विचार

( डा. सत्येंद्र शर्र्मा, चिंबलहार,पालमपुर ) गाल बजाते थे बड़े, मिलकर अफलातून अर्जी खारिज हो गई, फुस हुआ बैलून। फुस हुआ बैलून, हवाई उड़ी हुई है झुकता माथा, गर्दन नीचे गड़ी हुई है। भूषण हुए अशांत अब, लो जी कर लो बात गलत फैसला कर दिया, चीख रहे दिन-रात। न्यायालय सर्वोच्च को काफी नहीं सबूत

( मनीषा चंद राणा (ई-मेल के मार्फत) ) ई- कॉमर्स साइटों पर तिरंगे वाले चप्पल, टी-शर्ट, प्लेट आदि की बिक्री जारी है। जिनके कारोबारी हित भारत से जुड़े नहीं हैं, ऐसी कंपनियां इससे जुड़ी हुई हैं। विदेशों में रहने वाले भारतीय लोग ही इन चीजों के ग्राहक हैं। जिन देशों की ई-कॉमर्स साइटों पर उन

( भूपेंद्र ठाकुर, गुम्मा, मंडी ) नोटबंदी के दौरान कालेधन कुबेरों ने अपने धन को ठिकाने लगाने के लिए बहुत से पैंतरे अपनाए। आमतौर पर देखने व सुनने में आया है कि निजी एवं गैर सरकारी क्षेत्र जिसमें, व्यापारी, होटलियर्ज, उद्योगपति, ठेकेदार, निजी शिक्षण एवं व्यावसायिक संस्थान, हवाला कारोबारी, शेयरधारक, सरार्फा कारोबारी, बैंकिंग व गैर

बर्फबारी ने उन तमाम दावों की पोल खोलकर रख दी, जिनमें प्रभावितों को समय पर राहत देने के दावे थे। आलम ऐसा था कि सड़कें बंद हो गईं।  स्वास्थ्य विभाग की व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई। रोगी वाहनों तक की सुविधा लोगों को नहीं मिल सकी। अस्पताल में मरीज बिजली अव्यवस्था के कारण ठिठुरने को

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ( डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं ) कश्मीर घाटी महज जमीन का टुकड़ा नहीं है, वह एक संस्कृति और एक दृष्टि है। वह नागभूमि है। गिलानियों को लगता है कि कश्मीरियों ने इबादत का एक और तरीका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है, इससे उनकी मूल पहचान ही

( सुरेश कुमार  लेखक, योल, कांगड़ा से हैं ) कैसी देवभूमि है यह, जहां आपदा में किसी की मदद करने के बजाय लूट-खसोट शुरू हो जाती है। उदाहरण टैक्सी वालों का ही ले लीजिए, जिन्होंने पर्यटकों को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। प्रशासन खबर छपने के बाद जागा और टैक्सी आपरेटरों के चालान काटकर

( वर्षा शर्मा, पालमपुर, कांगड़ा  ) जिस तरह से अर्द्धसैनिक बलों के जवानों और बाद में सेना के एक जवान द्वारा वीडियो जारी करके उत्पीड़न का आरोप लगाए, उनमें यदि लेछमात्र भी सच्चाई हुई, तो इसे बेहद दुर्भाग्यपूर्ण माना जाएगा। हालांकि सच्चाई मामले की जांच के बाद अंतिम रपट से ही सामने आ पाएगी, लेकिन

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर ) टूट गए फिर जुड़ गए, बिखर गए फिर आप, शीशा बिखरा चौक पर, संभव नहीं मिलाप। चारा बाबू, आजमी, सुलह कराते रोज, द्वंद्व युद्ध नित-नित नया, नित पंगों की खोज। नेता चीखे चौक पर कैसा वाद-विवाद, बबुआ श्रवण सपूत है, सदा रहे यह याद। बेटा देता पटकनी, घायल

अगर हिमाचल भाजपा अगले चुनाव में अपने प्रत्याशियों में नए रक्त की खोज कर रही है, तो सर्वेक्षण के माध्यम से अतीत का ढर्रा बदलने में कुछ हद तक मदद अवश्य मिलेगी। हालांकि पार्टी के भीतर एकत्रित महत्त्वाकांक्षा, परिवारवाद, जातीय समीकरण, क्षेत्रीय प्रभाव तथा प्रथम पंक्ति के नेताओं के प्रति आस्था रखने वालों का खासा