शब्दवृत्ति
पाकिस्तानी भाषा
(डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )
पत्थरबाज बना पितंबरु, मां को पत्थर मार रहा, खिसियाया, आमास हो गया,बेटा भी गद्दार रहा। घर के अंदर दुबके हैं कुछ, खुलेआम कुछ घूम रहे, गैरत बेची, खाई, लाहौरी अम्मी को चूम रहे। संविधान से बाहर अब तुम, चले मांगने आजादी, गुुंडों को सिर पर बैठाकर, गुंडागर्दी ही लादी। देशद्रोह का चले मुकदमा, खुलेआम गद्दारी है, क्यों इस्लामाबाद हृदय में, कैसी रिश्तेदारी है? है अलगावी, है आजादी, जल्दी तड़ी पार कर दे, बहुत चुराई रोज मलाई, अब मुंह में विष्ठा भर दे। पटी हुई सीमा, बलिदानी रुधिर चमक रहा, एक-एक योद्धा नभ में, धुब्रतारा बन दमक रहा। अटक गई है नीयत तेरी, भूख ताज की है भारी, जनसेवा का ढोंग त्याग कर वानप्रस्थ की तैयारी। संविधान के मंदिर में, कुछ चोर उचक्के घुस आए, मां को गिरवी रखकर छोड़ा, जश्न मनाते ही आए। डाल रहा है गलबहियां, आतंकी से, अलगावी से, रिश्तेदारी निभा रहा, हाफिज से, साजिया भाभी से। आजादी के पक्षकार तुम, कब से देश चलाते रहे, बेच शर्म-हया अपनी, दुश्मन संग पींगे बढ़ाते रहे। फेंक चुके तुम देश गर्त में, सेवक से ही आशा है, अलगावी की भाषा है तेरी, पाकिस्तानी भाषा है।
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