बदलते रुख की निशानियां

By: Jan 10th, 2018 12:05 am

बातें तो अच्छी हो रही हैं और आशा का माहौल भी वर्तमान सरकार की परिकल्पना को अंगीकार कर रहा है। सुखद पहलू यह कि अभी सत्ता का वर्चस्व दिखाई नहीं दे रहा और विपक्ष भी सकारात्मक होने की मुद्रा में विधानसभा सत्र की खुश मिजाजी में अपनी शुमारी कर रहा है। बुजुर्ग नेता शांता कुमार अपने दौर की सियासत के समीकरणों में, टकराव से अलग रहने की नसीहत दे रहे हैं, तो सहयोग की धूप और दूब तपोवन तक बिछेगी। पहले सत्र के औपचारिक विमर्श में, मूड की गवाही भी सौमनस्य की फुहारों से निकल रही है। यह दीगर है कि सभी सदस्यों को शपथ दिलाने वाली कुर्सी तक पहुंचे विधायक रमेश धवाला इस परिसर पर सवाल उठा चुके हैं। हिमाचल में शिमला का परिचय अगर राजधानी के सियासी वातावरण से होता है, तो जो खंभे कांगड़ा के तपोवन में खड़े हो गए, उन पर भी लोकतंत्र का ध्वज फहरा रहा है। शिमला अगर एक ब्रिटिश खोज थी, तो हिमाचली सोज का तपोवन समझना होगा। अंततः हिमाचल और हिमाचलियों के संबंध में राजनीति से हटकर भी ऐसा बहुत कुछ है, जो मेहनत, ईमानदारी और शालीनता की मिसाल है। इन्हीं खूबियों की शिनाख्त में जयराम सरकार अभिनंदन के सैलाब में आशय और आश्वासन का एक नया दौर इंगित कर रही है। बेशक सरकार के दर्शन में तपोवन भी एक रिवायत बन चुका है और यही वजह है कि विधानसभा के इस परिसर में लगातार तीसरी बार यहां विधायकों ने शपथ ली। एक छत जिसके नीचे तीन विधानसभाओं का चित्रण कुछ इस तरह हो गया कि अब धरातल का विस्तार भी औचित्यपूर्ण होगा। इस बार विधानसभा की युवा ताजगी के मनोरथ में हिमाचल को समझने और निरूपित करने का समावेश दिखाई दे रहा है, तो दूसरी ओर सरकार का शंखनाद, बदलते बादलों की गड़गड़ाहट की तरह मौसम बता रहा है। धौलाधार के ठीक नीचे खुले उपवन में विजयी पताका सरीखी लहरों का अंदाजा प्रदेश के बदलते रुख की निशानी है, तो कहीं चुपचाप कम्प्यूटर से निकलती स्थानांतरण सूचियां परिदृश्य बदल रही हैं। सत्ता का एक जादू कांगड़ा एयरपोर्ट में नए मुख्यमंत्री का सत्कार करता है, तो दूसरी ओर शिमला सचिवालय की स्वायत्त परंपरा अधिकारियों की चोटियां गिन रही है। निजाम बदल रहा और सरकार खामोशी से अपना नक्शा बना रही है। बेशक सुशासन के लिए टीम बदलने की अनिवार्यता में आटे के साथ घुन पिसेगा, लेकिन यहां तो अंदाज ही कुछ ऐसा है कि सरकार होने की कसौटी एक आंधी की तरह सभी को समेट रही है। कुछ ऐसा ही वृत्तांत ऊना के पुलिस प्रमुख संजीव गांधी का बोरिया बिस्तर समेटने में मिलता है। कानून-व्यवस्था की चुनौतियों से बड़ी जमीन पर, राजनीतिक तफतीश का यह मंजर कहीं प्रदेश की छाती पर पत्थर रखकर कुछ नया तो साबित नहीं करना चाहता। किसी शायर ने कहा है, किस कद्र खामोश लगती है हवा इस पल मगर, वक्त आने पर कभी इसके तेवर देखना।। ऐसे में सरकार की नाव अगर धर्मशाला में अपनी सी लगती है, तो शिमला की धारा में बहती सी लगती है।-कल वो मांझी भी था पतवार भी था, किश्ती भी-आज इक-इक से कहता है बचा लो मुझको। कहना न होगा कि राजनीति की रेत पर बिखरे मुद्दों की गरमाहट के बावजूद मुख्यमंत्री अभी हालात के मुआयने पर और सरकार सजाने पर मेहनत कर रहे हैं। सिर्फ एक साल बाद लोकसभा चुनाव की तैयारी के बीच, सत्ता को कारवां बनाने की चुनौती तो रहेगी और इसीलिए सरकार अपनी संरचना में काबिल, भरोसेमंद, जवाबदेह और गंभीर बने रहने की राह पर तपोवन में अपनी शक्ति को संयम की ढाल पर चला रही है। एक औपचारिक या ओपनिंग सत्र से रू-ब-रू हकीकत से कहीं सपने बड़े हैं। जनता नए मुख्यमंत्री की कलम से पिछली सरकारों के कई हरफ मिटाने को उत्सुक है, तो बदले राजनीतिक समीकरणों के आगोश में समाना चाहती है। अभी दौर पुरस्कारों, सियासी त्योहारों, उपकारों और चमत्कारों का है, इसलिए सरकार के नजदीक फूल मुस्करा रहे हैं और कांटे कुचले जा रहे हैं। तपोवन गुलजार है, लेकिन जहां फौजें बदल रही हैं, उन शिविरों में अंधकार है। इस बदलाव से अभी कुछ नहीं पूछा जाएगा, लेकिन जो सिक्के उछाले जा रहे हैं, उन्हें धरती पर लौट कर ही पता चलेगा कि खनक का गुरुत्वाकर्षण नहीं होता। फैसलों की प्रतीक्षा में मुखबिर हालात तथा शपथ की सीढि़यां चुनकर सरकार और विपक्ष के बीच पाने की तमन्ना, पुनः शीतकालीन सत्र की गवाही दे रही। सरकार और विपक्ष के वजूद से जुड़े सवालों के बीच, तपोवन परिसर अपनी प्रासंगिकता के प्रश्न पर, अतीत से भविष्य तक उभरे राजनीतिक क्षितिज में एक मुसाफिर सा और प्रतीक्षरत सदा की तरह।


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