संपादकीय

बाबा रामदेव कई मायनों में श्रद्धेय हैं। कमोबेश इस दौर के ‘योग-पुरुष’ हैं, जिन्होंने एक कड़ी साधना को इतना आसान बना दिया है कि औसत पार्क या सभा-स्थलों पर असंख्य लोग योगासन करते देखे जा सकते हैं।

हिमाचल में चुनावी बिसात पर इस बार नए दांव पेंच के अलावा केंद्र बनाम राज्य की सीधी टक्कर होने जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर शतरंज के माहिर खिलाड़ी हैं, तो मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू भी सियासी खेल...

हिमाचल में लोकसभा चुनाव के साथ नत्थी विधानसभा उपचुनाव की तासीर में या तो जलवे करेंगे कमाल या अति महत्त्वाकांक्षा हो जाएगी शिकार। पहले जलवों का जिक्र करें, तो भाजपा की रणनीति में केंद्रीय ताकत का...

दिल्ली के शराब घोटाले में आम आदमी पार्टी (आप) के राज्यसभा सांसद संजय सिंह को जमानत मिलना उनकी बेगुनाही का प्रमाण-पत्र नहीं है। जमानत का वैधानिक, तकनीकी आधार भी है और न्यायाधीशों के विवेक का विशेषाधिकार भी है।

समूचे बांग्लादेश को याद रखना चाहिए कि यदि वह अस्तित्व में है, तो भारत की बदौलत है। 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति का युद्ध भारतीय सेना ने लड़ा था और पाकिस्तान के 90,000 से अधिक फौजियों को आत्म-समर्पण के लिए विवश किया था। मुक्ति-संग्राम के दौरान शेख मुजी

अभी नवरात्रि आगमन की सूचना भर ही थी कि श्रद्धालुओं ने ज्वालामुखी मंदिर की व्यवस्था को निकम्मा साबित कर दिया। सप्ताहांत पर्यटन की शुमारी में बड़े मंदिर के दर्शन छोटे हो गए, तो उस दावे को पलीता लग गया जो हिमाचल में पांच करोड़ पर्यटकों का इंतजार कर रहा है। हम कारणों को समझे बिना व्यवस्था-व्यवस्था चिल्लाते हैं, जबकि न तो योजना की परिकल्पना और न भविष्य की संरचना में कुछ हो रहा है। सारे पर्यटन की मुट्ठी में होटलों को भरने की कोशिश इस कद्र हावी है कि सत्ता का हर पक्ष भी सरकारी हो

राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के समर्थक और भाजपा-विरोधी बड़े नेता मौजूद थे। एकजुटता साफ नजर आ रही थी। उनमें से अधिकतर ने देश को आगाह किया कि यदि तीसरी बार भी मोदी सरकार बनी, तो देश का संविधान बदलने की शुरुआत होगी। शासन और भी एकाधिकारवादी हो जाएगा। भारत रूस बन सकता है। लोकतंत्र की आत्मा

हिमाचल विधानसभा का आचरण पहले जनादेश की काबिलीयत में प्रतिबिंबित होता था, वही अब अकालग्रस्त सियासी चरित्र की परिक्रमा में व्यस्त है। छोटे से प्रदेश में आखिर इतने बड़े नखरे क्यों सुशोभित होने लगे। आश्चर्य यह कि तीन निर्दलीय विधायकों के इस्तीफे अब खुराफाती मंजर की दुहाई देने लगे। न चैन की बांसुरी पहले विधानसभा चुनाव में बजी और न अब उपचुनाव की संगत में मुंह छुपाने की होड़ असरदार दिखाई देती है। मुगालते में लोकतंत्र को यह भी मालूम नहीं कि नैतिकता के इस्तीफे किस क

पुनर्वास के मानदंड पर सुक्खू सरकार ने, कांगड़ा एयरपोर्ट विकास के सभी पहलुओं को एक नई परिभाषा दी है। विकास की जरूरतों में महज योजना नहीं, इनसान की सहमति का नया परिदृश्य भी खड़ा करना पड़ता है। भीतर ही भीतर हर विकास की कडिय़ों में मानव की गतिविधियों का संसार भी बसाना पड़ता है। जाहिर तौर पर कांगड़ा एयरपोर्ट सिर्फ विस्तार का नक्शा नहीं, सरकार की इच्छाशक्ति और भविष्य के समर्थन की सहमति भी है। यहां महज विकास का भविष्य नहीं, विस्थापित जनता का भविष्य भी सर्वोपरि दिखाई दे रहा है, इसलिए अब मुआवजे की राशि वास्तविक कीमत को पांच गुना तक पहुंचा रही है तो कर्मक्षेत्र को भी