामरिक महत्त्व भी बढ़ जाता है। बावजूद इन सबके भले ही अंग्रेजों ने रेल को शिमला जैसे पहाड़ पर पहुंचा दिया हो मगर दुनिया में सबसे बड़ी पार्टी होने का परचम लहराने वाली भाजपा सिरमौर को रेल तक नहीं दे पाई है। यही नहीं दून क्षेत्र का किसान अब यह भी समझ चुका है कि धौलाकुआं में बनाया गया आईआईएम उनके लिए केवल और केवल सफेद हाथी साबित हुआ है। एचडीएम

किसानों-बागबानों को मिलता लाभ

जिला में देश के नामी औद्योगिक क्षेत्र कालाअंब व पांवटा साहिब में स्थित है। करीब अढ़ाई हजार बड़ी, मध्य व लघु उद्योग स्थापित है। ऐसे में रेललाइन के जुडऩे से उद्योग, खनन व किसान-बागबान भी इससे लाभान्वित होंगे।

चुनावी वेला में मिलते सिर्फ आश्वासन

दशकों पुराने सिरमौर को रेल के मुद्दे पर केवल और केवल चुनावी समय में आश्वासन मिलते हैं बाद में यह मुद्दा पांच सालों के लिए गुम हो जाता है। अब सिरमौर में रेल का मुद्दा धीरे-धीरे फिर से हवा पकड़ रहा है। बहरहाल सिरमौर को रेल का बड़ा मुद्दा अब भाजपा के लिए गले की फांस बनेगा।


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