कुलभूषण उपमन्यु

आज दिन तक आवंटित भूमि पर हक हासिल करने के किए कई लोग मुकद्दमों में उलझे हुए हैं। जबकि परियोजना 70 के दशक में पूरी हो गई थी और पंजाब, राजस्थान को पानी और बिजली मिलने लग गई थी। किन्तु हिमाचल के हित आज तक फंसे हुए हैं। केंद्र सरकार को भी इस ओर ध्यान देकर निर्णय करवाना चाहिए, किन्तु वहां से भी चुप जैसी स्थिति क्यों बनी रहती है, समझ से परे है। ताजा मामला

महा पंचायत समाप्त होने के बाद भीड़ निर्माण स्थल में घुस गई और सोलन पुलिस से टकराव हो गया। निर्माण कार्य को भी क्षति हुई और कुछ लोगों को चोटें भी आईं, जो हिमाचल के शांतिपूर्ण माहौल के लिए चिंता की बात है, जिसकी निंदा करना भी जरूरी है। आंदोलनकारियों के खिलाफ मुकद्दमे दर्ज कि

हिमालय के लोग विकास रोकने के पक्ष में कदापि नहीं हैं, किंतु अंधाधुंध विकास के नाम पर होने वाली तबाही से बचकर टिकाऊ विकास के लिए आवाज उठा रहे हैं...

मंत्री जी का आर्थिक मदद के लिए धन्यवाद करते हुए यह कहना जरूरी होगा कि यदि हिमालय में पर्वत विशिष्ट विकास मॉडल के अनुरूप निर्माण को जरूरी नहीं बनाया गया तो सारे प्रयास हिमालयी क्षेत्र में तबाही लाने वाले साबित हो सकते हैं...

हिमालय की पर्यावरणीय और पारिस्थितिकीय सुरक्षा एक राष्ट्रीय मुद्दा है और सीमाओं की सुरक्षा जितना ही महत्वपूर्ण भी है। आखिर हम सीमाओं की सुरक्षा अपनी मानव आबादी की खुशहाली, संसाधनों के सदुपयोग और सुरक्षा एवं सतत विकास के लिए ही तो करते हैं। हिमालय एक सबसे कम आयु की पर्वत श्रृंखला है जो अभी तक भी निर्माण की अवस्था में है। इस कारण इसकी चट्टानें अभी तक भी भुरभुरी और नाजुक

हालांकि इस विषय पर चर्चा तो सरकारी क्षेत्रों में चलती रहती है, वर्तमान सरकार में भी नीति आयोग द्वारा हिमालयी क्षेत्र में विकास की दिशा तय करने के लिए रीजनल कौंसिल का गठन किया गया है, किंतु अभी तक इस संस्था की कोई गतिविधि सामने नहीं आई है। अब समय है कि सब नींद से

दूसरी समस्या यह है कि पत्तों की पत्तल को एक-दो सप्ताह से ज्यादा रखना संभव नहीं होता है, इसमें फंगस लग जाती है। इसके लिए हाथ से संचालित छोटी मशीनें आ गई हैं जो गर्म डाई से प्रेस करके पत्तल को सुखा भी देती हंै और प्लास्टिक या कागज की प्लेटों की तरह थाली का

अनियंत्रित वाहन आगमन से फैलने वाले धुएं से स्थानीय स्तर पर तापमान वृद्धि की संभावना बढ़ जाती है… विश्व भर में पर्वतीय क्षेत्र अगम्यता और नाजुकता के कारण हाशिए पर रहते आये हैं। इस तथ्य को मान्यता देते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1992 के पर्यावरण और विकास पर आयोजित रिओ सम्मेलन में माउंटेन एजेंडा

जलवायु परिवर्तन के दौर में पूरी दुनिया में जल आपूर्ति अपने आप में एक चुनौती के रूप में उभरती दिख रही है। पृथ्वी का 71 प्रतिशत हिस्सा पानी से ढका हुआ है। कुल उपलब्ध जल का 97 फीसदी भाग सागरों में है, जो खारा है, इसलिए पीने या सिंचाई के काम नहीं आ सकता है।