कुलभूषण उपमन्यु

इस दिशा में बांस उत्पादन भी एक बेहतर विकल्प हो सकता है। बांस खरपतवार वाली भूमि में भी सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है… हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था सेब, जल विद्युत, सीमेंट और पर्यटन के इर्द-गिर्द घूम रही है। इनमें से सीमेंट कोई टिकाऊ उद्योग नहीं है। कुछ वर्षों में सीमेंट के भंडार समाप्त हो ही

ये विसंगतियां धीरे-धीरे पंचायती राज को कमजोर करने का काम करेंगी। इसके लिए ग्राम स्तरीय सूक्ष्म स्तरीय विकास योजना का कार्य सघन स्तर पर किया जाना चाहिए जिससे लगातार ग्रामसभा स्तर पर विकास की व्यापक समझ का प्रशिक्षण देकर नई प्रजातांत्रिक समझ के विकास के प्रयास होने चाहिए। सामाजिक समरसता और सामाजिक न्याय की समझ

जो साधन और समय एक-दूसरे को नीचा दिखाने और टकरावों में खर्च हो रहे हैं, वे नई-नई पैदा हो रही समस्याओं के समाधान पर खर्च हो सकते हैं। आखिर मनुष्य की बुनियादी जरूरतें और आकांक्षाएं तो एक जैसी ही हैं। रोटी, कपड़ा और मकान के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, विपत्तियों को निपटने की क्षमता और सुरक्षा।

एक एकड़ में बांस के लगभग 200 पौधे लगाए जा सकते हैं जिससे चार साल के बाद प्रतिवर्ष लगभग 2000 बांस निकाले जा सकते हैं, जिससे 100 रुपए प्रति बांस के हिसाब से दो लाख रुपए कमाए जा सकते हैं। स्थानीय मांग सीमित होने की स्थिति में कागज़ उद्योग की मांग पर निर्भर रहना होगा।

जिस तरह की उत्पादन की तकनीक स्वचालन और कृत्रिम-बुद्धि के द्वारा विकसित की जा रही है, उससे केंद्रीकरण को बढ़ावा मिल रहा है और कामगारों की जरूरत कम होती जा रही है। इससे बेरोजगारी बढ़ते ही जाने की संभावना बढ़ेगी। राजनीतिक तौर पर कोई इस तरह के बुनियादी सवालों से उलझना ही नहीं चाहता है।

हम जलवायु परिवर्तन के दौर में प्रवेश कर चुके हैं। गर्मी बढ़ने के साथ-साथ इसमें वर्षा भी अनिश्चित हो जाएगी। इससे सामना करना भी पड़ रहा है। यह क्रम बढ़ता जाएगा। इससे खेती के लिए पानी का संकट भी बढ़ता जाएगा, क्योंकि बारिशों के दिन कम हो जाएंगे और बौछार बढ़ जाएगी। भारत में पहले

उम्मीद की जानी चाहिए कि हिमाचल सरकार इस ओर विशेष ध्यान देकर यह सुनिश्चित करेगी कि चरागाह विकास कार्य को मनरेगा में पहली प्राथमिकता से किया जाए। इस कार्य में कोई ज्यादा सामान खरीद की भी जरूरत नहीं है। इससे अधिक मात्रा में रोजगार वर्तमान में  और दीर्घकाल में भी सृजित करने में मदद मिलेगी।

लगता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ अपने पहले उद्देश्य यानी अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने में असफल सिद्ध होता दिख रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के एक के बाद एक संघर्षों में आज तक यह साबित होता आ रहा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ इस मामले में प्रभावी नहीं हो रहा है…

ज्यादातर सरकारी नौकरियां अनुत्पादक प्रबंधात्मक होती हैं। इन्हें ज्यादा बढ़ाने से राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि की संभावना कम होती है। सरकारी नौकरी के पीछे एक बड़ा आकर्षण यह भी है कि परिणाम का असर कर्मचारी के वेतन पर नहीं पड़ता और नौकरी से निकाले जाने का खतरा भी नहीं होता। इस स्थिति में निजी रोजगार

इस समय गैस उत्सर्जन में चीन पहले, अमेरिका दूसरे तथा भारत तीसरे स्थान पर बना हुआ है। इन पर ही इस त्रासदी से निपटने के प्रयासों की सफलता निर्भर है… वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से पैदा हुए खतरों से दुनिया परिचित हो चुकी है। आज यह कोई वैज्ञानिक भविष्यवाणी मात्र न रह कर एक