बातचीत का मार्ग

By: Oct 25th, 2017 12:02 am

(मानसी जोशी (ई-मेल के मार्फत) )

जम्मू-कश्मीर में स्थायी शांति की तलाश में बातचीत का सिलसिला एक बार फिर शुरू होने जा रहा है। सत्ता में जो भी सरकार आती है, उनकी बातचीत के जरिए घाटी में शांति बहाल करने की कोशिश रहती है। ऐसा एक प्रयोग अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने तो दूसरा मनमोहन सरकार ने किया था। यह अलग विषय है कि दोनों ही प्रयासों का परिणाम शून्य रहा। सरकारी वार्ताकारों के साथ बातचीत करने वाली हुर्रियत जैसी पार्टियां एक तरफ उन वार्ताकारों के साथ बातचीत का नाटक करती हैं और दूसरी तरफ कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए जो करना चाहिए, वही करती रहती हैं। कश्मीर के लोगों का, खासकर  युवाओं का उपयोग करके घाटी में अशांति फैलाकर उस वातावरण में खुद को सुरक्षित रखने वालों ने ही बातचीत का कभी विचार भी नहीं किया है। पाकिस्तान से पैसे लेकर घाटी में अशांति फैलाने के लिए पूरी कोशिश करना ही उनका परम उद्देश्य रहा है। कश्मीर की समस्या को मजहब से जोड़ा जा चुका है। मजहब के नाम पर अच्छे कर्म करना चाहिए, यह घाटी में सिखाने वाला कोई नहीं है। भारत के विरुद्ध सिर्फ और सिर्फ नफरत के बीज बोए जा रहे हैं। यहां विचारों का परिवर्तन होना जरूरी है।


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