कुलभूषण उपमन्यु

दूसरी समस्या यह है कि पत्तों की पत्तल को एक-दो सप्ताह से ज्यादा रखना संभव नहीं होता है, इसमें फंगस लग जाती है। इसके लिए हाथ से संचालित छोटी मशीनें आ गई हैं जो गर्म डाई से प्रेस करके पत्तल को सुखा भी देती हंै और प्लास्टिक या कागज की प्लेटों की तरह थाली का

अनियंत्रित वाहन आगमन से फैलने वाले धुएं से स्थानीय स्तर पर तापमान वृद्धि की संभावना बढ़ जाती है… विश्व भर में पर्वतीय क्षेत्र अगम्यता और नाजुकता के कारण हाशिए पर रहते आये हैं। इस तथ्य को मान्यता देते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1992 के पर्यावरण और विकास पर आयोजित रिओ सम्मेलन में माउंटेन एजेंडा

जलवायु परिवर्तन के दौर में पूरी दुनिया में जल आपूर्ति अपने आप में एक चुनौती के रूप में उभरती दिख रही है। पृथ्वी का 71 प्रतिशत हिस्सा पानी से ढका हुआ है। कुल उपलब्ध जल का 97 फीसदी भाग सागरों में है, जो खारा है, इसलिए पीने या सिंचाई के काम नहीं आ सकता है।

आईआईटी से पढ़े डॉ. सत्य प्रकाश वर्मा ने गोबर से नैनो सेलुलोस बनाने की विधि इजाद की है। यह बहुत कीमती रसायन है। इसे कागज़ उद्योग, कपड़ा बनाने, दवाई उद्योग आदि में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी अंतरराष्ट्रीय मांग है। एक ग्राम की कीमत दो तीन हजार रुपए है। एक किलो गोबर में से

अनादिकाल से मनुष्य समाज के क्रमिक विकास का मूल आधार ज्ञान ही रहा है। जैसे जैसे भौतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक ज्ञान का विस्तार होता गया, मनुष्य समाज उत्तरोतर विकास की सीढिय़ां चढ़ता गया। ज्ञान का अर्थ हुआ, जानना। अर्थात उस विषय की सच्चाई को जानना। जब हम स्पष्टता से किसी विषय को जान लेते हैं

बैटरियां और इलेक्ट्रॉनिक कचरा अलग से बेचने की व्यवस्था की जाए। जो प्लास्टिक कबाड़ी उठा ले वह बेच दिया जाए। अन्य गत्ता आदि भी बिक जाता है। इसके बाद जो कचरा बच जाए उसके निपटान की व्यवस्था सरकार को करनी होगी। इसके लिए सीमेंट प्लांट और अन्य ईंधन की मांग रखने वाले उद्योगों से बात

यह भी ध्यान रखना होगा कि बांस की कौनसी किस्में ज्यादा सेलुलोस दे सकती हैं। उन्हीं का रोपण करना होगा। वन विभाग, कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर, आईएचबीटी पालमपुर और इच्छुक उद्योग एक मंच पर आकर इस कार्य को सुगमता से कर सकते हैं। इस कार्य में निवेश किसी के लिए भी घाटे का सौदा नहीं हो

हिमालयी राज्यों की सरकारें केंद्र सरकार पर दबाव डाल कर पर्वतीय विकास के लिए अलग विकास मॉडल बनवाने का प्रयास करें और केंद्र सरकार एसजेड कासिम की अध्यक्षता वाली कमेटी की रपट का अध्ययन करके और वर्तमान में नीति आयोग द्वारा बनाए गए हिमालयी क्षेत्रीय परिषद को इस काम पर लगाना चाहिए और विश्वव्यापी अनुभवों

विशेषकर हिमालय क्षेत्र में जहां की परिस्थिति बहुत नाजुक है, वहां एक दो मेगावाट से बड़े प्रोजेक्ट नहीं लगने चाहिए। अभय शुक्ला कमेटी ने सात हजार फुट से ऊपर के क्षेत्रों में जल विद्युत प्रोजेक्ट न लगाने की अनुशंसा की थी। उसे लागू किया जाना चाहिए। पर्यावरण मित्र पर्यटन को विशेष प्रोत्साहन देने के प्रयास

हमें तो हर धर्म का आदर करना सीखना होगा और आपसी मेल जोल के उदाहरणों का प्रचार करना चाहिए, न कि फूट डालने वाले उदाहरणों का… आज मैं एक ऐसे विषय पर लिख रहा हूं जिस पर बात करने से हर तरफ से आलोचना का खतरा है। फिर भी मुझे लगा कि जरूर लिखना चाहिए