विचार

रोहड़ू के गांव तांगणू में अग्निकांड के अनेक कारण सामने आएंगे, लेकिन राहत का पैगाम एक ही होगा और यह संभव है कि हिमाचली समाज आगे आकर इनके आंसू पोंछे। बेशक तांगणू गांव के घर छोटे और लागत में भी कमजोर रहे होंगे, लेकिन आशियाना हमेशा जिंदगी से बड़ा होता है। अतः 49 परिवारों के

( डा. राजेंद्र प्रसाद शर्मा, जयपुर (ई-पेपर के मार्फत) ) भारत की चेतावनी के बाद भारतीय ध्वज का अपमान करते तिरंगे झंडे सरीखे दिखने वाले पायदान भले ही अमेजन ने अपनी वेबसाइट से हटा दिए हों, पर इतने मात्र से संतोष नहीं किया जा सकता। इस बात की सराहना की जानी चाहिए कि विदेश मंत्री

कुलदीप नैयर ( कुलदीप नैयर लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं ) स्वतंत्रता के तुरंत बाद ईएमएस नंबूदरीपाद केरल के मुख्यमंत्री चुने गए थे। वह दिल्ली से अलग दृष्टिकोण रखते थे, जहां पर कांग्रेस का शासन था। दिल्ली प्रतिरोधी गिरफ्तारी को आगे बढ़ाना चाहती थी लेकिन नंबूदरीपाद का तर्क था कि यह ब्रिटिश तरीका है और यह

बाबू गुलाबराय भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार, निबंधकार और व्यंग्यकार थे। वह हमेशा सरल साहित्य को प्रमुखता देते थे, जिससे हिंदी भाषा जन-जन तक पहुंच सके। उनकी दार्शनिक रचनाएं उनके गंभीर अध्ययन और चिंतन का परिणाम हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में शुद्ध भाषा तथा परिष्कृत खड़ी बोली का प्रयोग अधिकता से किया है। उन्होंने आलोचना और

हजारों दीप मैंने बुझते जलाए हैं, गिला किसका। मैंने वंदे तो क्या पत्थर हंसाए हैं ,गिला किसका। गगन जब था मुसीबत में तो टूटा इस तरह सारा, मैंने सूरज सितारे चांद बचाए हैं ,गिला किसका। मेरे आंसू ने कीमत इस तरह अदा की है, जरूरत पड़ने पर पर्वत उठाए हैं, गिला किसका। नदी के छलकते

हिमाचल की स्थापना 1948 में हुई। देश की आजादी की घोषणा के आठ महीनों बाद इस कार्य में तत्कालीन केंद्रीय नेताओं, प्रशासकों और स्थानीय नेताओं के योगदान को भुला नहीं सकते। उन्होंने पर्वतीय लोगों की अक्षुण्ण स्वायत्तता को तरजीह दी और इसे भारतीय परिसंघ का एक विशिष्ट पहाड़ी प्रांत बना दिया। एक पृथक आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक इकाई

इसी प्रकार यदि कोई आप पर झूठा आरोप लगाता है, जिससे मन को कष्ट तो होता ही है, साथ में बदनामी भी होती है…तब भी इसी प्रकार लोक देवता ख्वाजा पीर के आगे फरियाद करने से आपको कुछ समय के बाद न्याय अवश्य मिलेगा। उपरोक्त दोनों स्थितियों में सच्चे मन से तथा सच्चे रूप में

मां! सुन लो करुण पुकार मेरी क्यों नहीं चुभती पीड़ा मेरी? नन्हीं परियों की कथा सुना दो मां! मेरा बचपन मुझे लौटा दो।। मां! दूध मिले, न आंचल तेरा अंधकार छाया, मुझमें घनेरा। माता कुमाता, कभी भी न होती होते उसके संतान, कभी न रोती।। कोमल तन-मन मैया मेरे दिन भर दर्शन न होते तोरे।

( कुलदीप चंदेल लेखक, बिलासपुर से हैं ) इस भर्ती कुंभ से एक बात तो सामने आई कि जहां समाज ने मानवीय मूल्यों की पवित्रता बनाए रखी, वहीं बहुत से युवक स्वच्छता अभियान को अंगूठा दिखाते देखे गए। युवा पीढ़ी से तो देश व समाज को बहुत उम्मीद होती है। नारे लगाए जाते हैं कि