अब नई पौध सहेजेगी पहाड़ी बोली

By: Apr 30th, 2019 12:02 am

 शिमला  —नई पीढ़ी अपनी क्षेत्रीय भाषा को बोलना और समझना ही न भूल जाए, जिसके लिए अब प्रदेश की नई पौध यानी कि स्कूली बच्चे हिमाचल में पहाड़ी बोली को सहेजेंगे। भाषा कला एवं संस्कृति विभाग, अकादमी और शिक्षा विभाग इस ओर मिलकर एक अहम कदम उठाने जा रहे हैं। इसमें स्कूलों में आयोजित कार्यक्रम में पहाड़ी बोली को प्राथमिकता के तौर पर शामिल किया जाएगा। जानकार मानते हैं कि प्रदेश में नई पीढ़ी को अपनी क्षेत्रीय भाषा के बारे में नहीं मालूम है। कई बच्चे अपनी बोली बोल ही नहीं पाते हैं और कुछ बच्चे जो बोलते भी हैं, वह सामाजिक तौर पर उसे बोलने में हिचकिचाते हैं। बताया जा रहा है कि खासतौर पर शहरों में पढ़ने वाले बच्चों को अपनी क्षेत्रीय भाषा के बारे में ही मालूम नहीं होता। हालांकि भाषा विभाग के पहले बनाए गए अपने सौ दिन के टारगेट में बोलियों क ो संरक्षित करने की भी योजना बनाई थी, लेकिन यह योजना सिरे ही नहीं चढ़ पाई। इसमें मुख्यत स्कूली बच्चों को बोलियों के संरक्षण के लिए जोड़ा जाने वाला था, जिसमें यह भी तय किया गया था कि भविष्य में तैयार पहाड़ी बोली की लिपि के बाद संबंधित क्षेत्र की पहाड़ी बोली का एक स्पेशल सब्जेक्ट स्कूल में बच्चों के लिए रखा जाना तय किया गया था, लेकिन भाषा विभाग की यह सारी योजना जस की तस खड़ी रही। फिलहाल भाषा विभाग तो यह भी पहल करने वाला था कि क्षेत्रीय बोलियों को स्वरबद्ध करके उसकी लिपि तैयार की जानी थी, जिसे स्कूलों में एक पुस्तक के तौर पर भेजा जाना था। पहाड़ी बोली पर अभी तक कोई भी लिपि तैयार नहीं हो पाई है। अभी तक जो भी बोलियों में लिखित तौर पर कार्य हुआ है, वह साहित्य में ही हुआ है, लेकिन उसे लिखित तौर पर सहेजने के लिए देवनागरी लिपि का ही इस्तेमाल हो पाया है। इसमें कांगड़ी, मंडयाली, कुल्लवी और किन्नौरी में साहित्य सृजन किया गया है। इसकी संबंधित बोली की कोई लिपि तैयार नहीं है।

पहाड़ी में भाषण, वाद-विवाद प्रतियोगिता

स्कूलों में पहाड़ी बोली में भाषण प्रतियोगिता और वादविवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा। प्राइमरी स्तर से लेकर, सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में विभिन्न प्रतियोगिता का आयोजन होगा। भाषा विभाग और अकादमी आयोजित कार्यक्रम में विशेष सहयोग देने वाली है।


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