वैश्विक परिदृश्य में पिछड़ रहे हैं हम

By: May 1st, 2018 12:07 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

सरकार को चाहिए कि बीमार सार्वजनिक बैंकों का एक झटके में निजीकरण कर दे। इनमें दो लाख करोड़ निवेश करने के स्थान पर इन्हें बेचकर 20 लाख करोड़ की रकम अर्जित करे और इस रकम को तकनीकी आविष्कारों में झोंक दे। तब बैंकों के नकारात्मक प्रभाव को हम पलटकर सकारात्मक दिशा में बदल सकते हैं। दूसरा नकारात्मक संकेत सरकार के बढ़ते वित्तीय घाटे का है। सरकार द्वारा आय से अधिक खर्चों को वित्तीय घाटा कहा जाता है। इस समस्या से निबटने को सरकार को अपने खर्चों में कटौती करनी होगी…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की वैश्विक पैठ को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। हाल में ही लंदन में उनका भव्य स्वागत किया गया। इस सुखद पहल को गहरा एवं टिकाऊ बनाने के लिए कदम उठाने की जरूरत है। दुनिया तेजी से बदल रही है। आने वाले समय में पुराने फार्मूले काम नहीं करेंगे। इस बदलाव को समझने के लिए कुछ पीछे जाना होगा। इस सदी के प्रारंभ में अमरीकी अर्थव्यवस्था गतिमान थी। माइक्रोसाफ्ट ने विंडोज साफ्टवेयर बनाकर पूरी दुनिया में डिजिटल क्रांति लाई थी। इसके बाद नई तकनीकों का आविष्कार ढीला पड़ गया। तब 2008 में अमरीका में आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया। अमरीकी केंद्रीय बैंक ‘फेड’ ने ब्याज दरों को शून्य बना दिया, ताकि कंपनियां ऋण लेकर निवेश करें। परंतु नई तकनीकों के अभाव में अमरीका में निवेश नहीं हुआ और विश्व पूंजी का बहाव विकासशील देशों की ओर हो गया। इस बहाव से भारत लाभान्वित हुआ। हमारा शेयर बाजार आगे बढ़ता गया। हाल में एक बार फिर अमरीका में नई तकनीकों का आविष्कार हुआ है। इनमें रोबोट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रमुख हैं। इन तकनीकों के बल पर अमरीकी अर्थव्यवस्था पुनः गतिमान हो चली है। रोबोट से मैन्यूफैक्चरिंग पुनः अमरीका को लौट रही है। पूर्व में अमरीकी कंपनियां भारत में निवेश कर रही थीं, चूंकि यहां श्रमिकों के वेतन कम थे। भारत की यह ताकत रोबोट ने फुस्स कर दी है, चूंकि अब श्रम की जरूरत ही कम हो गई है। श्रम की जरूरत कम होने से भारत में श्रम का दाम कम होना निष्प्रभावी हो गया है, जैसे किचन के बजट में नमक का दाम निष्प्रभावी होता है। इसी प्रकार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने बौद्धिक कार्यों जैसे कानूनी रिसर्च के लिए भारतीय कर्मियों की जरूरत कम कर दी है। यहां भी भारत की ताकत फुस्स हो गई है। इन तकनीकी आविष्कारों के बल पर अमरीकी अर्थव्यवस्था गतिमान हो गई है। तदानुसार फेड ने पुनः ब्याज दरों में वृद्धि करना शुरू कर दिया है।

ऊपर बताया गया है कि 2008 में अमरीकी संकट के बाद विश्व पूंजी का बहाव भारत जैसे विकासशील देशों की तरफ हुआ था। जैसे गांव में नौकरी न मिलने पर श्रमिक दिल्ली या पंजाब की ओर चल पड़ता है। अब गाड़ी फिर से रिवर्स गेयर में चलने लगी है। तकनीकी आविष्कार होने से विश्व निवेशकों का रुख पुनः अमरीका की ओर मुड़ रहा है, जैसे मनरेगा के लागू होने के बाद पंजाब से श्रमिक वापस बिहार जाने लगे थे। फलस्वरूप भारत में विदेशी पूंजी तो कम आएगी ही, साथ-2 अपनी पूंजी का भी पलायन होने की संभावना बनती है। पूंजी के पलायन से भारत का शेयर बाजार चित्त हो जाना चाहिए था। परंतु भारत का शेयर बाजार लगातार उछल रहा है। कारण यह है कि नोटबंदी तथा जीएसटी के कारण भारत में छोटे उद्योग दबाव में आ गए हैं और बड़ी कंपनियों को पूरे देश में अपना माल बेचने की सहूलियत हो गई है। बड़े उद्योगों की इस बल्ले-बल्ले से शेयर बाजार उछल रहा है। छोटे उद्योगों के दबाव में आने से जमीनी अर्थव्यवस्था मंद है और हमारी ग्रोथ रेट पुरानी 7 प्रतिशत के इर्द-गिर्द ही टिकी हुई है। छोटे उद्योगों के पस्त होने से देश से विदेशी पूंजी का पलायन, शेयर बाजार में उछाल एवं ग्रोथ रेट का दबाव में रहना साथ-साथ चल रहे हैं। अमरीकी अर्थव्यवस्था में गति का पूर्व में भारत पर कुछ सुप्रभाव भी होता था। हमारे गलीचे ज्यादा मात्रा में निर्यात होते थे और हमारे इंजीनियर ज्यादा मात्रा में अमरीका जाते थे। यह सुप्रभाव अब नहीं पड़ेगा, क्योंकि राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा अमरीकी माल की खरीद और अमरीकी इंजीनियरों को जॉब देने पर जोर दिया जा रहा है। अतः अमरीका में तकनीकी आविष्कारों का हम पर एकमात्र प्रभाव यह होगा कि विदेशी पूंजी वापस जाएगी। यहां हमें विदेशी निवेश मे बढ़त के आंकड़ों से भ्रमित नहीं होना चाहिए। मेरे आकलन में इसमें बड़ा हिस्सा भारत की पूंजी की ही वापसी है। यह परिवर्तन 2018 की चुनौती है। भाजपा सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्गों, स्मार्ट सिटी, एयरपोर्ट, बुलेट ट्रेन आदि में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन दूसरे नकारात्मक चिन्ह दिखने लगे हैं। पहला नकारात्मक चिन्ह सरकारी बैंकों का है। सरकार ने मन बनाया है कि घाटे में चल रहे बैंकों को दो लाख करोड़ रुपए की सहायता उपलब्ध करवाई जाएगी। फलस्वरूप सरकार की नए तकनीकी आविष्कारों में निवेश करने की क्षमता नहीं रह जाएगी। जिस प्रकार अमरीका ने रोबोट तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का आविष्कार करके अर्थव्यवस्था को बढ़ाया है, उसी तरह भारत सरकार निवेश करे, तो हम अंतरिक्ष, इंटरनेट, जेनेटिक्स, डाटा प्रासेसिंग आदि क्षेत्रों में आविष्कार कर सकते हैं। यह अगले दशक में हमारे विकास का मंत्र हो सकता है। अतः सरकार को चाहिए कि बीमार सार्वजनिक बैंकों का एक झटके में निजीकरण कर दे। इनमें दो लाख करोड़ निवेश करने के स्थान पर इन्हें बेचकर 20 लाख करोड़ की रकम अर्जित करे और इस रकम को तकनीकी आविष्कारों में झोंक दे। तब बैंकों के नकारात्मक प्रभाव को हम पलटकर सकारात्मक दिशा में बदल सकते हैं। दूसरा नकारात्मक संकेत सरकार के बढ़ते वित्तीय घाटे का है। सरकार द्वारा आय से अधिक खर्चों को वित्तीय घाटा कहा जाता है। सरकार द्वारा ऋण लेकर यह खर्च किया जाता है। इस समस्या से निबटने को सरकार को अपने खर्चों में कटौती करनी होगी। 2019 में चुनाव होने हैं, अतः लोक लुभावनी जनकल्याणकारी योजनाओं पर खर्च भी बढ़ाना पड़ेगा।

सरकार ऋण अधिक लेगी, तो ब्याज दरें बढ़ेंगी और पुनः सरकार दबाव में आएगी। सरकार हर तरफ से घिरी हुई है। आय कम हो रही है। कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च बढ़ाना है, परंतु ऋण भी नहीं ले सकते हैं। इन तीनों कठिनाइयों के बीच सरकार को चाहिए कि एक झटके में तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं को बंद कर दे और इन पर खर्च किए जा रहे लगभग 6 लाख करोड़ रुपए की रकम को देश के 20 करोड़ परिवारों को सीधे 2,500 रुपए प्रतिमाह की दर से वितरित कर दे। इस वितरण से भयंकर राजनीतिक लाभ मिलेगा। आम आदमी इस रकम से कपड़े, बाइक तथा टीवी खरीदेगा और अर्थव्यवस्था चल निकलेगी। अमरीका में तकनीकी आविष्कार तथा ब्याज दरों की वृद्धि हमारे लिए खतरे की घंटी है। इसका समाधान सरकारी बैंकों के निजीकरण एवं जन कल्याणकारी योजनाओं को समाप्त करके मिली रकम को तकनीकी आविष्कारों तथा जनता में सीधे वितरण से निकल सकता है।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com

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