संपादकीय

भारत तीसरा सबसे अधिक प्रदूषित देश है, जिसकी राजधानी दिल्ली दुनिया की सबसे अधिक प्रदूषित राजधानी है। भारत की करीब 96 फीसदी आबादी जहरीली हवा में जीने को विवश है। प्रदूषण के लिए जिम्मेदार सूक्ष्मतम कण पीएम 2.5 होना चाहिए, लेकिन दिल्ली का पीएम 92.7 है। बांग्लादेश की राजधानी ढाका पीएम 80.2 के साथ दूसरे स्थान पर है। भारत के 7800 शहरों में से मात्र 9 फीसदी ही ऐसे हैं, जो मानकों पर खरे उतरते हैं। सिर्फ यही नहीं, सबसे प्रदूषित 50 शहरों में से 42 शहर भारत के हैं। प्रदू

कांग्रेस के अपने ही सवाल पीछा नहीं छोड़ रहे, तो पार्टी चुनावी प्रश्रों पर अपना मत कैसे जुटाएगी। यहां कांग्रेस की जीती हुई सीटें क्यों निराश हुईं, सियासत ने तो बंद दरवाजों को हंसते देखा है। आश्चर्य है कि छह घंटियों के शोर से भी कांग्रेस के कान नहीं खुले, तो अब नया शोर कान फाडऩे पर उतारू है। सियासत के अपने दुर्ग और वीरभद्र की विरासत की प्रतीक मानी गईं प्रतिभा सिंह जो कह रही हैं, उसे प्रदेश तो सुन रहा है- कांग्रेस सुने या न सुने। पिछली संसद में जब प्रतिभा सिंह सांसद बनीं, तो कां

सही समय पर प्रशासनिक दखल के परिणाम किस तरह बेहतर हो सकते हैं, इसका एक उदाहरण एचआरटीसी के प्रबंध निदेशक रोहन चंद ठाकुर ने पेश किया है। वह डीटीसी के साथ एक अनुबंध करके न केवल दिल्ली जा रही सरकारी बसों के लिए उनके राजघाट परिसर में पार्क करने की व्यवस्था कर रहे हैं, बल्कि वहां ड्राइवर-कंडक्टरों के लिए विश्राम की उचित व्यवस्था भी कर रहे हैं। इस तरह एचआरटीसी सालाना अपने व्यय में करीब दो करोड़ की बचत करते हुए भविष्य के रास्ते खोज रही है। यह दीगर है कि सरकारी

आज एक ऐसा मुद्दा उठा रहे हैं, जो हमारे शिक्षण-संस्थानों के भीतर हिंसक भीड़ और उनके हमलों से जुड़ा है। यह भीड़ हमारी संस्कृति और हमारे मूल्यों से जुड़ी नहीं है, बल्कि एक देश के तौर पर हमें कलंकित करती है। जब मामला विदेशी छात्रों पर हिंसक हमले का सामने आता है, तब हमारे चिंता और सरोकार बढ़ जाते हैं। चूंकि दुनिया एक कुटुम्ब की तरह, आपस में अंतरंग रूप से, जु

यहां धुंध का धुंध से संघर्ष, लोग जीत देखने को बीच में खड़े। फिलहाल हिमाचल में केवल लोकसभा या विधानसभा उपचुनाव का डंका नहीं बज रहा, बल्कि निगाहें ढूंढ रही हैं हारी हुई चरागाहें। यहां अंदेशा और अंदाजा एक साथ समीकरणों की खींचतान कर रहा है। हर पल के कदम अदालत तक पहुंचे हुए, कल तक कयास में थे कि बागी विधायकों को कानून का कितना फैसला मिलता, लेकिन आज

चुनावी बॉन्ड को सर्वोच्च अदालत ‘असंवैधानिक’ करार दे चुकी है और उन पर रोक भी लगा दी गई है, लिहाजा यह अध्याय यहीं समाप्त हो जाना चाहिए था। अब चुनाव आयोग अपनी वेबसाइट पर वे ब्योरे जारी कर रहा...

हिमाचल में कांग्रेस का नया युग, बीते कल से मुकाबला कर रहा है। जाहिर है भाषण और भाषा सडक़ की सभ्यता में नए उच्चारण तक पहुंच गई है या राजनीति का मनोविज्ञान अब बोलने की नई परिभाषा है। आगामी लोकसभा चुनाव की फांस में सरकार, सत्ता और कांग्रेस के बीच नए अफसाने जन्म ले रहे

जनादेश का लोकतांत्रिक पर्व एक बार फिर आया है। यह ऐसा पर्व है, जब देश की आम जनता वोट देकर लोकतंत्र को जिंदा रखती है और इस तरह देश के गणतंत्र और संविधान भी प्रासंगिक रहते हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का चुनावी पर्व भी व्यापक और गहरा होता है। करीब 97 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर 18वीं लोकसभा, विधानसभाओं और अंतत: भारत सरकार का निर्वाचन करेंगे। इससे बड़ा लोकतंत्र और क्या हो सकता है? इतना विशाल और विराट लोकतंत्र अपने अस्तित्व के खतरे में कैसे हो

राष्ट्रीय चुनाव की कसौटी के बीच हिमाचल की अपनी भी एक पड़ताल अवश्यंभावी दिखाई दे रही है। भले ही आज यानी 18 मार्च में वक्त की सूइयां सुप्रीम कोर्ट से मुखातिब हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव के साथ उपचुनाव के दस्तावेज तैयार हैं। राजनीतिक घटनाक्रम किसको दगा दे गया या आगे चलकर उपचुनाव किस करवट बैठेंगे, यह कयास लगाना इतना भी आसान नहीं कि हम