कविता

By: Jul 8th, 2018 12:00 am

वो दिन

ऐ काश वो दिन फिर आ जाएं

उन अ-आ-इ-ई की किताबों पर वापस हाथ फिराएं।

इन बिखरी-बिखरी जुल्फों पर तेल लगाकर चोटी बनाएं

और ठिठुरती ठंड में बस का इंतजार कर एक नया खेल दिखाएं।

आंगन की मिट्टी अपने पास बुलाएं

वो वर्दी का रंग फिर चढ़ जाए।

ऐ काश वो दिन फिर आ जाएं

ऐ काश वो दिन फिर आ जाएं।।

यूं तो कुछ बदला ही नहीं

बस, तब दिनों में खेल और रातों में मंद-मंद नींद

अब दिनों में कुछ नींद और रातों में किताबें तीन।

वो किसी की गोद का सहारा नहीं

और खो गया है मां के हाथ का निवाला कहीं।

उन खुली हवाओं में हम भंवरे से उड़ जाएं

वो सीधी लकीर में हाथ जोड़कर ईश्वर वंदना गाएं।

ऐ काश वो दिन फिर आ जाएं, ऐ काश वो दिन…।।

-सुरम्या कौशिक


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