बुरे फंसे संगीत सीखकर

By: Nov 8th, 2019 12:05 am

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक

प्रारंभ में मैं बाथरूम सिंगर था। फिल्मी गाने गाया और गुनगुनाया करता था। पिताजी ने एक दिन प्यार से अपने पास बुलाया और कहा-‘बेटे क्या दिनभर ऊल-जुलूल गाया करते हो। गाना गाने का इतना ही नशा है तो मैं तुम्हारी शिक्षा विधिवत रूप से संगीत में करवा सकता हूं, लेकिन सोच लो, है यह काम बड़ा ही जटिल। राग-रागिनियों का ज्ञान हासिल करने में पसीना निकल जाएगा। कल मुझे बता देना यदि तुम वाकई संगीत सीखना चाहते हो तो।’मैं चुपचाप अपने कमरे में आ गया। अपनी पढ़ाई की पुस्तकों को एक पल देखा और दूसरे पल ही ख्याल आया कि संगीत सीखने से पढ़ाई से पिंड छूट सकता है और बाई दी वे भगवान करे तो मैं वाकई नामी-गिरामी गायक भी बन सकता हूं। मुझे लगा बंबई की फिल्मी दुनिया अब मुझसे ज्यादा दूर नहीं हैं। दूसरे दिन मैं ही गया पिताजी के पास और बोला-‘पिताजी आप मुझे संगीत क्षेत्र में दीक्षित करवाइए। मैं वाकई गायक बनना चाहता हूं। संगीत मेरी रग-रग में समा चुका है। यदि समय रहते मैंने इस कौशल को नहीं सीखा तो जीवन भर पछताउंगा। पिताजी संगीत में बड़ा स्कोप है। फिल्मों में अवसर मिल गया तो सच मानिए हमारी गरीबी अपना मुंह छुपाती फिरेगी। बताइए मुझे करना क्या है।’ पिताजी बोले-‘करना यही है कि सुरों का ज्ञान करके तुम्हें अपने गले को साधना है। बेटा संगीत साधना है जिस तरह तुम रैंकते फिरते हो, उससे बाज आओ और संगीत गुरु के चरणों में बैठकर संगीत को अपना जीवन साथी बना लो। गुरु के बिना कोई ज्ञान नहीं आता है। अब जब तुम संगीत के शौकीन हो तो तुमने भीमसेन बागी का नाम तो सुना होगा। हमारे शहर के सबसे बड़े संगीत गुरु। मैं उनसे बात करता हूं, यदि उन्होंने तुम्हारा हाथ थाम लिया तो फिर कोई वजह नहीं कि तुम एक उच्च कोटि के संगीत साधक, मेरा मतलब गायक न बन सको।’ मैंने कहा-‘देर किस बात की मेरे पिताजी, आप बागी साहब से बात करो मैं संगीत की बारीकियां जानने को अब बेकरार हूं।’ पिताजी हंसे और बोले-‘थोड़ा धैर्य रखो। बागी साहब पहुंचे हुए गुरु हैं, उनका तानपुरा तुम्हारे हाथ लग गया तो संगीत तो फिर बाएं हाथ का खेल हो जाएगा। मैं कल ही भीमसेन बागी से मिलता हूं, लेकिन थोड़ा मन लगाकर और डूबकर सीखना संगीत। कहीं ऐसा न हो कि बागी साहब मुझे उलाहना दे।’ मैं बोला-‘आप आश्वस्त रहें। भीमसेन बागी को मैं निराश नहीं करूंगा, बल्कि उन्हें लगेगा कि यह प्रतिभा इतने दिन तक कहां खोई हुई थी। आपने मेरा गुनगुनाना तो सुना होगा। पूत के पग पालने में ही नजर आ जाते हैं पिताजी। होनहार बिरवान के होत चीकने पात।’    


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