संपादकीय

विभागीय कसौटियों में अब सतसंग, लोक परंपराएं और धार्मिक मान्यताएं भी शरीक होने लगी हैं। यह कला, संस्कृति एवं भाषा विभाग के दायित्व में हो, तो इसके उद्देश्य समझे जा सकते हैं, लेकिन जल शक्ति विभाग भी अगर पानी के लिए मंदिरों में अरदास करता दिखे, तो योजनाओं पर किए गए हस्ताक्षर गौण हो जाएंगे। धर्मशाला के जल शक्ति विभाग का सारा कुनबा इंद्रु नाग की शरण में दंडवत है, क्योंकि अब तक सारी परियोजनाएं बहते पानी में हाथ धोती रहीं। न जल संरक्षण की कोई प्राथमिकता और न ही जलापूर्ति संरचना की कोई वैज्ञानिक या आवश्यकता के अनुरूप स्थायी बंदोबस्त। प्रकृति मेहरबान रहे, बारिशें

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2025-26 के लिए जो बजट लोकसभा में पेश किया है, उसकी बुनियादी व्याख्या यह की जा रही है कि देश का मध्य वर्ग, वेतनभोगी वर्ग ‘बम-बम’ है। मोदी सरकार ने लंबे इंतजार के बाद मध्य वर्ग की मुराद पूरी की है। यह ‘बम-बम’ स्थिति कुछ हद तक सही भी है, क्योंकि अब 12.75 लाख रुपए सालाना तक की आय आयकर-मुक्त होगी। इसमें हमने 75,000 रुपए ‘मानक कटौती’ के भी जोड़ दिए हैं। अब इतनी आय वाले को साला

कहीं तालियां, कहीं बाहुपाश, हर बजट की समझ में खुद को ढूंढना अब इल्तिजा है। यूं तो केंद्रीय बजट का शृंगार मध्यम वर्ग की संवेदना पर मरहम लगाता प्रतीत हो रहा है, लेकिन छोटे मंसूबों में बड़े उपकार के मुहावरे समझना कठिन है। अब सीधा गणित है भी नहीं कि हम अपने राज्य के आसपास बजट को सीधा खड़ा कर दें, फिर भी तलाश यह है कि हिमाचल इसके भीतर अपनी आर्थिक मुराद पूरी करे। केंद्र से सीधे संबोधन की सुर्खियां लालायित करती हैं, तो हिमाचल का मध्यम वर्ग आयकर के बार

यमुना नदी के जहरीले पानी पर दिल्ली चुनाव में वाकई जंग छिड़ी है। इसमें आम आदमी पार्टी (आप), भाजपा ही शामिल नहीं हैं, बल्कि चुनाव आयोग का युद्ध अलग किस्म का है। उसके निशाने पर ‘आप’ और केजरीवाल हैं। आयोग ने ‘आप’ के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल से पांच और सवाल पूछे थे। केजरीवाल ने यहां तक आरोप लगाया था कि हरियाणा सरकार ने यमुना के पानी में जहर मिलाने की साजिश रची थी। यदि दिल्ली सरकार के इंजीनियरों ने विषाक्त पानी को यथासमय न रोका होता, तो दिल्ली में ‘नरसंहार’ भी हो सकता था। यह बेहद गंभीर और नाजुक आरोप है, लिहाजा चुनाव आयोग तह तक

अंतत: साबित हो गया कि महाकुंभ प्रयागराज में ‘त्रासद हादसा’ हुआ। भीड़ के कारण भगदड़ मची। भगदड़ वैसी ही थी, जैसी इतिहास में दर्ज हैं और हम कई बार देख-सुन चुके हैं। जिंदगी एक भी बेहद अमूल्य है, वह किसी भी सूरत में कुचली नहीं जानी चाहिए। यह अक्षम्य मानवीय अपराध तय होना चाहिए। मौत निश्चित और अपरिहार्य है, लेकिन मौत वह होनी चाहिए, जो नियति ने तय की हो। क्या महाकुंभ की त्रासदी को भी नियति मान लिया जाए? महाकुंभ में करोड़ों श्रद्धालु पुण्य कमाने गए थे और अब भी जा रहे हैं, प्रधानमंत्री मोदी ने भी उन्हें ‘पुण्यात्मा’ माना है, वे पूर्णत: आस्थामय थे, लिहाजा पवित्र संगम घाट से 200 मीटर की दूरी तक पहुंच गए थे। फिर उनकी आस्था अधूरी क्यों रही? शायद यही नियति हो! बहरहाल भगदड़ मची और सोते, विश्राम करते भक्त

कैडर की समीक्षा में सुक्खू सरकार के दरवाजे पर राष्ट्रीय प्रशासनिक सेवाओं का प्रवेश, जरूरत और सुविधा के ऊपर निर्भर कर रहा है। प्रशासनिक सफर की कहानी में यूं तो वर्षों से ब्यूरोक्रेसी की राष्ट्रीय पहचान इंगित होती रही है, लेकिन राज्य के अपने सरोकार मिट्टी के लालों से कहीं अधिक फलीभूत होते हैं। सरकार की मशीनरी में कितना बोझ, कितना वित्तीय दबाव है, इसकी एक परख वर्तमान सरकार के फैसले से हो रही है। सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार की ओर से स्पष्ट किया गया है कि अब राष्ट्रीय प्रशासनिक कैडर में ‘बस अब और नहीं’ की स्थिति है। हिमाचल के प्रशासनिक ढांचे में 153 आईएएस अधिकारियों की भागीदारी अब ऐसी सीमा

महाकुंभ में आस्था और श्रद्धा का जन-सैलाब उमडऩा ही था। भगदड़ की भी आशंकाएं थीं, क्योंकि कुछ भक्त सीमाओं को लांघने पर उतारू थे। मेले में भीड़ अपरिमित और आशातीत थी। अंतत: रात में ही करीब 2 बजे बैरिकेड लांघन का दुस्साहस किया गया, अनुशासन तोड़ दिया गया, प्रशासन के निर्देशों को नकार दिया गया, नतीजतन भगदड़ मची और श्रद्धालु घायल हुए। कुछ गंभीर घायल भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बताए हैं, लेकिन बुधवार सुबह 11 बजे तक हताहत

पिछले दिनों हिमाचल मंत्रिमंडल के कई फैसलों के पीछे गहन चिंतन और भविष्य की खोज देखी जा सकती है। भांग की खेती इसी दिशा में एक ऐसा प्रयास है जो परिवेश की क्षमता में अपने विकल्प तलाश रहा है, लेकिन कुल्लू का रोप-वे एक दृढ़ प्रतिज्ञ राज्य की श्रेणी विकसित कर सकता है। कुल्लू बस स्टैंड और पीज पैराग्लाइडिंग प्वाइंट के बीच रज्जु मार्ग की परियोजना की वकालत नई आर्थिकी और नए पर्यटन का समाधान है। यह परिकल्पना पैराग्लाइडिंग और रोप-वे को जोडक़र ऐसी विविधता व सुविधा प्रदान कर सकती है, जो आगे चल कर पर्यटन के नित नए स्तंभ पैदा करेगी। मसलन बिलिंग और बीड़ के बीच रोप-

भाजपा ही नहीं, भारतीय जनसंघ का भी एक बुनियादी, वैचारिक एजेंडा लागू हो गया। समान नागरिक संहिता को कानूनन उत्तराखंड राज्य ने लागू किया है। अभी भाजपा शासित 6-7 राज्य और हैं, जहां समान नागरिक संहिता की दिशा में लगातार प्रयास जारी हैं। वहां से भी जल्द ही अच्छी खबरें आ सकती हैं। केंद्र के स्तर पर कब होगा, फिलहाल यह निश्चित नहीं है। उत्तराखंड देश का सर्वप्रथम राज्य बन गया है। भाजपा के मातृ-दल जनसंघ ने अनुच्छेद 370 को समाप्त करने और तीन तलाक को कानूनन बनाने सरीखे मुद्दों को अपना वैचारिक एजेंडा तय किया था और उसी के आधार पर राजनीति की थी। अयोध्या में राम