संपादकीय

विकास को रेखांकित करता हिमाचल दो नावों पर सवार है। एक वह जिस पर केंद्रीय मदद से घोषणाओं के मंच सजने को उतारू और दूसरी वह जिस पर मुख्यमंत्री का काफिला हर रोज और हर मोड़ को सौगात बांटने निकलता है। कमोबेश इसी डगर पर केंद्रीय  मंत्री नितिन गडकरी ने नेशनल हाई-वे पर राज्य को

कश्मीरी नेता शबनम लोन का कहना है कि पत्थरबाज भारत के साथ रहना ही नहीं चाहते। वे इनसाफ-नाइनसाफी की लड़ाई लड़ रहे हैं। आखिर कश्मीर के पत्थरबाज लड़के-लड़कियां किस देश के हैं? जहां उनका जन्म हुआ, पालन-पोषण हुआ और बड़े होकर अब वे रहते हैं, वह जमीन भारत की है। कश्मीर भारत का है। कश्मीर

अपना रिपोर्टकार्ड तैयार करते शिमला के लिए स्वच्छता सर्वेक्षण की रैंकिंग, कुछ नए कठघरे खड़े करने सरीखी है। यह इसलिए भी क्योंकि सफाई का स्तर पिछले एक साल में बीस पायदान लुढ़ककर शिमला की रौनक और दर्जे को फीका करता है। हम चाहें तो सारा दोष नगर निगम पर मढ़ दें और गंभीरता से देखें

‘16 दिसंबर, 2012 की रात निर्भया के साथ जो हुआ, वह इतना बर्बर, क्रूर, राक्षसी था कि उसने दुनिया में ‘सदमे की सुनामी’ पैदा कर दी। ऐसा लगता है मानो वह किसी दूसरी दुनिया की कहानी है। ऐसे अपराधियों के लिए कानून में किसी भी तरह के रहम की गुंजाइश नहीं है। यह जघन्य से

बेशक राजनीतिक मंचों पर हिमाचल का जिक्र अब देवभूमि से वीरभूमि तक होना स्वाभाविक है, लेकिन इसकी समीक्षा न सहज है और न ही सरल। भाजपा ने पालमपुर बैठक में अपने अंदाज से लेकर राजनीतिक रुआब तक जो माहौल खड़ा किया उसका हर क्षण आत्मश्लाघा से आत्मविभोर कर सकता है, लेकिन क्या हिमाचल की सियासत

खेल, कला, फिल्म, साहित्य, संस्कृति और आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते। युद्ध का मैदान और जनता-दर-जनता संबंध स्थापित नहीं हो सकते। ये स्थितियां आपस में पर्याय ही हैं। ये कथन पहले भी कहे जा चुके हैं। अब ज्यादा प्रासंगिक हैं। भारत सरकार ने पाकिस्तान की कबड्डी और स्क्वॉश टीम को एशियन चैंपियनशिप के लिए वीजा

विकास और विस्तार की जिस परिभाषा में हिमाचल पल रहा है, वहां जिंदगी और भविष्य की काबिलीयत क्यों हार रही है। तकनीकी विश्वविद्यालय की रचना में खुले तमाम इंजीनियरिंग कालेज अगर बिखरे, तो युवाओं की काबिलीयत में शंकाएं भर दीं और हालत यह है कि निजी विश्वविद्यालय भी केवल सजावटी इमारतें बनकर रह गए। अब

फसल उगाने के सियासी मायनों और अंदाज से रू-ब-रू होता हिमाचल किसे सीने से लगाए या दुत्कार दे। पालमपुर में भाजपा की थाली सजाने से पहले प्रदेश सरकार ने अपनी रसोई से फिर कुछ ऐसा परोसा कि लाभार्थियों की बल्ले-बल्ले। सरकारी शगुन की एक और कड़ी में मंत्रिमंडलीय फैसलों की नीयत पर फैली पलकें और

प्रधानमंत्री मोदी! आप खामोश क्यों हैं? क्या प्रधानमंत्री चुप्पी साधने को ही होते हैं? क्या आपने पंजाब के तरनतारन इलाके में शहीद परमजीत सिंह के अंतिम संस्कार के दौरान आर्तनाद को सुना है? शहीद के परिजनों का विलाप देखा है? हिंदोस्तान उबल और खौल रहा है, क्या यह एहसास आपको है? सड़कों पर आंदोलित भीड़