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वह प्रसिद्ध दानकर्ता भी था और उसको यहां अन्न दान ग्रहण करने वालों का समूह सदैव इकट्ठा होता रहता था। एक समय उस उद्दालक ऋषि ने ‘विश्वजित’ नामक यज्ञ किया और उसमें अपना सर्वस्व ब्राह्मणों को दान कर देने का संकल्प किया। उस उद्दालक ऋषि के नचिकेता नाम का पुत्र था, जिसे वह बहुत स्नेह

श्रीश्री रविशंकर श्रद्धा और सजगता, दोनों एक दूसरे के विरोधाभासी लगते हैं। जब तुम पूर्णतः जागरूक होते हो तो अकसर श्रद्धा नहीं रहती और तुम व्याकुल एवं असुरक्षित महसूस करते हो। जब तुम किसी पर पूर्ण विश्वास कर के चलते हो अर्थात श्रद्धा से चलते हो, तब मन पूर्ण रूप से शांत एवं सुरक्षित महसूस

क्लास में सवाल के जवाब में बच्चे हाथ नहीं खड़ा करते और उत्तर मालूम होने के बावजूद नहीं बता पाते। इस तरह की समस्याओं को अमूमन हम बच्चों की शर्म या झिझक समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। मगर कई बार ये आदतें बच्चे में किसी मानसिक विकार का संकेत भी हो सकती हैं। ऐसा ही

अवधेशानंद गिरि जब तक सृष्टि है तब तक विषमता का रहना सर्वथा अनिवार्य है। प्रकृति, स्वभाव एवं व्यवहार आदि की इस विषमता में भी जो समता देखता है,उसके मन में व्यवहार भेद होने पर भी राग द्वेष या मोह-घृणा का अभाव होता है। जो तमाम भेदों को एक ही शरीर के विभिन्न अंगों तथा अवयवों

सुचारू विधिना मास सहस्र प्रत्यह जपेत। आयुष्कामः शुचै देशे प्राप्नुयादायुरूत्त्मम्। 53। सही रीति से नियमित एक सहस्र जप एक मास तक करने से आयु की वृद्धि होती है तथा बल बढ़ता है तथा वह दीर्घायु और बल उत्तम देश में प्राप्त होता है… -गतांक से आगे… मतिमारोग्यामापयुष्यन्नित्य स्वास्थ्यमवाप्नुयात। कर्याष्प्रिअन्यमुद्दिश्य सोअपि पुष्टिमवाप्नुयात। 52। प्रतिदिन हवन करने

श्रीराम शर्मा अध्यात्म की तुलना अमृत, पारस और कल्पवृक्ष से की गई है। इस महान तत्त्व ज्ञान के संपर्क में आकर मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप को, बल और महत्त्व को, पक्ष और प्रयोजन को ठीक तरह समझ लेता है। इस आस्था के आधार पर विनिमत कार्य पद्धति को दृढ़तापूर्वक अपनाए रहने पर वह महामानव बन

श्लोक 8/28 में आए पद वेदेषु,यज्ञेषु तपः सु एवं दानेषु, पर हम क्रमशः वैदिक विचार करेंगे। इस कटु सत्य की सभी विद्वानों को जानकारी है कि वेद ईश्वर से उत्पन्न अनादि, अनंत एवं अविनाशी वाणी है। ईश्वर सत्य है अतः वेदों का अध्ययन,वेदों का सुनना, वेदों के अनुसार चलना यह सभी  सत्य कर्म हैं, जिनका

* सफल होने के लिए दो चीजों की जरूरत है, पहला लोगों की परवाह न करना और दूसरा आत्म मनोबल * लगातार आगे बढ़ते रहने के लिए यह जरूरी है कि हम निरंतर अपने लक्ष्य और बड़े करते जाएं * दुख जीवन में इसलिए आते हैं ताकि हम सुख का महत्त्व समझ सकें * ज्ञान

मानव शरीर कुदरत की देन है। इसलिए इसमें रोग प्रतिरोधी प्रणाली का भी समावेश होता है और यह किसी भी प्रकार के इन्फेक्शन से शरीर का बचाव करती है, लेकिन जब यह प्रणाली अपने शरीर और संक्रमण के बीच का भेद या फर्क को न समझ पाए और अपने ही शरीर के स्वस्थ टिश्यू पर