खादी एक इतिहास है, एक आंदोलन है और राष्ट्रीय जागृति का एक अभियान भी है। हमारे स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान स्वदेशी प्रतीक रही है। खादी सिर्फ कपड़ा, लिबास और फैशन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय विचारधारा भी है। खादी एक उत्पाद भी है जो सीधा व्यापार से जुड़ा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इसलिए महत्त्वपूर्ण नहीं हैं कि
अगर हिमाचल भाजपा अगले चुनाव में अपने प्रत्याशियों में नए रक्त की खोज कर रही है, तो सर्वेक्षण के माध्यम से अतीत का ढर्रा बदलने में कुछ हद तक मदद अवश्य मिलेगी। हालांकि पार्टी के भीतर एकत्रित महत्त्वाकांक्षा, परिवारवाद, जातीय समीकरण, क्षेत्रीय प्रभाव तथा प्रथम पंक्ति के नेताओं के प्रति आस्था रखने वालों का खासा
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ‘भूकंप’ नहीं ला सके और न ही साबित कर सके। उसके साक्ष्य और दस्तावेज फर्जी और गैर कानूनी करार दे दिए गए। क्या राहुल गांधी झूठ की बुनियाद पर ही राजनीति करना चाहते हैं? क्या राहुल बेहद जल्दबाजी में हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का भी इंतजार नहीं कर सके?
रोजगार की हिमाचली मृगतृष्णा हर साल शिक्षा के औचित्य को चौराहे पर खड़ा करती है, लेकिन हमारी मेधा के दरवाजे औपचारिक पाठ्यक्रम में ही रोशनी खोजने की मशक्कत करते हैं। विडंबना यह कि रोजगार के राष्ट्रीय परिदृश्य से अलग हिमाचली मानसिकता के पिंजरे में संभावनाएं भी कैद होकर रह गई हैं। यह प्रमाणित निष्कर्ष है
दरअसल अब नोटबंदी और उससे जुड़े सवालों, आशंकाओं, तकलीफों पर बहस बंद होनी चाहिए, क्योंकि उसके पीछे जो बुनियादी मकसद था, उसमें काफी कामयाबी मिली है, लेकिन राजनीतिक दल इस मुद्दे को जिंदा रखना चाहते हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अधिकृत सूत्रों के हवाले से एक निष्कर्ष सामने आया है कि 14 लाख करोड़
शिमला के साथ स्मार्ट शब्द किसी नई पहचान का फलक नहीं है, लेकिन आजादी के बाद की निरंकुश हवाओं ने माहौल बिगाड़ दिया। रात को जगमगाता शहर जब सुबह के आईने में खुद को निहारता है, तो हजारों चीखें सुनी जा सकती हैं। बेशक अब कसौटियां पुनः देश के स्मार्ट होते शहरों में शिमला को
सरहद पर तैनात बीएसएफ के जवान तेज बहादुर यादव ने खराब खाने को लेकर जो खुलासे किए हैं, बेशक वे सनसनीखेज और गंभीर किस्म के हैं। एक बात शुरू में ही साफ कर दें कि जवान के आरोपों के मद्देनजर ही हम किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहते। सेना और अर्द्धसैन्य बलों का सम्मान देश
सियासी सर्कस में भ्रष्टाचार का विषय जिस तरह चुनावी माहौल का तापमान बताता है, उसी तरह सत्ता परिवर्तन के बाद यह ताबूत में चला जाता है। हिमाचल की तपती चुनावी रेत पर सबसे पहले यही मुद्दा चलने लगा और भ्रष्टाचार के चिट्ठों का नामकरण आरोपों की सियाही से हो गया। हिमाचली सत्ता के खिलाफ आरोपों
क्या किसी मस्जिद का इमाम देश के प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ फतवा जारी कर सकता है? क्या कोई इमाम इस हद तक बोल सकता है-हिंदोस्तान मोदी के बाप का है क्या? क्या सार्वजनिक मंच से प्रधानमंत्री के लिए ऐसे अपशब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिन्हें लिखना भी हम नैतिक और शालीन नहीं मानते?