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साधना करते समय जिस वस्तु पर बैठा जाता है, उसे आसन कहते हैं। आसन कुशा, मृगछाला या ऊन का होता है। जिस आसन पर बैठकर अधिक समय तक साधना की जा सके और शरीर में दर्द या कष्ट न हो, वह सुखासन होता है। तपस्वी जनों के लिए कुशा या मृगछाला का आसन ठीक है,

वैदिक साहित्य को श्रुति भी कहा जाता है। दरअसल ऋषियों ने भी इस साहित्य को श्रवण परंपरा से ही ग्रहण किया था। वेद के मुख्य मंत्र भाग को संहिता कहते हैं। वेदों की मुख्य भाषा संस्कृत है। इसे वैदिक संस्कृति भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन संस्कृत शब्दों के प्रयोग और

भागवत पुराण कृष्ण की आठ पत्नियों का वर्णन करता है जो इस अनुक्रम में हैं : रुक्मिणी, सत्यभामा, जबावती, कालिंदी, मित्रवृंदा, नाग्नजिती (जिसे सत्य भी कहा जाता है), भद्रा और लक्ष्मणा (जिसे मद्रा भी कहते हैं)। डेनिस हडसन के अनुसार यह एक रूपक है, आठों पत्नियां उनके अलग पहलू को दर्शाती हैं। जॉर्ज विलियम्स के

स्वामी विवेकानंद गतांक से आगे… नरेंद्र के पिता की उदारता, ज्ञान गरिमा और पर दुःखी कातरता का नरेंद्र पर काफी असर हुआ था। नरेंद्र दो साल तक रायपुर में रहकर फिर कलकत्ता लौट आए। नरेंद्र ने किशोर मन को सुसंस्कृत बनाने में इन दो वर्षों का बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान है। जब नरेंद्र सोलह साल का

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए

ओशो पहली बात धर्मगुरु और सद्गुरु में फर्क कर लेना। धर्मगुरु तो अकसर थोथा होता है,जैसे पोप धर्मगुरु हैं। अगर पोप को धर्मगुरु कहते हो, तो जीजस को धर्मगुरु मत कहना। वह जीजस का अपमान हो जाएगा। जीजस के लिए सद्गुरु शब्द उपयोग करो। पुरी के शंकराचार्य धर्मगुरु हैं, लेकिन आदिशंकराचार्य को धर्मगुरु मत कहना,

* ईश्वर ने हमारे मस्तिष्क और व्यक्तित्व में असीमित शक्तियां और क्षमता दी है * विपत्तियों में ही लोग अपनी शक्ति से परिचित होते हैं, समृद्धि में नहीं * अहंकार मनुष्य का बहुत बड़ा दुश्मन है। वह सोने के हार को भी मिट्टी बना देता है * तपस्या धर्म का पहला और आखिरी कदम है

स्वामी रामस्वरूप श्लोक 9/9 में श्रीकृष्ण महाराज परमेश्वर की ओर से कह रहे हैं कि हे अर्जुन सृष्टि की रचना करने वाले कर्म मुझको कर्म में लिप्त नहीं करते अर्थात मैं (निराकार परमेश्वर) तीन गुणों वाली प्रकृति द्वारा सृष्टि रचना, पालना एवं प्रलय आदि अनंत दिव्य कर्म करता हूं, परंतु यह सब कर्म मुझे बंधन

उन्हें प्रेत द्वारा सूचना दी गई कि – ‘सम्राट एडवर्ड अब कुछ ही दिन जीवित रह सकेंगे, उनकी उसी कोवे में मृत्यु होगी, जिसमें कि वे जन्मे थे।’ महारानी उन दिनों ‘विंडसर प्रासाद’ में थीं। उन्हें समाचार मिला कि सम्राट कुछ साधारण से अस्वस्थ हैं, पर चिंता जैसी कोई बात जरा भी नहीं है, तो