विधानसभा का तपोवन परिसर लोकतांत्रिक प्रतिष्ठा के सवालों पर एक ऐसी मंत्रणा तक पहुंचा, जहां देश के सियासी चरित्र पर खुलकर बात हुई। दलबदल कानून की पैरवी में हिमाचल ने सारे राष्ट्र को मूलमंत्र दिया है। ऐसे में धूमकेतु की तरह भारतीय लोकतंत्र पर चिंतन का प्रकाश कौंधा है। इस सब के पीछे हिमाचल विधानसभा के अध्यक्ष कुलदीप पठानिया का नजरिया कई तरह से सामने आया। यह पहली पहल है जिसने तपोवन परिसर में कई खिड़कियां खोल दीं और राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के
वाह कप्तान शुभमन गिल...! क्या शानदार उपलब्धि हासिल की है कि 25 साल 297 दिन की उम्र का बल्लेबाज शुभमन गिल भी मंसूर अली खां पटौदी, सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग, महेंद्र सिंह धोनी और विराट कोहली सरीखे टीम इंडिया के ऐतिहासिक बल्लेबाजों की श्रेणी में प्रवेश कर गया। टेस्ट कप्तान के तौर पर गिल ने 269 रन (30 चौके और 3 छक्के) की जो विराट पारी खेली है, उससे वह ‘सर्वोच्च कप्तान’ बन गए हैं। इंग्लैंड के खिलाफ, इंग्लैंड की सरजमीं पर, गावस्कर ने 1979 में 221 रन और ‘दीवार’ द्रविड़ ने 2002 में 217 रन की ‘सुपर पारियां’ खेली थीं, लेकिन वे टीम के कप्तान नहीं थे। ऐसे ऐतिहासिक बल्लेबाजों के कीर्तिमानों को पीछे छोड़ कर 269 रन का अपना ‘मील पत्थर’ स्थापित करना कितना सुखद और गुदगुदाने वाला लगता होगा! शुभमन ने टीम इंडिया के ‘विराट बल्लेबाज’ विराट कोहली के अभी तक के विराट स्कोर 254 रन को भी पीछे छोड़ दिया। हालांकि द
अपने अधिकारों की निशानदेही करते हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने प्राकृतिक आर्थिकी के महत्त्व को पुन: रेखांकित किया है। मौसम बरसात का था, तो तपोवन का विधानसभा परिसर बता रहा था कि पर्वत के आकाश पर कितनी बड़ी छतरी होती है, जो देश के आंचल को बचा सकती है। राष्ट्रमंडल संसदीय संघ सम्मेलन की नींव पर हिमाचल दरअसल पर्वतीय एहसास करा रहा है। जितनी जरूरी हैं पर्यावरण संरक्षण की नीतियां, उतनी ही जरूरी हैं पर्वतीय राज्यों के लिए अलग नीतियां। पर्वतीय राज्य हर सूरत और सीरत में पर्यावरण राज्य हैं। हिमालय के सारे वरदान देश को मिलते हैं, तो सिसकियां क्यों
कांवड़-यात्रा 11 जुलाई से आरंभ हो रही है। इन सालों में जो सांप्रदायिक तनाव दिखा है, नफरत महसूस की है, कमोबेश 10 साल पहले ऐसा माहौल नहीं था। हालांकि हिंदू-मुसलमान भारतीय राजनीति का शाश्वत भाव रहा है, लेकिन कांवड़-यात्रा के दौरान मुसलमान भी शिव-भक्तों की खूब सेवा करते दिखाई दिए हैं। शिविर लगाए जाते रहे हैं, भोजन परोसा जाता है, मीठा पानी पिलाया जाता है, शिव-भक्तों के जख्मों की प्राथमिक चिकित्सा भी की जाती रही है। फिर ऐसा क्या हो गया
यहां बाजार की रौनक को फिर आपदा ने डस लिया और देखते ही देखते कयामत के बादल गुजर गए। थुनाग का बाजार बार-बार नाला क्यों बना और पिछले विध्वंस से हमने क्या सीखा। इस प्रतिकूलता में हमारी प्रतिकूलता है, वरना एक छोटा सा सबक भी सदियां सुधार देता है। हम आपदा राहत को अपने बचाव की सामग्री समझते हैं, जबकि इसका उपयोग भविष्य को बचाने, संवारने और आज को सुदृढ़ करने में होना चाहिए। प्रारंभिक दृष्टि में सराज की त्रासदी अपने विकास के अस्तित्व से लड़ती रही। हिमाचल के कई अस्तित्व आपसी भिड़ंत में आपदा बन रहे हैं। अपनी गुल्लक भरने की कोशिश में सत्ता का राजनीतिक प्रभाव
महाराष्ट्र में राज ठाकरे की पार्टी के गुंडों ने एक दुकानदार को थप्पड़ों से खूब पीटा। कारण सिर्फ यह था कि दुकानदार मराठी भाषा में बोल नहीं पाया। यह दुकानदार की ही नहीं, बल्कि देश की राजभाषा हिंदी की पिटाई की गई है। ऐसे असंख्य मामले तमिलनाडु में भी सामने आए हैं, जहां हिंदी भाषियों को लतियाया गया है। मुंबई में राजनीतिक गुंडे उत्तरी भारत के लोगों को बार-बार खदेड़ते रहे हैं, लिहाजा यह एक संवेदनशील मुद्दा बन गया है। दरअसल केरल में नंबूदरीपाद से लेकर तमिलनाडु में पेरियार के हिंदी-विरोधी आंदोलन तक हिंदी लगातार पिटती रही है। उस पर राजनीतिक आरोप चस्पां किए जाते रहे हैं कि यह साम्राज्यवाद की भाषा है। संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल अन्य भाषाओं को खा जाएगी। उनके भाषा-क्षेत्र पर कब्जा कर लेगी। ये मिथ्या धारणाएं हैं। संविधान में कोई साम्राज्यवादी भाषा स्थान पा सकती है? भारत के संविधान में हिंदी को संघ की राजभाषा के तौर पर मान्यता दी गई है। देव
आपदा यह भी है कि प्रदेश सरकार के एक मंत्री अनिरुद्ध सिंह के खिलाफ एफआईआर का मसौदा दिल्ली तक तलब हो गया और यह भी कि ढहते हिमाचल में फोरलेन भी गुनहगार है। ‘विकास के ताबूत में बंद खिड़कियां, तेरे मेरे घर ने सिर्फ ढहते वक्त देखीं।’ भट्ठाकुफर में भट्ठा बैठा है, तो इमारतों का विध्वंस और एनएचएआई के अधिकारियों को ‘कंस’ बना पीटना हमारी कानून व्यवस्था का ढहना है। मंत्री का गुस्सा जायज हो सकता है, लेकिन घर की पहरेदारी में दीया जलाना उचित है, न कि मशाल से अमन की घास को जलाना जरूरी है। अब भट्ठाकुफर ने संयम के कई बांध तोडक़र यह साबित कर दिया है कि मोर्चे सजेंगे और
वक्फ संशोधन कानून पर फिर सियासत सुलगने लगी है। बिहार में विधानसभा चुनाव अक्तूबर में हो सकते हैं, लिहाजा सियासत ध्रुवीकरण में तबदील होने लगी है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए हुंकार भरी कि यदि ‘इंडिया’ गठबंधन चुनाव में जीता, तो वक्फ कानून को कूड़ेदान में फेंकने का काम करेगा। यह बिहार की 17.7 फीसदी मुस्लिम आबादी को अपने पक्ष में लामबंद करने की सियासत है। जनसभा का आयोजन ‘इमारत-ए-शरिया’ नामक कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन ने किया था, लिहाजा ‘शरिया कानून’ लागू करने की भी हुंकारें भरी गईं। भारत में सभी राज्य, यहां तक कि पंचायतें भी, संविधान से संचालित होते हैं। ये तमाम हुंकारें महज चुनावी हैं, क्योंकि ये असंवैधानिक हैं। यह देश भी इस्लामी नहीं है। फिर भी ये हुंकारें संसद के लिए गंभीर चुनौती हैं, संसद को धमका रही हैं कि उसके दोनों सदनों में पारित विधेयक और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हस्ताक्षर के बाद बने कानून को कूड़े
अपनी निरंतर पारी के चौक चौबंद दरवाजों को तीसरी बार लांघकर पुन: डा. राजीव बिंदल का भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बनना, उनके व्यक्तित्व के ढोल पीट रहा है। क्योंकि यह भाजपा में हो रहा है, इसलिए यहां संकेतों और प्रतीकों की भाषा भी सुनी जाएगी। उस लाव लश्कर की कहानी भी सुनी जाएगी, जो संगठन की ऊर्जा में तप रहे हैं। जाहिर है फेहरिस्त बदल रही है और इस बदलाव में अगले चुनाव का पदचाप भी सुना जा रहा है। इसे पुरस्कार कहें, आलाकमान का भरोसा या जगत प्रकाश नड्डा का अपने प्रदेश में खड़ा साम्राज्य मानें कि डाक्टर के हाथ में भाजपा की नब्ज थमा दी गई। इसे इत्तेफाक कहें या सियासी जरूरत कि राजनीतिक दलों के डाक्टर अब बड़ा फर्ज निभा रहे हैं। भले ही दूसरी तरफ भी कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष का पद अपने गणित में फंसा है, लेकिन इससे पहले डा. राजेश शर्मा को हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया है। नब्ज यहां भी डाक्टर के ही हाथ है, क्योंकि सरकार में कांगड़ा की पैरवी हो रही है। कांगड़ा के मापतौल में कांग्रेस और भाज