संपादकीय

भारत में राष्ट्रपति प्रणाली का मुद्दा संविधान सभा के दौर से प्रासंगिक रहा है। बीते कुछ सालों में भी उसका स्वर ऊंचा और व्यापक हुआ है। एकाध को छोड़ दें, तो तमाम प्रयास गैर-राजनीतिक और विमर्श के स्तर पर रहे हैं। चर्चित लेखक-विचारक भानु धमीजा की नई पुस्तक ‘भारत में राष्ट्रपति प्रणाली’ ने एक बार

तिरंगे में लिपटे ताबूत और शहीदों की लाशें…! जिस आंगन की ओर सुरक्षा बलों के जवान बढ़ते हैं, वहां चीत्कार मचने लगता है। मां या पत्नी अथवा बच्चे पछाड़ खाकर गिरते हैं। छातियां पीटी जाती हैं, असंख्य आंसू बहते हैं। एक परिवार का नौजवान ‘शहीद’ हुआ है, लिहाजा आमदनी और आसरे की एक बाजू भी

प्रयास की जिस बड़ी स्क्रीन पर हिमाचली फिल्म सांझ आई, उसमें कहानी से अलग एक विषय यह भी रहा कि प्रदेश के लोग कितनी शाबाशी देते हैं। फिल्म के साथ खड़ा पुरस्कार, इसकी पृष्ठभूमि, संगीत और फिल्मांकन में इतना कुछ तो रहा होगा कि अगर हिमाचली चाहते तो बिना विस्तृत प्रचार के अपने कला संसार

सीधे देश के प्रधानमंत्री से मुलाकात करते शिमला ने नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय तेवर तो देखे, लेकिन हिमाचली अधिकारों की बैसाखियों को जुड़ते नहीं देखा। नरेंद्र मोदी अपनी याद की गलियों में एक सियासी चित्रकार के मानिंद घूमे और शिमला की दीवारों को चुनावी रंग में रंग भी गए, लेकिन केंद्र के परिदृश्य में हिमाचल

हिमाचल में आक्रामक राजनीति के उद्घोष उन दीवारों से भी आगे जहां प्रादेशिक कान के पर्दे लगातार सुन रहे हैं। यह बाजी एक अलग तरह के टेस्ट फायर की तैयारी में मशगूल है, क्योंकि पंजाब के बगल में बारूद है। हिमाचली बुनियाद पर अपने बुनियादी सवालों के साथ, भाजपा पूरे नैन-नक्श बदलने के कौतूहल में

हिमाचल की शहरी जिंदगी के बीच, खंभे पर लटके उसूलों की इबादत कहां की जाए। ऐसा प्रतीत होता है कि सड़क पर युद्ध के मानिंद यातायात के हालात और प्रगति को ढोते वाहनों के बीच होड़ का समुद्र। कोई एक शहर, कस्बा या गांव इस लायक नहीं बचा कि सड़क पर पैदल यात्री के कदम

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की और पत्थरबाजों के आकाओं, अलगाववादियों से बातचीत शुरू करने का आग्रह किया। महबूबा ने बुनियादी तौर पर ‘वाजपेयी नीति’ को मानक माना है। वह चाहती हैं कि कश्मीरियत, इनसानियत, जम्हूरियत की वाजपेयी नीति के आलोक में बातचीत की जाए। सवाल है कि

केंद्रीय नीतियों के भरोसे हिमाचली उत्थान की श्रेष्ठ कहानी भी अपने सारांश में निपुण नहीं है, इसलिए कमोबेश हर सरकार की शिकायतें आर्थिक अधिक रही हैं। दिल्ली में नीति आयोग की बैठक में हिमाचल का पक्ष विशुद्ध आर्थिक रहा और केंद्रीय मदद के घटते अनुपात में प्रदेश के अधिकारों की पैरवी भी। केंद्रीय कार्यक्रमों व

दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव के आधिकारिक नतीजे बुधवार को घोषित किए जाएंगे। यह एक छोटा, सीमित सा चुनाव था, लेकिन उसका विश्लेषण जरूरी है, ताकि प्रधानमंत्री मोदी के निरंतर करिश्मे, उत्तर प्रदेश के चुनावी प्रभाव और कुल मिलाकर भाजपा-युग का यथार्थ जाना जा सके। एमसीडी चुनावों के एग्जिट पोल के नतीजे सामने हैं। लगातार