कुलभूषण उपमन्यु

अनादिकाल से मनुष्य समाज के क्रमिक विकास का मूल आधार ज्ञान ही रहा है। जैसे जैसे भौतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक ज्ञान का विस्तार होता गया, मनुष्य समाज उत्तरोतर विकास की सीढिय़ां चढ़ता गया। ज्ञान का अर्थ हुआ, जानना। अर्थात उस विषय की सच्चाई को जानना। जब हम स्पष्टता से किसी विषय को जान लेते हैं

बैटरियां और इलेक्ट्रॉनिक कचरा अलग से बेचने की व्यवस्था की जाए। जो प्लास्टिक कबाड़ी उठा ले वह बेच दिया जाए। अन्य गत्ता आदि भी बिक जाता है। इसके बाद जो कचरा बच जाए उसके निपटान की व्यवस्था सरकार को करनी होगी। इसके लिए सीमेंट प्लांट और अन्य ईंधन की मांग रखने वाले उद्योगों से बात

यह भी ध्यान रखना होगा कि बांस की कौनसी किस्में ज्यादा सेलुलोस दे सकती हैं। उन्हीं का रोपण करना होगा। वन विभाग, कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर, आईएचबीटी पालमपुर और इच्छुक उद्योग एक मंच पर आकर इस कार्य को सुगमता से कर सकते हैं। इस कार्य में निवेश किसी के लिए भी घाटे का सौदा नहीं हो

हमें तो हर धर्म का आदर करना सीखना होगा और आपसी मेल जोल के उदाहरणों का प्रचार करना चाहिए, न कि फूट डालने वाले उदाहरणों का… आज मैं एक ऐसे विषय पर लिख रहा हूं जिस पर बात करने से हर तरफ से आलोचना का खतरा है। फिर भी मुझे लगा कि जरूर लिखना चाहिए

इस दिशा में बांस उत्पादन भी एक बेहतर विकल्प हो सकता है। बांस खरपतवार वाली भूमि में भी सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है… हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था सेब, जल विद्युत, सीमेंट और पर्यटन के इर्द-गिर्द घूम रही है। इनमें से सीमेंट कोई टिकाऊ उद्योग नहीं है। कुछ वर्षों में सीमेंट के भंडार समाप्त हो ही

जो साधन और समय एक-दूसरे को नीचा दिखाने और टकरावों में खर्च हो रहे हैं, वे नई-नई पैदा हो रही समस्याओं के समाधान पर खर्च हो सकते हैं। आखिर मनुष्य की बुनियादी जरूरतें और आकांक्षाएं तो एक जैसी ही हैं। रोटी, कपड़ा और मकान के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, विपत्तियों को निपटने की क्षमता और सुरक्षा।

एक एकड़ में बांस के लगभग 200 पौधे लगाए जा सकते हैं जिससे चार साल के बाद प्रतिवर्ष लगभग 2000 बांस निकाले जा सकते हैं, जिससे 100 रुपए प्रति बांस के हिसाब से दो लाख रुपए कमाए जा सकते हैं। स्थानीय मांग सीमित होने की स्थिति में कागज़ उद्योग की मांग पर निर्भर रहना होगा।

हम जलवायु परिवर्तन के दौर में प्रवेश कर चुके हैं। गर्मी बढ़ने के साथ-साथ इसमें वर्षा भी अनिश्चित हो जाएगी। इससे सामना करना भी पड़ रहा है। यह क्रम बढ़ता जाएगा। इससे खेती के लिए पानी का संकट भी बढ़ता जाएगा, क्योंकि बारिशों के दिन कम हो जाएंगे और बौछार बढ़ जाएगी। भारत में पहले

उम्मीद की जानी चाहिए कि हिमाचल सरकार इस ओर विशेष ध्यान देकर यह सुनिश्चित करेगी कि चरागाह विकास कार्य को मनरेगा में पहली प्राथमिकता से किया जाए। इस कार्य में कोई ज्यादा सामान खरीद की भी जरूरत नहीं है। इससे अधिक मात्रा में रोजगार वर्तमान में  और दीर्घकाल में भी सृजित करने में मदद मिलेगी।