एक क्षेत्रीय या व्यक्तिवादी पार्टी में शीर्ष नेता की अचानक मौत के बाद ऐसा होना स्वाभाविक है। राजनीति और सत्ता षड्यंत्रों में तबदील हो जाती हैं। राष्ट्रीय दलों में नेतृत्व बहुमुखी किरदार का होता है। संसदीय बोर्ड या कार्यसमिति अथवा पोलित ब्यूरो सरीखे लोकतांत्रिक निकाय होते हैं। अन्नाद्रमुक में सब कुछ जयललिता ही थीं। सभी
राजनीति के चीखते मंजर पर खबर होने तक की खुन्नस और मुनादी में हर लम्हे का जिक्र होने लगा। हिमाचल में सियासी कसरतों का मौसम और मुद्दों के मुहानों पर आंधियों का सफर। ऐसे में नेताओं के बीच परिचय और प्रदर्शन का मुकाबला दोनों तरफ से जारी है। केंद्र बनाम राज्य के संबंधों में पहली
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में जवाब दिया। उसके जरिए ऐसे खुलासे किए कि संसद में ही भूकंप आ गया, कांग्रेस अवाक रह गई। बीच-बीच में आवाजें गूंजती रहीं-नोटबंदी पर बोलिए, सच बोलिए…। लेकिन एक संसदीय प्रावधान से देश को अवगत करा देते हैं कि संसद में असत्य बयानबाजी, वह भी प्रधानमंत्री
नीतियों का दस्तूर अगर हिमाचली फितरत का कोई कारवां बनाता है, तो इसकी तस्वीर वार्षिक योजना में स्पष्ट है और यह भी कि अपनी डगर की चिंता में सरकार ने पुनः परंपराओं के आलेख लिखे। स्वाभाविक तौर पर सामाजिक क्षेत्र को तरजीह देने की कवायद में दुरुस्त होने का अवसर नत्थी है और विकास की
राम मंदिर पर विश्लेषण शुरू करने से पहले कुछ पुराने चुनावों के भाजपाई घोषणा-पत्र खंगाल लिए जाएं। 1996 और 1998 के घोषणा-पत्रों में पृष्ठ दो पर अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण का वादा किया गया था। तब भाजपा पहली बार लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी। अटल बिहारी वाजपेयी 13
बेशक अधोसंरचना विकास के राष्ट्रीय पैमानों में हिमाचल की कई छलांगें बाकी हैं, लेकिन इस दौरान ढांचागत उपलब्धियों को हम कमतर नहीं आंक सकते। एक पर्वतीय राज्य के रूप में हिमाचल से बेहतर अधोसंरचना का विकास किसी अन्य ऐसे राज्य में नहीं हुआ, फिर भी अब प्रश्न इसके सदुपयोग व मानकीकरण के बरकरार हैं। यहां
घोषणा-पत्र छापना बंद कर देने चाहिए। ये किसी पार्टी के वैचारिक तथा कार्यक्रम संबंधी दस्तावेज नहीं, बल्कि कागजों के छपे, मृत पुलिंदे हैं। क्यों इनकी छपाई और बंटाई पर लाखों रुपए खर्च किए जाएं? विकास की बातें भी क्यों की जाएं? उनमें न लच्छेबाजी है, न कोई गाली और बदजुबानी है। विकास तो एक निरंतर
इन खोखाधारकों को दाद दें या सहानुभूति प्रकट करें कि उनके अतिक्रमण से सरकाघाट स्कूल की दीवारें कांप गईं। बेशक स्कूल प्रबंधन व छात्र समूह ने अवैध कब्जों से शिक्षा के मंदिर को मुक्त करा लिया, लेकिन विरोध में सरकाघाट बाजार के बीच हुआ चक्का जाम, हिमाचली भविष्य में कानून-व्यवस्था की हालत को रेखांकित कर
पंजाब और गोवा में मतदान भी हो चुका है। पंजाब में 78 फीसदी से ज्यादा मतदान और गोवा में 83 फीसदी से ज्यादा मतदान किया गया है। पंजाब में 2012 की तुलना में मतदान कुछ अधिक है, जबकि गोवा ने पुड्डुचेरी का रिकार्ड तोड़ कर नया कीर्तिमान स्थापित किया है। इसकी यह व्याख्या नहीं की