शराब में आर्थिक अमृत

By: Apr 7th, 2017 12:05 am

सड़क से बड़ी बोतल और बोतल से बड़ी कीमत। इस अंदाज की जिरह जब खजाने से आती हो, तो शराबबंदी के मायने बदल जाते हैं। अंततः हिमाचल ने भी सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से आबकारी उपलब्धियों का बचाव करते हुए सोलह राज्य मार्गों को पदावनत कर दिया। शराब की बोतल का एहसास और शराबी की जेब का हिसाब, अदालत के सुधारवादी रवैये पर हिमाचल में भी भारी पड़ा। यानी जिस संवेदना और गरीब परिवारों की औरत के संरक्षण में शराब का ठेका सरकाया गया, उसे ही उल्टा करके लटकाने की कोशिश में हिमाचल भी जुट गया। राजस्व के प्याऊ पर बिकती शराब का मूल्यांकन ही अगर आर्थिकी है, तो राज्य मार्गों के नाम या इनके विकास पर क्या रखा है। उस महत्त्वाकांक्षा का भी क्या जो हिमाचल की किस्मत को सड़कों से जोड़ती है, लेकिन यहां तो भविष्य की एक बड़ी खोज शराब की बोतल गटक रही है। हम यह एहसान मान सकते हैं कि शराबी बंदों की बदौलत एक बड़ा धंधा, एक बड़ा रोजगार चलता है। हिमाचल जैसे करविहीन राज्यों के लिए शराब तो आर्थिक अमृत सरीखा है। इसे गटकने के साथ पर्यटन उद्योग चलता है। चटपटी चाट और नॉनवेज व्यंजनों की गाढ़ी कमाई का राज भी तो शराब ही है, सो प्रदेश सरकार को ठेकों का बचाव करना अपरिहार्य है और कहीं न कहीं आर्थिक मर्यादा का दस्तूर भी तो यही है कि जहां से धन सरकार के बजट को चलाता हो, उसे हर सूरत चलायमान रखा जाए। ऐसे में विकास के दो आयाम स्पष्ट हैं। एक शराबबंदी की ओर अदालती पहल को खारिज करके, शराब आर्थिकी की नदी को बहने दिया जाए। दूसरे विकास की परिभाषा में स्टेट हाई-वे की परिकल्पना को मिटाकर अदालती फैसलों का बाइपास तैयार किया जा सकता है। आश्चर्य यह है कि हिमाचल ने भी अपनी प्राथमिकता में शराब को ही चुन लिया, भले ही इसके लिए उच्चतम अदालत की भावना को परास्त ही क्यों न करना पड़ेगा। समझना यह भी होगा कि हिमाचल में शराब के परिदृश्य का जिस तरह विस्तार हो रहा है, वह अन्य राज्यों से कम नहीं। इसे नशे की व्यापकता में देखें तो अवैध तरीकों से तैयार होती शराब जुड़ जाती है और भांग-चरस की कालिख से रंगे हाथ भी जुट जाते हैं। हम नशाखोरी से शराब को अलहदा कैसे कर सकते हैं। समाज के एक तबके को छूट देने से ऐसी करतूतों का सामाजिक विस्तार भी तो होगा। सरकार ने अपने सोलह राज्य राजमार्गों को कानूनी कवच से छुड़ाकर,  छूट किसे दी और भविष्य में रेखांकित किसका कद होगा। कहना न होगा कि शराब लॉबी का वर्चस्व इतना मजबूत तो है कि इसकी पैरवी में सरकार ने अपनी ही सड़कों का विकास रोक दिया। कल अगर अदालती हस्तक्षेप से अन्य सामाजिक कुरीतियों पर दिशा-निर्देश तय होते हैं, तो भी क्या राज्य अपनी जिम्मेदारी में ऐसे ही विकल्प तराशेगा। हिमाचल के इस फैसले से शराब का समर्थन हुआ है और इसका वैधानिक दर्जा भी सुरक्षित है। फैसले का एक दूसरा समर्थक वर्ग भी है, जो यह महसूस करेगा कि परिवार के शराबी सदस्य को राज्य का प्रश्रय हासिल है। इससे शराब की दुकान की लाली और मजबूत होगी। वाहनों के पहिए थमेंगे और चटक बोतल एक वांछित व्यसन के मानिंद और स्वीकार्य होगी। ऐसे में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने समाज की बेहतरी को जो प्रतिबंध लगाया, उसकी धज्जियां उड़ गईं। अब तो अदालत को भी अपने फैसले की ऐसी परिभाषा बनानी पड़ेगी, ताकि अमल सुनिश्चित हो और इस तरह की तौहीन न की जा सके।


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