रम्भा तृतीया व्रत के अनेक फायदे
भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की तृतीया पर रम्भातृतीया व्रत किया जाता है। रम्भातृतीया मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर किया जाता है। रम्भातृतीया को पार्वती पूजा, एक वर्ष तक करनी चाहिए। विभिन्न नामों से देवी पूजा जैसे- मार्गशीर्ष में पार्वती, पौष में गिरिजा आदि नामों से पूजा होती है। रम्भातृतीया पर विभिन्न दान तथा विभिन्न पदार्थों का सेवन किया जाता है। यदि तृतीया, द्वितीया एवं चतुर्थी से युक्त हो तो यह व्रत द्वितीया से युक्त तृतीया पर किया जाना चाहिए। पूर्वाभिमुख होकर पांच अग्नियों के बीच में बैठना चाहिए। ब्रह्मा एवं महाकाली, महालक्ष्मी देवी, महामाया तथा सरस्वती के रूप में देवी की ओर मुख करना चाहिए। ब्राह्मणों के द्वारा सभी दिशाओं में होम करना चाहिए।
देवी पूजा तथा देवी के समक्ष सौभाग्याष्टक नामक आठ द्रव्यों को रखना चाहिए। सायंकाल सुन्दर घर के लिए स्तुति के साथ रुद्राणी को सम्बोधित करना चाहिए। इस के उपरान्त कर्ता (स्त्री या पुरुष) किसी ब्राह्मण को उसकी पत्नी के साथ सम्मान देता है और सूप में नैवेद्य रखकर सधवा नारियों को समर्पित करता है। रम्भातृतीया व्रत विशेषत: नारियों के लिए है। रम्भातृतीया को यह नाम इसलिए मिला है कि रम्भा ने इसे सौभाग्य के लिए किया था।
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