भगवान शिव के अवतार

By: Feb 24th, 2018 12:05 am

 ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे। शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है, लेकिन बहुत ही कम लोग इन अवतारों के बारे में जानते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव के 19 अवतार हुए थे…

शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है। भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे। शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है, लेकिन बहुत ही कम लोग इन अवतारों के बारे में जानते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव के 19 अवतार हुए थे, तो आइए जानें उन अवतारों के बारे में। वीरभद्र अवतार- भगवान शिव का यह अवतार तब हुआ था, जब दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपनी देह का त्याग किया था। जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रकट हुए। शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया। पिप्पलाद अवतार- मानव जीवन में भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का बड़ा महत्त्व है। शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका। कथा है कि पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा, क्या कारण है कि मेरे पिता दधीचि जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए। देवताओं ने बताया शनिग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा कुयोग बना। पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया। श्राप के प्रभाव से शनि उसी समय आकाश से गिरने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे। तभी से पिप्पलाद का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है। शिव महापुराण के अनुसार स्वयं ब्रह्मा ने ही शिव के इस अवतार का नामकरण किया था। नंदी अवतार- भगवान शंकर सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान शंकर का नंदीश्वर अवतार भी इसी बात का अनुसरण करते हुए सभी जीवों से प्रेम का संदेश देता है। नंदी  कर्म का प्रतीक है, जिसका अर्थ है कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है। इस अवतार की कथा इस प्रकार है। शिलाद मुनि ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने शिलाद से संतान उत्पन्न करने को कहा। शिलाद ने अयोनिज और मृत्युहीन संतान की कामना से भगवान शिव की तपस्या की। तब भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। भैरव अवतार- शिव महापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है।

कथा अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे। इसी दौरान वहां तेज पुंज के मध्य एक पुरुषाकृति दिखलाई पड़ी। उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा, चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो। अतः मेरी शरण में आ जाओ। ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शिव को क्रोध आ गया। उन्होंने उस पुरुषाकृति से कहा, काल की भांति शोभित होने के कारण आप साक्षात कालराज हैं। भीषण होने से भैरव हैं। भगवान शंकर से इन वरों को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया। ब्रह्मा का पांचवा सिर काटने के कारण भैरव ब्रह्म हत्या के पाप से दोषी हो गए। काशी में भैरव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली। शिव महापुराण में भैरव को भगवान शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। अश्वत्थामा- महाभारत में गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ही एकमात्र ऐसे योद्धा थे, जो युद्ध को कोरवों के पक्ष में करने की क्षमता रखते थे, लेकिन उन्हें युद्ध के अंत में सेनापति बनाया गया था। द्रोणाचार्य ने भगवान शिव को पुत्र रूप में पाने की लिए घोर तपस्या की थी।  उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया था कि वे उनके पुत्र के रूप में अवतीर्ण होंगे। समय आने पर सवंतिक रुद्र ने अपने अंश से द्रोण के बलशाली पुत्र अश्वत्थामा के रूप में अवतार लिया। ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर हैं तथा वह आज भी धरती पर ही निवास करते हैं।


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