संपादकीय

राष्ट्रीय राजनीति का एक और ढेर दिल्ली में लगा। वहां टूटी-फूटी नीतियां, सड़ी गली रेवडिय़ां और वादों-इरादों के कंकाल निकल आए। आम आदमी की राजनीति चकनाचूर, कांग्रेस की मेहनत फिजूल और इंडिया गठबंधन का उसूल बिखर गया। देश ने हरियाणा, महाराष्ट्र के बाद दिल्ली में भाजपा का आत्मविश्वास देखा, चमत्कार देखा और बदलती सियासत के हालात देखे। केजरीवाल कल तक एक संस्था की तरह देखे गए, अब उनके अध्यायों में सबक उभर रहे हैं। कुछ

अमरीका ने 104 अवैध भारतीय प्रवासियों को वापस भेजा है। वायुसेना के विमान के बजाय सामान्य यात्री विमान से उन्हें भेजा जा सकता था, क्योंकि सैन्य विमान का हमारी सरजमीं पर उतरना देश की संप्रभुता के खिलाफ है।

आर्थिकी और विकास के गठजोड़ पर हिमाचल की सूरत सुधारने का एक बड़ा ख्वाब ‘हिमाचल-2045 संगोष्ठी शृंखला’ लेकर आ रही है। मनमोहन सिंह हिमाचल प्रदेश लोक प्रशासनिक संस्थान (एमएसएचआईपीए) के तत्वावधान में होने जा रही तीन...

पालमपुर में आई आई टी मंडी के विस्तार परिसर के नींव पत्थर उठाए प्रदेश के आई टी सलाहकार गोकुल बुटेल को साधुवाद दें या इस कैंपस से जुड़ी उम्मीदों में रोजगार खोजें। किसी भी शिक्षण संस्थान के राष्ट्रीय महत्त्व से हिमाचल की काबिलीयत बढ़ती है और यही चमक हमीरपुर के एनआईटी, बिलासपुर के एम्स, हमीरपुर के राष्ट्रीय होटल प्रबंधन संस्थान, कांगड़ा के राष्ट्रीय फैशन टेक्नालोजी इंस्टीट्यूट, गरली-परागपुर के राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ व ऊना के ट्रिपल आई टी

दिल्ली ने मतदान कर दिया। अब 8 फरवरी को जनादेश घोषित किया जाएगा कि दिल्ली किस पार्टी के पक्ष में है। बुधवार, 5 फरवरी की देर रात तक 60.4 फीसदी मतदान दर्ज किया गया, यह चुनाव आयोग का अधिकृत आंकड़ा है। कुल करीब 1.56 करोड़ मतदाताओं में से 65 लाख से अधिक मतदाताओं ने मतदान ही नहीं किया। दिल्ली जैसे राजधानी महानगर में यह उदासीनता महत्वपूर्ण है। दिल्ली का समूचा विचार और राजनीतिक सोच स्पष्ट नहीं हो पाती। जनादेश भी अधूरा ही रहेगा। दिल्ली सबसे शिक्षित और जागरूक महानगर है। उसके बावजूद चुनाव-प्रक्रिया के प्रति यह उदासीनता भी निराश करती है। लोकतंत्र

प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर सियासी जवाब दिया और विपक्ष को निशाने पर रखा। यह संसदीय परंपरा है कि केंद्र में राष्ट्रपति मौजूदा सरकार की नीतियों और उसके कार्यक्रमों पर...

विधायक प्राथमिकता बैठक से रूठा भाजपा का कुनबा भले ही बहिष्कार करता रहा, लेकिन प्रदेश के सत्ता पक्ष ने अपनी जमीन हथिया ली। विपक्ष की गैर मौजूदगी का आक्रोश छन से बाहर आया, तो मालूम हुआ कि हमारी राजनीति का स्तर...

क्या राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के विधानसभा चुनाव में 20 लाख से अधिक घुसपैठिए मतदान करेंगे? क्या देश की राजधानी में इतने रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं? यदि हैं, तो राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ करने का दोषी और जवाबदेह कौन है? क्या लाखों अवैध शरणार्थियों को, सिर्फ चुनाव के मद्देनजर, राजनी

जिस खेत का बीज बंट जाए, उसकी फसल की कीमत क्या होगी। सरकार की हाजिरी में विपक्ष की नाराजगी का एक पक्ष तो समझ आता है, लेकिन यहां तो सरहदें मापी जा रही हैं ईमानदारी के दस्तूर से। एक मत किसी को सरकार, किसी को विपक्ष बना गया, लेकिन यह क्या कि आपने जनता को बांटने के हर्फ सीख लिए। भाजपा विधायकों ने डंके की चोट पर विधायक प्राथमिक बैठकों का विरोध चुना था, इसलिए ये कांग्रेस के लिए, कांग्रेस के पक्ष में एकतरफा खड़ी कर दी गईं। सरकार के दो वर्षों का फासला इतना बढ़ गया कि प्रदेश की छत के नीचे दो परस्पर विरोधी दीवारें टकरा रही हैं और ईंटें हिमाचल की हराम होने लगीं। भाजपा की घुटन का पैगाम सख्त