उद्योग-कारोबार की नई मुश्किलें

कोरोना संक्रमित लॉकडाउन और लॉकडाउन जैसे प्रतिबंधों वाले राज्यों में एमएसएमई को बिके हुए माल का भुगतान नहीं मिल पा रहा है। ऐसी स्थिति में उन्हें बैंकों के कर्ज चुकाने के लिए अतिरिक्त समय की आवश्यकता होगी। ऐसा नहीं करने पर अधिकतर एमएसएमई के सामने एनपीए वर्ग में शामिल हो जाने का खतरा है। ऐसे में अब आरबीआई को फिर से लोन मोरेटोरियम सुनिश्चित करना होगा…

निःसंदेह कोरोना की दूसरी घातक लहर ने देश के उद्योग-कारोबार, रोजगार और प्रवासी मजदूरों के पलायन की गंभीर चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। कोरोना संक्रमण बढ़ने का जो चिंताजनक परिदृश्य दिखाई दे रहा है, उससे देश में आर्थिक तथा रोजगार चुनौती और बढ़ने की आशंका दिखाई दे रही है। स्थिति यह है कि देश में कोविड संक्रमित मरीजों का आंकड़ा 22 अप्रैल को 3.14 लाख के पार पहुंच गया है। एक दिन में पहले कभी किसी देश में इतनी बड़ी संख्या में कोरोना के मरीज नहीं मिले हैं। देशभर के अस्पतालों में बिस्तर, वेंटिलेटर और ऑक्सीजन की कमी का हाहाकार दिखाई दे रहा है। ऐसे में उद्योग-कारोबार की मुश्किलें और बढ़ना स्वाभाविक है। यही कारण है कि हाल ही में गोल्डमैन सैश ने अपनी रिपोर्ट 2021 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर पहले के अनुमान से घटाकर 10.5 फीसदी कर दी है। ऐसे में देशभर में कोविड-19 की नई चुनौतियों के कारण उद्योग-कारोबार और श्रमिकों की बढ़ती चिंताओं के मद्देनजर कुछ विशेष रणनीतिक कदम उठाए जाने जरूरी हैं।

 सरकार के द्वारा गत वर्ष 2020 में कोविड-19 की पहली लहर के बीच घोषित किए गए वित्तीय मदद एवं ऋण में सहायता जैसे विभिन्न उपाय अब फिर दोहराए जाने होंगे। महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की राज्य सरकारों ने जिस तरह गरीबों के लिए तीन महीने तक मुफ्त राशन देने का ऐलान किया है, उसी तरह की व्यवस्था विभिन्न तरह की लॉकडाउन जैसे सख्त कदम उठाने वाले अन्य राज्यों में भी की जानी होगी। इस समय कोरोना से प्रभावित हो रहे उद्योग-कारोबार को राहत देने के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की पेचीदगियां भी कम की जानी होंगी। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) के लिए नई राहत शीघ्र घोषित की जानी होगी। हाल ही में 20 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संबोधन में राज्यों से अपील की है कि वे श्रमिकों का विश्वास बनाए रखें और श्रमिकों को पलायन करने से रोकें। श्रमिकों के लिए काम और कोरोना वैक्सीन दोनों की व्यवस्था सुनिश्चित करें। ऐसे में लॉकडाउन जैसी कठोर पाबंदी लगाने वाली राज्य सरकारों और नियोक्ताओं के द्वारा श्रमिकों और कर्मचारियों को भरोसेमंद तरीके से उनके कार्यस्थल या आवास पर रुकने की व्यवस्था करनी होगी।

 लेकिन जो श्रमिक अपने घर लौटना चाहते हैं, उन प्रवासी श्रमिकों के लिए उपयुक्त परिवहन व्यवस्था भी सुनिश्चित की जानी होगी। निःसंदेह मनरेगा एक बार फिर उन प्रवासी श्रमिकों के लिए जीवन रक्षक बन सकती है, जो दूसरी बार गांव लौटेंगे। गांवों में लौटते प्रवासी कामगारों के रोजगार के लिए मनरेगा को प्रभावी बनाया जाना होगा। चालू वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में मनरेगा के मद पर रखे गए 73000 करोड़ रुपए के आबंटन को बढ़ाया जाना होगा। यह कोई छोटी बात नहीं है कि इस योजना के तहत वित्त वर्ष 2020-21 में 11 करोड़ लोगों को काम मिला, जो 2006 में योजना लागू होने के बाद सबसे बड़ी संख्या है। इस दौरान करीब 390 करोड़ कार्यदिवस का सृजन हुआ, यह भी मनरेगा लागू होने के बाद सर्वाधिक है। करीब 83 लाख कामों का सृजन भी मनरेगा के तहत वित्त वर्ष 2020-21 में किया गया, जो वित्त वर्ष 2019-20 की तुलना में 11.26 प्रतिशत ज्यादा है। यह भी कोई छोटी बात नहीं है कि करीब 78 लाख परिवारों ने इस योजना के तहत 100 दिन काम पूरा किया, जबकि औसत रोजगार 52 दिन का रहा है। यह भी जरूरी है कि अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए देश में कोरोना वैक्सीन निर्माण पूरी क्षमता से किया जाए और टीकाकरण अभियान सफलतापूर्वक आगे बढ़ाया जाए। कोई एक साल पहले जब देश में कोरोना संक्रमण की पहली लहर शुरू हुई थी, तब देश में कोरोना की रोकथाम के लिए कोरोना वैक्सीन से संबंधित शोध और उत्पादन के विचार आने शुरू हुए थे। लेकिन यह कोई छोटी बात नहीं है कि पिछले एक वर्ष में भारत ने कोविड-19 टीका विकसित कर लिया। देश में टीके के सबसे कम दाम हैं। 16 जनवरी 2021 से देश में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चल रहा है। टीकाकरण में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोविशील्ड तथा स्वदेश में विकसित भारत बायोटेक की कोवैक्सीन का उपयोग किया जा रहा है।

 देश में 22 अप्रैल तक कोरोना वैक्सीन की 13.5 करोड़ से अधिक खुराक दी जा चुकी हैं। कोविड-19 टीकाकरण के लिए भारत का डिजिटल बुनियादी ढांचा वरदान बन गया है। भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश हैं जहां सभी को टीकाकरण का तुरंत डिजिटल प्रमाणपत्र दिया जाता है, जिसे ऑनलाइन अथवा ऑफलाइन कहीं भी सत्यापित किया जा सकता है। यह भी उल्लेखनीय है कि 20 अप्रैल को केंद्र सरकार ने टीका वितरण के जो नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, उनका उपयुक्त रूप से क्रियान्वयन जहां देश के करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होगा, वहीं देश की अर्थव्यवस्था और उद्योग-कारोबार के लिए भी लाभप्रद होगा। नए निर्देशों के तहत एक मई से 18 वर्ष से अधिक उम्र के सभी भारतीयों को टीका लगाया जा सकेगा। यह वह वर्ग है, जो आर्थिक गतिविधियों में सबसे सक्रिय भूमिका निभाता है। इसके साथ-साथ पहले की तरह केंद्र सरकार 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के अलावा स्वास्थ्य कर्मियों और अग्रिम पंक्ति पर काम करने वालों के निःशुल्क टीकाकरण का दायित्व बनाए रखेगी। इन आधारों पर भी सफल टीकाकरण अभियान उद्योग-कारोबार के लिए लाभप्रद होगा। इस ओर भी ध्यान दिया जाना होगा कि कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच देश के जिन राज्यों में लॉकडाउन जैसी स्थिति निर्मित हुई है, उन राज्यों में एमएसएमई के लिए एक बार फिर से लोन मोरेटोरियम यानी बैंक को चुकाई जाने वाली किश्तों को कुछ समय आगे टाले जाने की योजना लागू की जानी लाभप्रद होगी।

 कोरोना संक्रमित लॉकडाउन और लॉकडाउन जैसे प्रतिबंधों वाले राज्यों में एमएसएमई को बिके हुए माल का भुगतान नहीं मिल पा रहा है। ऐसी स्थिति में उन्हें बैंकों के कर्ज चुकाने के लिए अतिरिक्त समय की आवश्यकता होगी। ऐसा नहीं करने पर अधिकतर एमएसएमई के सामने एनपीए वर्ग में शामिल हो जाने का खतरा है। ज्ञातव्य है कि सरकार ने रिटेल लोन लेने वालों समेत एमएसएमई को पिछले वर्ष कोरोना काल में मार्च से अगस्त 2020 के लिए लोन मोरेटोरियम दिया था। करीब 30 फीसदी एमएसएमई ने इस लोन मोरेटोरियम का फायदा उठाया था। ऐसे में अब आरबीआई के द्वारा फिर लोन मोरेटोरियम सुनिश्चित किया जाना होगा। हम उम्मीद करें कि कोरोना संक्रमण की दूसरी घातक लहर की आर्थिक और औद्योगिक चुनौतियों के बीच सभी राज्य सरकारें इस बात को स्वीकार करेंगी कि लॉकडाउन अंतिम विकल्प है। ऐसे में लॉकडाउन की जगह उपयुक्त कठोर पाबंदियां और स्वास्थ्य तथा सुरक्षा मानकों के सख्त प्रतिबंधों से देश के जनजीवन के साथ उद्योग-कारोबार को मुश्किलों से बचाया जा सकता है।

संपर्क :

डा. जयंतीलाल भंडारी

विख्यात अर्थशास्त्री


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