विचार

(रूप सिंह नेगी, सोलन) आजकल प्रदेश में  सरकार  द्वारा ताजा कर्ज लेने और प्रदेश पर 50000 करोड़ के करीब की रकम कर्ज होने पर चर्चाओं का बाजार गर्म होना स्वाभाविक है, लेकिन कर्ज लेने के बिना विकास कर पाना भी तो मुमकिन नहीं होता है। गौरतलब  है कि समस्त भारत में शायद ही कोई राज्य

चारा बाबू कसकर चूसा प्रांत को, जैसे लैमन जूस, केवल चारा ही चरा, कभी न खाई घूस। अति दरिद्र अति दीन हैं, फिरते खाली पेट, तन पर बस बनियान है, कहते हो क्यों सेठ। आधी दिल्ली आपकी, फिर भी हैं लाचार, अब तो अपना  बंद है चारे का व्यापार। पशु की पसली चमकती, फूल रही

(अक्षित आदित्य तिलक राज गुप्ता, रादौर) अंबाला से चंडीगढ़ जाते हुए या आते हुए जब आप लालड़ू के फ्लाईओवर पर पहुंचते हैं तो देखेंगे कि दाएं और बाएं, दोनों तरफ सवारियों का जमघट लगा रहता है, जो कि फ्लाईओवर पर ही रुकने वाली परिवहन की सरकारी और निजी बसों में सवार होती हैं। यही सवारियां

कुल्लू के लोग बोले, पूर्व प्रधानमंत्री का कर्ज कभी नहीं उतार सकता हिमाचल सर्दियों में छह माह तक बर्फ की कैद में रहने वाले लाहुल के लोगों का वनवास खत्म होने वाला है। साल बाद ये दुर्गम इलाके के लोग दुनिया भर से जुड़े रहेंगे। इसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी

ये छात्र शिक्षा के नहीं और न ही हिमाचल विश्वविद्यालय शिक्षा के कारण चर्चा में रहा है। हो सकता है हम आज के पत्थरबाजों को कल के नेता के रूप में स्वीकार करें या इनकी मातृ पार्टियां, विश्वविद्यालय कैंपस में हिंसक छात्रों के बीच अपना भविष्य देख रही हों। जो भी हो शिमला विश्वविद्यालय का

डा. भरत झुनझुनवाला लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं अब देश में स्वतंत्र नियामकों की संस्कृति स्थापित हो गई है। जैसे दूरसंचार क्षेत्र के नियामक ने निजी टेलीफोन कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा स्थापित करके मोबाइल फोन काल के दाम वैश्विक न्यून स्तर पर लाने में सफलता हासिल की है। इस प्रकार सार्वजनिक इकाइयों पर सरकारी

( राकेश शर्मा लेखक, शिमला से हैं ) उच्च शिक्षा के लिए बच्चों को घरों से थोड़ा बाहर तो निकलना ही होगा क्योंकि उन्हें आत्मनिर्भरता भी सिखानी है। अन्यथा घर की रोटी से घर का स्कूल तो ठीक है परंतु रोजगार उन्मुख उच्च शिक्षा के सपने हौसला नहीं जुटा पाएंगे। उच्च शिक्षा को सकल नामांकन

साधुवाद, शाबाश, बधाई, भई! कमाल कर दिया….‘आज तक’ के स्टिंग ‘आपरेशन हुर्रियत’ पर ये शब्द अचानक ही बोलने को मन करता है। उस स्टिंग ने सैयद अली शाह गिलानी,यासीन मलिक और उनके ‘पिल्लों’ को बेनकाब कर दिया है। यदि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने अलगाववादी नेताओं और पाकिस्तान से मिलने वाली फंडिंग पर जांच शुरू

( करण सिंह, चंबा  ) यह कैसी शिक्षा जो जीना नहीं मरना-मारना सिखाती हो। हाल ही में छात्र गुटों के बीच हो रहे खूनी संघर्ष खूब सुर्खियां बन रहे हैं। आखिर इन सब का जिम्मेदार कौन है? जहां पढ़ाई का माहौल होना चाहिए वहां खूनी खेल हो रहा है। छात्र संघ चुनावों को इसलिए नही