आर्य समाज का सामाजिक योगदान

आर्य समाज का देश की आज़ादी में बहुमूल्य योगदान है। इसका पाखंडवाद और अंधविश्वास के खिलाफ संघर्ष अपने आप में एक अविचलित वैचारिक क्रांति है। आर्य समाज का खास तौर पर डीएवी संस्थाओं के जरिए देश में शिक्षा के फैलाव में अति महत्त्वपूर्ण योगदान है। समाज की कुरीतियों से लडऩे की जरूरत आज भी कम नहीं है, बल्कि आज इसकी हमें ज्यादा जरूरत है। देश की स्वतंत्रता में आर्य समाजियों की भूमिका अग्रणी रही है। स्वतंत्रता आंदोलन में आर्य वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी…

हाल ही में प्रधानमंत्री जी ने देश भर के अकादमिक एवं सांस्कृतिक संस्थानों से समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती के साथ ही उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज के योगदान पर शोध कार्य करने का आह्वान किया है। उन्होंने नेहरू स्मारक पुस्तकालय एवं संग्रहालय (एनएमएमएल) सोसाइटी की वार्षिक आम बैठक के दौरान यह टिप्पणी की। प्रधानमंत्री जी ने स्वामी दयानंद सरस्वती को आधुनिक भारत के सबसे प्रभावशाली सामाजिक और सांस्कृतिक शख्सियतों में से एक बताया और कहा कि उनकी 200वीं जयंती 2024 में मनायी जाएगी। उन्होंने उनके योगदान के साथ-साथ 2025 में अपने अस्तित्व के 150 साल पूरे करने जा रहे आर्य समाज के बारे में अच्छी तरह से शोध करके ज्ञान का सृजन करने के लिए देश भर के शैक्षणिक और सांस्कृतिक संस्थानों का आह्वान किया। उपलब्ध जानकारी के अनुसार समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज की स्थापना की थी। स्वामी दयानंद जी का जन्म 12 फरवरी सन् 1824 में हुआ। उन्होंने 21 वर्ष की आयु में गुरु विरजानंद से दीक्षा ली। शुद्धि आंदोलन चलाने और अंग्रेजों से जमकर लोहा लेने के कारण एक षड्यंत्र के तहत उन्हें जहर दे दिया गया। जहर देने के बाद 30 अक्टूबर 1883 को दीपावली के दिन संध्या के समय उनकी मृत्यु हो गई। सर्वविदित है कि आर्य समाज उन श्रेष्ठ और प्रगतिशील लोगों का समाज माना जाता है जो वेदों के अनुकूल चलने का प्रयास करते हैं, दूसरों को उस पर चलने को प्रेरित करते हैं। महर्षि दयानंद ने उसी वेद मत को फिर से स्थापित करने के लिए आर्य समाज की नींव रखी थी। बुनियादी तौर से आर्य समाज एक सुधार आंदोलन है।

यह आंदोलन पाश्चात्य प्रभावों की प्रतिक्रिया स्वरूप सामाजिक और धार्मिक सुधार के लिए प्रारंभ हुआ था। स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रंथ आर्य समाज का मूल ग्रंथ है। आर्य समाज का आदर्श वाक्य है : कृण्वन्तो विश्वमार्यम्, जिसका अर्थ है विश्व को आर्य बनाते चलो। प्रसिद्ध आर्य समाजी जनों में स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी श्रद्धानंद, महात्मा हंसराज, महात्मा आनंद स्वामी जी, लाला लाजपत राय, भाई परमानंद, राम प्रसाद बिस्मिल, पंडित गुरुदत्त इत्यादि नाम लिए जा सकते हैं। आर्य समाज शिक्षा, समाज सुधार एवं राष्ट्रीयता का आंदोलन था। भारत के 85 प्रतिशत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आर्य समाज ने पैदा किए। स्वदेशी आंदोलन का मूल सूत्रधार आर्यसमाज ही है। स्वामी जी ने धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों को पुन: हिंदू बनने की प्रेरणा देकर शुद्धि आंदोलन चलाया। आज विदेशों तथा योग जगत में नमस्ते शब्द का प्रयोग बहुत साधारण बात है। एक जमाने में इसका प्रचलन नहीं था। आर्यसमाजियो ने एक-दूसरे को अभिवादन करने का ये तरीका प्रचलित किया। ये अब भारतीयों की पहचान बन चुका है। सन् 1886 में लाहौर में स्वामी दयानंद के अनुयायी लाला हंसराज ने दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना की थी। आज पूरे देश में डीएवी संस्थाएं माननीय श्री पूनम सूरी जी के योग्य निर्देशन में शिक्षा और आर्य समाज के फैलाव में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। आर्य समाज ने भारत में राष्ट्रवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। इसके अनुयायियों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। आर्य समाज के प्रभाव से ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर स्वदेशी आंदोलन आरंभ हुआ था।

स्वामीजी आधुनिक भारत के धार्मिक नेताओं में प्रथम महापुरुष थे जिन्होंने स्वराज्य शब्द का प्रयोग किया। सन् 1857 के पश्चात की क्रांति के जन्मदाता महर्षि दयानंद सरस्वती और उनके शिष्य श्याम जी कृष्ण वर्मा (जो क्रांतिकारियों के गुरु थे), प्रसिद्ध क्रांतिकारी लाला हरदयाल, भाई परमानंद, सेनापति बापट, मदनलाल ढींगरा, रामप्रसाद बिस्मिल, गोपालकृष्ण गोखले इत्यादि शिष्यों ने स्वाधीनता आंदोलन में कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा। इंग्लैंड में भारत के लिए जितनी क्रांति हुई वह श्याम जी कृष्ण वर्मा के इण्डिया हाउस से ही हुई। भारत को जिस तरह ब्रिटिश सरकार का आर्थिक उपनिवेश और बाद में राजनीतिक उपनिवेश बना दिया गया था, उसके विरुद्ध भारतीयों की ओर से तीव्र प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक था। चूंकि भारत धीरे-धीरे पश्चिमी विचारों की ओर बढऩे लगा था, अत: प्रतिक्रिया सामाजिक क्षेत्र से आना स्वाभाविक था। यह प्रतिक्रिया 19वीं शताब्दी में उठ खड़े हुए सामाजिक सुधार आंदोलनों के रूप में सामने आई। ऐसे ही समाज सुधार आंदोलनों में आर्यसमाज का नाम आता है। 19वीं शताब्दी में भारत में समाज सुधार के आंदोलनों में आर्यसमाज अग्रणी था। हरिजनों के उद्धार में सबसे पहला कदम आर्यसमाज ने उठाया, लड़कियों की शिक्षा की जरूरत सबसे पहले उसने समझी। वर्ण व्यवस्था को जन्मगत न मानकर कर्मगत सिद्ध करने का सेहरा उसके सिर है। जाति भेदभाव और खानपान के छूतछात और चौके-चूल्हे की बाधाओं को मिटाने का गौरव उसी को प्राप्त है। आर्य समाज ने अपनी स्थापना से ही सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध आंदोलन का शंखनाद किया, जैसे जातिवादी जड़मूलक समाज को तोडऩा, महिलाओं के लिए समानाधिकार, बालविवाह का उन्मूलन, विधवा विवाह का समर्थन, निम्न जातियों को सामाजिक अधिकार प्राप्त होना आदि। स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना के पीछे उपरोक्त सामाजिक नवजागरण को मुख्य आधार बनाया।

उनका विश्वास था कि नवीन प्रबुद्ध भारत में नवजागृत होते समाज में, नये भारत का निर्माण करना है तो समाज को बन्धनमुक्त करना प्रथम कार्य होना चाहिए। स्वामी दयानन्द का मूलमन्त्र था कि जनता का विकास और प्रगति सुनिश्चित करने और उनके अस्तित्व की रक्षा करने का सर्वोत्तम साधन शिक्षा है। उन्होंने शिक्षा प्रणाली में पूरी तरह से बदलाव की शुरुआत की और उन्हें आधुनिक भारत के दूरदर्शी लोगों में से एक माना जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में गुरुकुल व डीएवी स्कूल और कालेज स्थापित कर शिक्षा जगत में आर्यसमाज ने अग्रणी भूमिका निभाई है। स्त्रीशिक्षा में आर्यसमाज का उल्लेखनीय योगदान रहा। जैसा कि प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि आर्य समाज पर अधिक से अधिक शोध कार्य किये जाने की जरूरत है। इससे राष्ट्रीयता की भावना मजबूत करने में सहायता मिलेगी और स्वामी दयानंद जी के देश के प्रति बहुमूल्य योगदान के बारे में नई पीढ़ी को ज्ञानवान बनाने का अवसर प्राप्त होगा। आर्य समाज का देश की आज़ादी में बहुमूल्य योगदान है। इसका पाखंडवाद और अंध विश्वास के खिलाफ संघर्ष अपने आप में एक अविचलित वैचारिक क्रांति है। आर्य समाज का खास तौर पर डीएवी संस्थाओं के जरिए देश में शिक्षा के फैलाव में अति महत्वपूर्ण योगदान है। समाज की कुरीतियों से लडऩे की जरूरत आज भी कम नहीं है, बल्कि आज इसकी हमें ज्यादा जरूरत है। देश की स्वतंत्रता में आर्य समाजियों की भूमिका अग्रणी रही है। स्वतंत्रता आंदोलन में आर्य वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी। इससे पता लगता है कि महर्षि दयानंद सरस्वती की क्या भावना थी। निचोड़ में आर्य समाज और स्वामी दयानंद इत्यादि द्वारा जलाई गयी राष्ट्र और सामाजिक उत्थान की मशाल को कभी बुझने न देना हम सबके लिए एक बड़ी चुनौती है।

डा. वरिंदर भाटिया

कालेज प्रिंसीपल

ईमेल : hellobhatiaji@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App