उच्च शिक्षा का नया लहजा

By: Jul 22nd, 2019 12:06 am

शिक्षा के उन्नयन में सरकारी संस्थानों का जमघट और राजनीतिक पैरवी में स्तरोन्नत होते स्कूल-कालेजों की मात्रात्मक शक्ति का परिचय किस काम का, अगर लक्ष्यों की बुनियाद पर गुणात्मक परिवर्तन नहीं आ रहा। हर साल कितने स्कूल स्तरोन्नत या कालेज स्नातकोत्तर हो जाते हैं, इसका हिसाब शिक्षा के किसी लक्ष्य को भी मालूम नहीं। ऐसे में मानव संसाधन की दृष्टि से देखें, तो हिमाचल में शिक्षा के गुणात्मक अर्थ दिखाई नहीं  देते। प्रदेश के चालीस के करीब स्नातकोत्तर कालेजों में अगर काबिल फैकल्टी का टोटा है, तो शिक्षा अपने ही इम्तिहान में नाकाबिल रहेगी। यह विडंबना है कि उच्च शिक्षा के आयाम इस तरह तय हो रहे हैं, जबकि यहां गुणवत्ता व उपयोगिता के प्रश्न हमारे सामने हैं। शिक्षा मात्र पाठ्यक्रम या उपाधि नहीं, बल्कि किसी प्रोफेशन के लिए सशक्त व्यक्तित्व का निर्माण है। प्रदेश के कालेजों में जो पढ़ाया जा रहा है, उससे छात्रों के व्यक्तित्व की तैयारी न के बराबर ही है। खास तौर पर विषय को शिक्षा के आचरण से कहीं आगे ले जाने की समझ ही पैदा नहीं हुई। रूसा को अपनाने या सेमेस्टर सिस्टम को धमकाते हुए हिमाचल ने दोनों ही परिस्थितियों में जल्दबाजी या गलती की है। इसीलिए अनुसंधान के प्रति छात्रों को प्रेरणा पाने के अवसर नहीं मिल रहे, नतीजतन उपाधियां केवल अपनी भीड़ में शामिल नौकरी की एक जिरह की तरह  है। उच्च शिक्षा का लहजा मात्र उपाधि नहीं, बल्कि विषय के ज्ञान को परिमार्जित करने का सतत रास्ता है। ऐसे में होना तो यह चाहिए कि राज्य में विषयवार उच्च शिक्षा के प्रांगण स्थापित हों तथा इसी दृष्टि से फैकल्टी उपलब्ध कराई जाए। वर्तमान ढर्रे में स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई महज एक राजनीतिक छलावा बनती जा रही है, जबकि इसके साथ योग्यता की परिधि का विकास होना चाहिए। चुनिंदा विषयों के गुणवत्तायुक्त अध्ययन के लिए अगर कुछ कालेजों को राज्य स्तरीय दर्जा दिया जाए, तो अध्यापन की परंपराएं मजबूत होंगी। राज्य स्तरीय वाणिज्य, साइंस, आर्ट्स, इतिहास, अर्थशास्त्र, खेल जैसे कालेजों के जरिए शिक्षा के स्तर और प्रतिस्पर्धी माहौल में तरक्की होगी। शैक्षणिक मूल्यांकन के लिए माहौल का योगदान अपरिहार्य है। विश्वविद्यालय या क्षेत्रीय अध्ययन केंद्र के तहत उच्च शिक्षा के मानदंड ही अगर तय नहीं हो पा रहे हैं, तो कालेजों में स्नातकोत्तर छात्रों के लिए सुविधाएं कैसे उपलब्ध होंगी। शिमला विश्वविद्यालय ने पिछले कुछ सालों में अपनी छवि का पतन देखा है और इसीलिए राष्ट्रीय स्तर पर मूल्यांकन पिछड़ा। पाठ्यक्रमों में विविधता लाने में भी कुछ खास नहीं हुआ, तो स्नातकोत्तर की पढ़ाई का पैगाम क्या होगा। प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए शिमला विश्वविद्यालय ने धर्मशाला के अलावा दो अन्य अध्ययन केंद्र विकसित करके अगर स्नातकोत्तर शिक्षा में चमक पैदा की होती, तो निश्चित रूप से छात्रों का शैक्षणिक उत्थान होता। मात्रात्मक शिक्षा के प्रसार में हिमाचल की उपलब्धियों का खूब गुणगान होता है, लेकिन इसके साथ गुणवत्ता की दृष्टि से मूल्यांकन नहीं हो पाता। स्नातकोत्तर कक्षाएं शुरू करने की सियासी मजबूरी हो सकती है, लेकिन इसकी कीमत अगर छात्रों के भविष्य को चुकानी पड़े तो यह तरक्की केवल आंकड़े ही पैदा करेगी। किसी भी कालेज का स्तर बढ़ाने से पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि स्नातकोत्तर शिक्षा के अनुरूप फैकल्टी, अधोसंरचना तथा वांछित माहौल उपलब्ध हो, वरना राजनीतिक प्रलोभन में शिक्षा की वास्तविक क्षुधा ही खत्म हो जाएगी। हिमाचल में मात्रात्मक शिक्षा के विकास में जो मंजिलें हासिल हैं, उसकी समीक्षा करते हुए यह तय करना होगा कि किस तरह इसे गुणवत्ता के आधार पर प्रासंगिक बनाया जाए।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App