प्रतिबिम्ब

अजय पाराशर लेखक धर्मशाला से हैं 0 ज़िला की एक कहावत है-‘गिल्लड़े बाजी रही भी नी हुंदा, कनै गिल्लड़े कन्नै घड़ें-घड़ें भी’ अर्थात किसी व्यक्ति या वस्तु के बिना गुज़ारा भी नहीं और उसकी संगति में असहजता भी महसूस करना। ़करीब छह सौ साल पहले पत्रकारिता का चोला पहनकर जन्मे मीडिया बाबा की पोटली से,

कमलेश भारतीय स्वतंत्र लेखक हिमाचल से मेरा प्रेम है और जब-जब समय मिलता है, मैं इसकी ओर उमड़ पड़ता हूं। बचपन में मेरी दादी किसी धार्मिक संग के साथ बाबा बालकनाथ की यात्रा पैदल करती थी और दो वर्ष मैं भी उनके साथ इस यात्रा में शामिल रहा। इतना याद है कि नवांशहर से गढ़शंकर

श्रद्धांजलि एक व्यक्ति जो कभी सरकारी नौकरी में हो, फिर नौकरी छोड़ संगठन के लिए अपने को समर्पित कर दे व ताजिंदगी उसके प्रति प्रतिबद्ध रहे, जो कवि हृदय रखता हो, संस्कृति से गहराई तक जुड़ा हो, जिसे सामाजिक परंपराओं व मान्यताओं का सटीक ज्ञान हो, जो लगातार अखबारों-पत्रिकाओं से जुड़ा रहा हो, शोधात्मक लेखन

पुस्तक समीक्षा पत्रिका : प्रणाम पर्यटन (हिंदी त्रैमासिक) संपादक : प्रदीप श्रीवास्तव प्रकाशक : प्रणाम पर्यटन पब्लिकेशन, लखनऊ कीमत : पचास रुपए पर्यटन अनुभवों का जन्मदाता होता है। महात्मा गांधी ने विदेश से लौटने के बाद रेल के सामान्य डिब्बे में देश को समझने के लिए देशाटन किया था। बच्चों के कोरे मन पर भ्रमण

मेरी किताब के अंश : सीधे लेखक से किस्त : 9 ऐसे समय में जबकि अखबारों में साहित्य के दर्शन सिमटते जा रहे हैं, ‘दिव्य हिमाचल’ ने साहित्यिक सरोकार के लिए एक नई सीरीज शुरू की है। लेखक क्यों रचना करता है, उसकी मूल भावना क्या रहती है, संवेदना की गागर में उसका सागर क्या है,

पुस्तक समीक्षा * पुस्तक का नाम : सिद्धों की संगति में * लेखक का नाम : एचएस शिवप्रकाश * हिंदी अनुवाद : केशव शर्मा * मूल्य : 150 रुपए * प्रकाशक : वाग्देवी प्रकाशन, बीकानेर कन्नड़ साहित्यकार एचएस शिवप्रकाश की पुस्तक ‘सिद्धों की संगति में’ साहित्यिक बाजार में आ चुकी है। मूलतः कन्नड़ भाषा में

राजेंद्र राजन फिल्म समीक्षक अगर में आठ साल पहले की सिनेमाई फिज़ा में लौटूं तो सही मायने में हिमाचल में लघु फिल्मों के कल्चर को विकसित करने को हुए प्रयासों की स्मृतियां जहन में ताजा हो उठती हैं। इससे पूर्व इस पहाड़ी प्रांत में किसी ने भी फिल्म फेस्टीवल जैसे आयोजनों की कल्पना नहीं की

साहित्यकारों की दृष्टि में वर्ष 2018 किस प्रकार रहा तथा इस वर्ष में उनकी गतिविधियां क्या-क्या रहीं, इस विषय में हमने प्रदेश भर के कई साहित्यकारों से बातचीत की। कई साहित्यकारों ने कहानी का आनंद लिया तो कुछ ने कविता का रसास्वादन किया। साथ ही साहित्यकारों ने अगले वर्ष की अपनी योजनाएं भी साझा की।

हिमाचल प्रदेश में लेखकों की जमात में कई ऐसे घुमक्कड़ बंजारा-प्रवृत्ति के प्रबुद्ध बुद्धिजीवी हैं, जिन्होंने कई अनजान राहों पर यात्राएं की हैं, अजनबियों से संपर्क करके आत्मीयता स्थापित की है और फिर लेखकीय प्रवृत्ति से उन सारे संबंधों को सबके साथ साझा किया है। लेखकीय-बंजारापन के संबंधों को सार्थक रूप प्रदान करने वाले उस