रिटायरमेंट की राह देख रहे बूढ़े इंजन

By: Sep 19th, 2017 12:05 am

पंचरुखी —  पठानकोट-जोगिंद्रनगर मार्ग पर दौड़ने वाली रेल की दशा सुधारने की मांग जनता सालों से करती आ रही है, पर हमारे नेता इसे मुद्दा बना कर चुनाव जीतते आ रहे हैं। जीत के बाद सब कागजों में सिमट जाता है। इसके चलते आज भी ट्रेन चलते-चलते रास्ते में रुक जाती है। इंजीनियर बीसी बैट्टी की इच्छा शक्ति व जुनून ने पहाड़ी ढलानों में सरपट ट्रेन दौड़ा दी, लेकिन आज तक हमारे सात सांसदों की आवाज में वह दम नहीं, जो इस ट्रेन के विस्तार व उत्थान को बढ़ा सके। ट्रेन मुद्दे पर कई नेता दिल्ली तक जा पहुंचे, पर कुर्सी तक ही सीमित रह गए। अप्रैल, 1929 में तैयार हुई 164 किलोमीटर पठानकोट-जोगिंद्रनगर रेल लाइन पर दो सुरंगों सहित लगभग 1000 छोटे-बड़े पुल हैं। इस मार्ग पर 34 स्टेशनों से 12 रेल गाडि़यां गुजरती हैं, लेकिन 85 वर्षों से यह समस्या जस की तस है । इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ। हालांकि इस रेललाइन को ब्रॉडगेज बनाने केलिए राजनीतिज्ञों ने चुनावों में मुद्दा बना कर अपनी राजनीति खूब चमकाई, लेकिन कांगड़ा जिला के पर्यटन के लिए रामबाण सिद्ध होने वाली यह रेल लाइन हमेशा उपेक्षा का शिकार बनी रही। सन् 1983 से दौड़ रहे बाबा आदम के जमाने के इंजन अब रिटायरमेंट लेना चाहते हैं। सवारियों को अपनी पीठ पर लाद कर निकले बूढ़े इंजनों की उखड़ती सांसों को देख डर सताने लगता है, कि न जाने कब रास्ते में इनका दम फूल जाए।  आए दिन दो इंजन डिब्बों को खींचते देखे जा सकते हैं। गौरतलब है कि इन रेल इंजनों की 115 टन वजन खींचने की क्षमता है। 30 साल से लगातार सेवाएं दे रहे इंजनों की क्षमता कम हो गई है। ट्रेन की स्पीड 40 किलो मीटर प्रति घंटा सीमित है व इससे ऊपर चलने पर रुक सकते हैं। नेताओं को बताते चलें कि 1926 में कर्नल बैटरी ने हौसला दिखा कर इस रेलवे लाइन का कार्य शुरू किया व तीन साल में गाड़ी दौड़ा दी। आजादी के 67 साल बाद इस लाइन पर कोई काम नहीं हुआ। 1977 के बाद हिमाचल के नेता इस रेललाइन को मुद्दा बना कर लोगों की भावनाओं से खेलते रहे।


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