संपादकीय

मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने पर जहां एक ओर दुनिया भर के सर्वें सामने आ रहे हैं, वहीं देश- विदेश के छोटे-बड़े टीवी चैनलों पर चर्चाओं का दौर जारी है। हालांकि एक बात साफतौर पर उभर कर आई है कि तीन साल पहले चली मोदी लहर  का जादू आज भी बरकरार है। चर्चाओं

हिमाचल की सियासत में चर्चाओं के अंबार के बीच दो पर्चियां हमेशा ढूंढी जाती हैं और इनका ताल्लुक सीधे वर्तमान और निवर्तमान मुख्यमंत्रियों से है। आय से अधिक संपत्ति मामले में वीरभद्र सिंह और भाजपा की संपत्ति में प्रेम कुमार धूमल का सियासी हिसाब, कब भारी पड़े-कब ठहर जाए, कोई नहीं जानता। बहरहाल असर होने

शिमला नगर निगम का चुनावी बिगुल अंततः हाई कोर्ट के दखल से बजा। राजनीतिक डंके के घायल होने की खबर जब कानून को होती है, तभी लोकतांत्रिक विषमताओं के दंश समझे जाते हैं। अब अदालती आदेश के तहत अठारह जून तक शिमला शहर के चुनाव कराने होंगे, तो इसके अर्थों में सियासत को अपने बदन

सीधी लकीर का टेढ़ा व्यवहार समझना है तो रोहतांग तक जाना होगा या यूं कहें कि पर्यटन के इस सबूत का एक पहलू यह भी है कि पहाड़ जरूरत से अधिक नंगा हो नहीं सकता। इसलिए मशक्कत तो उस रास्ते को चीरने में करनी पड़ती है, जिसे बर्फ की चादर में अपनी दिशा मालूम नहीं।

पूर्वोत्तर के दो राज्यों असम व अरुणाचल प्रदेश के बीच प्रगति के जिस आयाम का नाम सबसे बड़े पुल पर अंकित हो गया, उसके विपरीत खुद को बचाने की चेष्टा में ऊना जिला के आवारा स्वां को सियासत ने बांध दिया। स्वां की फितरत कम खतरनाक नहीं और न ही इस पर सियासी किश्तियां चल

कश्मीर के अब्दुल्ला परिवार पर तो असंख्य कलंक हैं, क्योंकि वह बुनियादी तौर पर हिंदोस्तान के ही नहीं, कश्मीर के भी खिलाफ  रहे हैं। कश्मीर में आज जो हालात हैं, उसके बीज प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला तथा 1977 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी-अब्दुल्ला समझौते ने ही बोए थे। आज इतिहास दोहराने

सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत की विविधता में हिमाचल की ताजपोशी के जबरदस्त पहलू परोसते हुए भाषा, कला और संस्कृति विभाग ने अपने संदर्भों को सशक्त करना शुरू किया है। आज से शिमला में जिलों की सांस्कृतिक विरासत पहुंचनी शुरू होगी, तो गेयटी की सक्रियता में पर्यटन सीजन का महत्त्व बदल जाएगा। सर्वप्रथम मंडी जिला अपनी प्रस्तुति में

मात्र 22-24 सेकंड, यानी आधे मिनट से भी कम वक्त…निशाने पर ताबड़तोड़ 10 हमले…धमाके और धुएं तथा धूल का उठता एक घना गुबार…! कितनी चौकियां ध्वस्त हुईं और कितने बंकर नेस्तनाबूद कर दिए गए, यह गणना जारी रहेगी, लेकिन भारतीय सेना ने एक बार फिर साबित कर दिया कि जवानों की शहादतें वाकई व्यर्थ नहीं

हिमाचल के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने वीरता के हिमाचली इतिहास को अंगीकार करते हुए, जिस शौर्य स्तूप की कल्पना की है, उससे प्रदेश का सीना बुलंद होता है। हिमाचली शौर्य की ऐसी वकालत पहले हुई होती तो प्रदेश में कई सैन्य प्रतिष्ठान स्थापित हो चुके होते। राज्यपाल ने भूतपूर्व सैनिकों के समागम में राष्ट्रीय सुरक्षा