विचार

सियासी सर्कस में भ्रष्टाचार का विषय जिस तरह चुनावी माहौल का तापमान बताता है, उसी तरह सत्ता परिवर्तन के बाद यह ताबूत में चला जाता है। हिमाचल की तपती चुनावी रेत पर सबसे पहले यही मुद्दा चलने लगा और भ्रष्टाचार के चिट्ठों का नामकरण आरोपों की सियाही से हो गया। हिमाचली सत्ता के खिलाफ आरोपों

क्या किसी मस्जिद का इमाम देश के प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ फतवा जारी कर सकता है? क्या कोई इमाम इस हद तक बोल सकता है-हिंदोस्तान मोदी के बाप का है क्या? क्या सार्वजनिक मंच से प्रधानमंत्री के लिए ऐसे अपशब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिन्हें लिखना भी हम नैतिक और शालीन नहीं मानते?

( किशन सिंह गतवाल, सतौन, सिरमौर ) भारत में नोट बदली का महान अभियान सफल रहा और सब कुछ ठीक रहा। राष्ट्रहित के इस कार्य को संपन्न करने के लिए संघीय सरकार धन्यवाद की पात्र है। वास्तव में एनडीए सरकार ने पाक में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद कालेधन पर भी अचानक स्ट्राइक किया और कालाधन,

( डा. अश्विनी महाजन लेखक, दिल्ली विश्वविद्यालय के  पीजीडीएवी कालेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं ) हालांकि सभी बैंकों ने ब्याज दरों को नहीं घटाया है, लेकिन आशा की जा रही है कि 500 और 1000 रुपए के नोटों के विमुद्रीकरण के बाद, पुराने नोटों के बैंकों में भारी मात्रा में जमा होने के कारण बैंकों

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर ) क्यों हंगामा कर रहा, क्या नवीन कुछ बात, कोयले की यदि दलाली, काले होंगे हाथ। काले होंगे हाथ, साथ में साथी भी हैं, उनसे भी तो पूछ, मुटल्ले हाथी भी हैं। कौन नहीं खाता यहां, चुपचाप गए डकार, सिंहासन ने दे दिया, उनको यह अधिकार। सता रहे क्यों

डा. भरत झुनझुनवाला ( लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं ) राज्य सरकारें घूस वसूलने के अधिकार को लेकर अड़ी हुई हैं और केंद्र सरकार के वीटो के अन्याय को स्वीकार कर रही हैं। राज्य सरकारों को चाहिए कि घूस वसूल करने का अधिकार केंद्र को दे दे। अपने कर अधिकारियों को केंद्र के अधिकारियों

वह चीखती-चिल्लाती है, हाथ-पांव मारती है, रोती-बिखलती है, राक्षसों की जकड़न से मुक्त होने की कोशिश करती है, गुहार करती है और मदद के लिए पुकारती रहती है। ऐसे दृश्य आपने शायद ही कभी देखे हों। यदि देखे होंगे, तो कन्नी काट ली होगी। वैसे भी रात के अंधेरे में, चलती कार में, सुनसान सड़कों

( सुदर्शन कुमार पठानिया लेखक, कुमारहट्टी, सोलन से हैं ) अगर चपरासी ही बनना था, तो उसके लिए पीएचडी करने की क्या जरूरत थी। चपरासी तो दसवीं के बाद या पहले भी बना जा सकता है। यानी हम यह समझें कि आजकल जो शिक्षा व्यवस्था चली है, वह अंग्रेजों की भारतीयों को क्लर्क बनाने की

बर्फ की दौलत से लकदक पहाड़ और सामने आपदा प्रबंधन का गंजापन बरकरार। बर्फ की खुशामदी में व्यवस्था का प्रलाप अगर हिमाचल की छवि की आफत है, तो हमारे प्रबंधन की गरीबी का मलाल स्वाभाविक है। स्वयं राजधानी शिमला बर्फ के पिंजरे में बंद होकर रह गई, तो सर्द हवाओं  में उखड़े बाकी तंबू किसने