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कांगड़ा घाटी हमेशा से ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रही है।  इसकी शांखलाएं पश्चिम से पूर्व की ओर लगातार उठाव लिए हुए हैं जो शाहपुर से बैजनाथ और पालमपुर की ओर विकसित हैं। आगंतुकों ने अपने यात्रा वृत्तांतों में कांगड़ा घाटी की सुंदरता तथा यहां की संस्कृति का विस्तृत वर्णन किया हुआ है… गतांक

किसी नवीन संवत को चलाने की शास्त्रीय विधि यह है कि जिस नरेश को अपना संवत चलाना हो, उसे संवत चलाने के दिन से पूर्व कम से कम अपने पूरे राज्य में जितने भी लोग किसी के ऋणी हों, उनका ऋण अपनी ओर से चुका देना चाहिए। विक्रमी संवत का प्रणेता सम्राट विक्रमादित्य को माना

रथ का मेला वृंदावन (उत्तर प्रदेश) में महत्त्वपूर्ण उत्सव है। होली समाप्त होते ही चैत्र कृष्ण पक्ष द्वितीया से रंगनाथ जी, वृंदावन के मंदिर का प्रसिद्ध रथ मेला प्रारंभ हो जाता है। प्रतिदिन विभिन्न सोने-चांदी के वाहनों पर रंगनाथ जी की सवारी निकलती है। चैत्र कृष्ण नवमी को रथ का मेला तथा दसवीं को भव्य

।। अथ श्री दुर्गा सहस्रनाम स्तोत्रम् ।। नारद उवाच कुमार गुणगंभीर देवसेनापते प्रभो। सर्वाभीष्टप्रदं पुंसां सर्वपापप्रणाशनम्।। 1।। गुह्याद्गुह्यतरं स्तोत्रं भक्तिवर्धकमञ्जसा। मङ्गलं ग्रहपीडादिशांतिदं वक्तुमर्हसि।। 2।। स्कंद उवाच शृणु नारद देवर्षे लोकानुग्रहकाम्यया। यत्पृच्छसि परं पुण्यं तत्ते वक्ष्यामि कौतुकात्।। 3।। माता मे लोकजननी हिमवन्नगसत्तमात्। मेनायां ब्रह्मवादिन्यां प्रादुर्भूता हरप्रिया।। 4।। महता तपसाऽऽराध्य शङ्करं लोकशङ्करम्। स्वमेव वल्लभं भेजे कलेव हि

यह पीठ हमीरपुर से 45 किलोमीटर दूर दियोट सिद्ध नामक सुरम्य पहाड़ी पर है। इसका प्रबंध हिमाचल सरकार के अधीन है। हमारे देश में अनेकोनेक देवी-देवताओं के अलावा नौ नाथ और चौरासी सिद्ध भी हुए हैं, जो सहस्रों वर्षों तक जीवित रहते हैं और आज भी अपने सूक्ष्म रूप में वे लोक में विचरण करते

उत्तराखंड को महादेव शिव की तपस्थली भी कहा जाता है। भगवान शिव इसी धरा पर निवास करते हैं। इसी जगह पर भगवान शिव का एक मंदिर बेहद ही खूबसूरत जगह पर मौजूद है और वह है ताड़केश्वर महादेव का मंदिर। मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मन्नत भगवान पूरी करते हैं… देवभूमि

गणगौर त्योहार मुख्यतः राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है। यह पर्व विशेष रूप से महिलाएं मनाती हैं। विवाहिता महिलाएं पति की लंबी आयु और कुशल वैवाहिक जीवन के लिए और अविवाहित कन्याएं मनोवांछित वर पाने के लिए गणगौर पूजा करती हैं। हालांकि गणगौर का पर्व होली के दूसरे दिन से ही आरंभ हो जाता

31 मार्च रविवार, चैत्र, कृष्णपक्ष, एकादशी, पापमोचनी एकादशी व्रत 1 अप्रैल सोमवार, चैत्र, कृष्णपक्ष, द्वादशी, पंचक प्रारंभ 2 अप्रैल मंगलवार, चैत्र,  कृष्णपक्ष, द्वादशी, भौम प्रदोष व्रत 3 अप्रैल बुधवार,  चैत्र,  कृष्णपक्ष, त्रयोदशी, मेला पिहोवा तीर्थ 4 अप्रैल बृहस्पतिवार, चैत्र,  कृष्णपक्ष, चतुर्दशी 5 अप्रैल शुक्रवार, चैत्र, कृष्णपक्ष, अमावस, विक्रमी संवत 2075 पूर्ण 6 अप्रैल शनिवार, चैत्र,