अरुण भारती जी का यूं चले जाना

By: Jun 19th, 2017 12:05 am

प्रदेश के प्रतिष्ठित कहानीकार और साहित्यकार अरुण भारती जी का यूं अचानक चले जाना साहित्य जगत के लिए अपूर्णीय क्षति है। मुझे वह दिन याद आता है जब पुस्तक मेले के दौरान साहित्यक कार्यक्रमों के अंतर्गत, साहित्य अकादमी और भाषा संस्कृति विभाग के द्वारा कहानीकार सम्मेलन हुआ था, जिसमें अरुण भारती जी भी शामिल थे और अपनी कहानी ओह! ‘गॉड नोज’ पढ़ी थी।  हालांकि उस समय उनकी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी, फिर भी स्टेज पर खड़े होकर उन्होंने अपनी कहानी को पढ़ा था जो अनायास भी हम श्रोताओं को अपनी ओर खींच रही थी। मुझे भी उस कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था, शायद अंतिम दर्शन करने थे। ‘गॉड-नोज’ शहीद के परिवार का दुख बया करती है… उनकी कहानी का पात्र  रिटायर्ड फौजी था और अपने बेटे को भी फौज में भेजता है। बात-बात पर तकिया कलाम की तरह गॉड नोज पूरी कहानी में कहता है…जब उसका बेटा देश के लिए शहीद हो जाता है, उसे खबर मिलती है तो भी गॉड नोज कहता है…जब शहीद बेटे की देह तिरंगे में लिपटी हुई उसके आंगन पहुंचती है, तो भी गॉड नोज कहता हुआ अपने हृदय की पीड़ा को अंदर छुपा लेता है। ऐसे लगता है जैसे गॉड नोज वाक्य उसे हिम्मत प्रदान करता है।

 अरुण भारती जी ने अपनी कहानियों में यथार्थवादी चित्रण किए किए हैं। पाठक पढ़ते सुनते मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उनकी कहानियों में कहीं खो जाते हैं। अब वो नहीं रहे हैं, तो पाठक उन्हें उनके लेखन में, कहानियों और नाटकों में ढूंढेंगे। उनके नाटक व कहानियां आकाशवाणी शिमला केंद्र से भी प्रसारित होती रही हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी उनको पाठकों ने पढ़ा व सराहा। वे एक नेकदिल व हंसमुख इनसान थे। अपने लेखन में उन्होंने इतना दर्द, इतनी संजीदगी दर्शाई है कि आंखें छलक जाती थीं, आखिरी बार जब मेरी गेयटी थियेटर में उनसे बात हुई, तो लगा ही नहीं था कि चंद दिनों में अरुण भारती जी चले जाएंगे।  उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था कि ताजगी और मुस्कान चेहरे पर रहती थी। अंदर की पीड़ा को उन्होंने बाहर नहीं आने दिया था। नवलेखकों के लिए प्ररेणास्रोत थे अरुण भारती जी जैसा नाम वैसा काम अरुणिम आभा के धनी थे वह। सचमुच साहित्यकार को समाज का आईना कहा जाता है, जो जमाने की तस्वीर को हू-ब-हू कागज पर उतारता है। शब्दों के जरिए आत्मा तक पहुंचाता है। कहानीकार के तौर पर अरुण भारती जी ने  समाज का चित्रण यथार्थवादी नजरिए से अपनी कहानियों में किया है।  आज वह सशरीर हमारे मध्य नहीं हैं, लेकिन अपनी कहानियों के रूप में अपने साहित्य के रूप में हमेशा हमारे साथ रहेंगे। वैसे कहा भी गया है…साहित्यकार अमर होता है। अरुण भारती जी का साहित्य भी हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा।

वंदना राणा, सैट 3, टाइप 3 कैंडल लॉज, लॉगवुड

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