आत्म पुराण

By: May 18th, 2019 12:06 am

हे शिष्य! इस प्रकार पूर्व काल में सहस्रों मनुष्य में से कोई एक भाग्यवान पुरुष ही सब पदार्थों को त्याग, कर उस नारायण रूप मोक्ष को प्राप्त कर सका है। उसी प्रकार वर्तमान समय के अधिकारी जन भी पुत्रैषणा, धनैषणा, लोकैषणा अर्थात तीनों ऐषणाओं को त्याग कर संन्यास आश्रम को ग्रहण करते हैं। अधिकारी जन ही गुरु-शास्त्र के उपदेश से उस मोक्ष को प्राप्त होते हैं। शंका-हे भगवन्! इस जगत में अनेक संन्यासियों को भी आत्मा साक्षात्कार का प्राप्त होना संभव नहीं जान पड़ता? समाधान-हे शिष्य! संन्यास तथा चित्ता के निरोध रूप योग द्वारा जिन संन्यासियों का चित्त शुद्ध हो गया है, जो संन्यासी शम-दम आदि साधनों से युक्त हैं, तथा जिन संन्यासियों ने वेदांत के वचनों पर विचार करके तत्तं पदार्थ का शोधन किया है, ऐसे साधन संपन्न संन्यासियों यदि किसी प्रतिबंध के कारण इस जन्म में आत्म साक्षात्कार न भी हो सके, तो भी वे संन्यासी शरीर त्यागने पर अर्चि मार्ग द्वारा ब्रह्म लोक जाते हैं। वहां ब्रह्म की समानता को प्राप्त होकर वे आत्मा साक्षात्कार को प्राप्त होते हैं। इन वचनों को सुनकर तुमको इस जन्म में आत्म साक्षात्कार द्वारा इस लोक में तथा ब्रह्म लोक में मोक्ष की प्राप्ति होती है, उस आत्म साक्षात्कार को इस मनुष्य-जन्म द्वारा ही संपादन करना उचित है। हे शिष्य! अब ‘नारायण’ का आशय सुनो। अपनी समीपता द्वारा जो समस्त चेतन पदार्थों को अपने-अपने कार्य में प्रवृत करता है, उस चेतना देव का नाम नर है और यह माया उससे संबंधित होने से नारा कहलाती है। यह सूक्ष्म प्रपंच उस माया का ही कार्य है। इस माया रूप नार और सूक्ष्म प्रपंच में परमात्मादेव प्रतिबिंब की तरह वर्तमान है, इसलिए श्रुति भगवती उसको ‘नारायण’ नाम से कथन करती है। अथवा परमात्मा रूप  ने जो जल उत्पन्न किए हैं, उनका नाम नारा है, वे नारा रूप जल इस विराट रूप परमात्मादेव का आधार है, इसलिए श्रुति भगवती उस विराट रूप परमात्मा को ‘नारायण’ नाम से कथन करती है। हे शिष्य! अब नारायण के अन्य नामों का आशय भी तुमको सुनाते हैं। जो अधिकारीजन नारायण का श्रद्धा-भक्तिपूर्वक स्मरण, कीर्तन करते हैं, उनके पंच क्लेशों और सब पापों को परमात्मादेव ही नष्ट करते हैं, हर लेते हैं, इसलिए श्रुति में उनको ‘हरि’ कहा है।  फिर परमात्मादेव ही संपूर्ण जगत को उत्पन्न करके उसका पालन करते हैं, इससे श्रुति में उनको ‘पति’ कहा गया है। परमात्मादेव ही अपने अस्ति-भास्ति प्रिय रूप में इस संपूर्ण विश्व को व्याप्त करते हैं, जिसे उन्हें ‘आत्मा’ भी कहा गया है।यह परमात्मादेव सब मंगलों के भी मंगल रूप तथा परम कल्याण रूप हैं, इससे शिव भी कहे जाते हैं। इस परमात्मादेव रूप आनंद समुद्र के एक बिंदु मात्र आनंद को ग्रहण करके हिरण्यगर्भ देव भी आनंदित हो रहे हैं, इससे उनको ‘आनंद’ के नाम से भी कथन किया जाता है। फिर काल प्रभाव से जो विभिन्न प्रकार के पदार्थों का नाश होता है, उनका नमा ‘च्युति’ है। ऐसी ‘च्युति’ परमात्मादेव में नहीं है, इसलिए उनको ‘अच्युत’ कहा गया है। यह परमात्मा देव सूर्य, अग्नि आदि सर्व जगत का निरंतर हैं, इसलिए इन्हें  ईश्वर भी कहा जाता है।


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