विष्णु पुराण

By: Jun 30th, 2018 12:05 am

श्री पराशरजी बोले, प्रह्लाद की बात सुनकर दैत्यराज के नेत्र क्रोध से लाल हो गए और वह उसके गुरु की ओर देखता हुआ कंपित होठों से कहने लगा। हिरण्यकश्यप ने कहा, अरे मतिहीन विप्र! तूने मेरी आज्ञा की अवहेलना और तिरस्कार कर मेरे विपक्षी की स्तुति सहित सारहीन शिक्षा दी है…

शास्ता विस्गुरशेषस्य जगतो यो हृदि स्थितः।

तमृते परमात्मान तात कः केन शास्यते।।

प्रह्लाद ने कहा, हे पिताजी! मेरे मन में जो सार रूप से है, उसे मैं आपकी आज्ञा से सुनाता हूं, आप ध्यान से सुने। आदि मध्य और अन्य से रहित, बुद्धि और क्षय से परे, जन्महीन, अच्युत, सभी कारणों के कारण तथा संसार की सृष्टि स्थिति और प्रलयकर्ता भगवान विष्णु को प्रणाम करता हूं।

श्री पराशरजी बोले, प्रह्लाद की बात सुनकर दैत्यराज के नेत्र क्रोध से लाल हो गए और वह उसके गुरु की ओर देखता हुआ कंपित होठों से कहने लगा। हिरण्यकश्यप ने कहा अरे मतिहीन विप्र! तूने मेरी आज्ञा की अवहेलना और तिरस्कार कर मेरे विपक्षी की स्तुति सहित सारहीन शिक्षा दी है।

गुरु ने कहा, हे दैत्यराज! आप क्रोधित न हों आपके इस पुत्र ने मेरे द्वारा सिखाई बात आपसे नहीं कही है। इस पर हिरण्यकश्यप ने कहा, हे पुत्र प्रह्लाद! तुमको यह शिक्षा किसने दी है, तुम्हारे गुरुजी कह रहे हैं कि यह शिक्षा मेरी नहीं हैं।

प्रह्लाद ने कहा, हे पिताजी! वही भगवान सबके हृदय में रहकर संसार को उपदेश देते हैं। उनके अतिरिक्त अन्य कौन किसी को कोई सीख दे सकता है।

कोऽयं विष्णु सुदर्बुद्ध य ब्रीवोषि पुनः पुनः।

जगतामीश्वरः यह षुरत-प्रसभ मम।

न शब्दगोचर यस्य योगिध्येयं पद्म।

यतो यश्च स्वयं विश्व स विष्णुः परमेश्वरः।

परमेश्वरसंज्ञोऽज्ञ किमंतो मध्यवस्थिते।

तथापि मर्तुकास्त्व प्रब्रबीषि पुनः पुनः।

न केवल तात मम प्रजानां सं ब्रह्मभूतोभवाश्च विष्णुः।

धाता विधाता परमेश्वरश्च प्रसोद कोपं कुरुषे किमर्थम।

प्रविष्ट कोऽस्य हृदये दुर्बुद्धोरतिपापकृत।

येनद्दशान्यसाधूनि वदत्याविष्टमानसनः।

न केवलं मदधृदय व विष्णु।

राक्रम्य लोकानखिलानवस्थितः।

स मा त्वादादीश्च हितस्समस्ता।

न्सस्तचेष्टासु युनक्ति सवर्गः भ।

निष्कास्यतामय पापः शास्यतां च गुरोर्गृहे।

योजितो दुर्मतिः केन विपक्षविषयस्तुतौ।

हिरण्यकश्यप ने कहा, अरे मूर्ख! तू जिस विष्णु का मुझे संसार के ईश्वर के समक्ष धृष्टतापूर्वक वर्णन कर रहा है, कौन है, यह मुझे नहीं ज्ञात। मेरी वाणी से जिसका वर्णन संभव नहीं है तथा जिससे संसार उत्पन्न हुआ है और जो स्वयं विश्व रूप है, वह भगवान विष्णु ही परमेश्वर है, परमेश्वर हो सकता है?

परंतु तू बार-बार किसी अन्य का गुण गाकर मेरा अपमान कर रहा है। प्रह्लाद ने कहा कि वह ब्रह्मभूत विष्णु मेरा ही नहीं संपूर्ण प्रजा का और आपका भी सृष्टा नियंता और ईश्वर है। ऐसा जानकर आप प्रसन्न हों, निरर्थक क्रोध न करें। हिरण्यकश्यप ने कहा, इस दुर्बुद्धि बालक के हृदय में कौन पापी प्रविष्ट हो गया है, जो इसे दबाकर इससे कुवाक्य कहला रहा है। यह क्यों विष्णु के गुणगान कर रहा है? क्यों उसके नाम का इतना जाप कर रहा है। प्रह्लाद ने कहा, हे पिताजी! वह विष्णु भगवान ही मेरे हृदय आपकी ओर संसार के सभी जीवों की सचेष्ट करते हैं। हिरण्यकशिपु ने कहा, इस पापी को तुरंत यहां से ले जाकर गुरु की शरण में भली प्रकार रखो। न जाने किसने इस छोटी बुद्धि वाले बालक को मेरे विपक्षी की प्रशंसा में लगा दिया है। गुरु के सान्निध्य में रहकर यह मेरा नाम स्मरण करेगा।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App