उनके आधार का सवाल

By: Feb 4th, 2018 12:05 am

वे हमारा अपमान करते हैं। वे हमारे अब कान पर धरते हैं। वे सेवा के नाम पर सत्ता का चीरहरण करते हैं। वे बड़ों की बोलती बंद करते हैं। वे छोटों को दुत्कारते हैं। वे हमउम्र को फटकारते हैं। सिर्फ इसलिए कि हम हर बार दूसरों की आंखों से अपने सपने देखते हैं। हम हर बार दूसरों के कंधों पर सिर रखकर अपनी अपहाजिता का प्रदर्शन करते हैं। वे आते हैं, ख्वाबों के पुलिंदे दिखाते हैं। अपने-अपने पूर्वाग्रहों को नए रंगों में रंगते हैं। अपनी कथित नीतियों को चाशनी में डुबोकर पेश करते हैं। हम फिर उनकी बातों के शोर को संगीत समझकर उनके पीछे-पीछे हो लपकते हैं। इस सब किए धरे का कारण वे कम और हम ज्यादा हैं। हम कथित गुरुओं की शरण में सदियों बिता आए। हम कथित धर्म स्थलों की अनगिनत परिक्रमा कर आए। हम पुरोहितों को सब कुछ मान उनको सब समर्पित कर आए। हमने खुद पर विश्वास करना कभी सीखा ही नहीं। हमने अपने को भूल जाने के सारे प्रपंच रच लिए। जो कौम अपने आप को दीन-हीन और कमजोर समझती है, उनको लूटने वाले कदम-कदम पर मिला करते हैं। ऐसे लोग अपनों के हाथ लुटते और पिटते हैं। इसलिए आज हमारे चुने नेता ही हमारी छाती पर मूंग दल रहे हैं। हमारे खेवनहार हमें ही डुबोने की तैयारी में हैं। सत्ता महल की रोशनी में पगलाए हमारी झोपडि़यों को जलाने पर तुले हैं। उनके लिए न पहले हम कभी पहल थे और न आज। वे पहले भी हमारी बेबसियों पर अट्टहास करते आए और वे आज भी हमारी मजबूरियों पर अपने ख्वाबों की नींव रख रहे हैं। इसलिए उनको कोसने की बजाय हमें खुद को मजबूत बनाना होगा। दया की भीख मांगने वाले कभी बादशाह नहीं हुआ करते। मन से अपाहिज कभी तन से मजबूत नहीं हुआ करते और मन के सिकंदर ही तन और धन के वारे-न्यारे किया करते हैं। अपने मन को टटोलें। यहीं से किसी स्वाभिमान की गंगा निकलेगी। यहीं पर कहीं मुस्कान का अर्द्धचांद चमकेगा। खुद के पैरों पर खड़े होने से ही किसी नए पथ की आस बंधेगी। खुद की मुट्ठी पर भरोसा करने से ही किस्मत के विस्तार को आकार मिलेगा। उन पर किए विश्वास से आपका नहीं, उनका आधार बनेगा। सवाल करने की क्षमता ही उनके अहंकार को हिला पाएगी। शक करने की सूई ही उनके चरित्र को चुभ पाएगी। वे दूध के धुले नहीं, वे आप के विचारों की खट्टी छाछ के अंजाम हैं। वे शुद्ध पनीर भी नहीं, वे आपकी खटास का परिणाम हैं। इसलिए आप को ही अपनी शुद्धता का ऐहसास जगाना होगा। आप को ही अपने भीतरी डर को पहले भगाना होगा। आप उनके महल के दरबान नहीं। आप उनके सपनों की माटी की पहचान नहीं। लोकतंत्र में आपकी तूती तभी बोलेगी जब आप खुद बोलेंगे। उनकी आस्तीन पकड़ उनको खींचेंगे। भरोसा अपने पर किया ही नतीजा देगा। उनके भरोसे पर सवालिया फूंक से लोकतंत्र का बिगुल बजेगा।

-भारत भूषण ‘शून्य’


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