भारत में बाढ़ का कारण हम स्वयं

By: Sep 18th, 2018 12:08 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

हमने बगल में दीवारें बनाकर नदी को यू शेप में बदल दिया है। पानी बढ़ने पर नदी का क्रॉस सेक्शन अब बढ़ता नहीं है। खड़ी दीवारों के बीच में ही नदी को बहना पड़ता है। अतः नदी इन दीवारों को शीघ्र ही पार कर लेती है और पानी चौतरफा पूरे क्षेत्र में फैल जाता है, जिससे कि शहरों में बाढ़ आती है। बाढ़ आने का दूसरा कारण बड़े बांधों का बनाना है। बड़े बांध वर्षा के पानी को रोक लेते हैं और बांध के नीचे बाढ़ का प्रकोप कम हो जाता है, लेकिन यह तात्कालिक प्रभाव मात्र है। दीर्घकाल में बाढ़ को रोकने का प्रभाव अलग पड़ता है…

इस मानसून के मौसम में देश के तमाम शहर बाढ़ की चपेट में आए हैं। बाढ़ का तात्कालिक कारण ग्लोबल वार्मिंग है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण वर्षा का पैटर्न बदल रहा है। पूर्व में जो पानी तीन माह में धीरे-धीरे बरसता था, अब वह कम ही दिनों में तेजी से बरस रहा है। जब पानी तेजी से बरस रहा होता है, उस समय नदियों को अधिक पानी समुद्र तक पहुंचाना पड़ता है, जिसके लिए उनकी क्षमता कम पड़ रही है, इसलिए बाढ़ आ रही है। जाहिर है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते नदी को पानी वहन करने की क्षमता को बढ़ाना होगा, ताकि तेज हुई बारिश के पानी को वह समुद्र तक ले जाए, लेकिन हमने इसके विपरीत नदी की वहन शक्ति को कई तरह से कमजोर किया है, जिसके कारण बाढ़ का प्रकोप ज्यादा हो गया है। देश की कई शहरी नदियों में रिवरफ्रंट डेवलपमेंट योजनाएं लागू की जा रही हैं। इन योजनाओं में नदी के दोनों तरफ खड़ी दीवारें बना दी जाती हैं, जिससे नदी का पानी एक निर्धारित क्षेत्र में ही बहता है। आसपास की जमीन पर प्रापर्टी डेवलपमेंट या सड़कें बनाई जा सकती हैं। इस प्रकार का विकास अहमदाबाद में साबरमती और लखनऊ की गोमती नदी में देखा जा सकता है। इन खड़ी दीवारों से नदी का पाट छोटा हो जाता है।

सामान्य रूप से नदी का पाट वी शेप में होता है। जैसे-जैसे जलस्तर बढ़ता है, वैसे-वैसे पानी को फैलने का स्थान अधिक मिलता है और नदी के पानी वहन करने की कुल शक्ति बढ़ती जाती है। लेकिन हमने बगल में दीवारें बनाकर नदी को यू शेप में बदल दिया है। पानी बढ़ने पर नदी का क्रॉस सेक्शन अब बढ़ता नहीं है। खड़ी दीवारों के बीच में ही नदी को बहना पड़ता है। अतः नदी इन दीवारों को शीघ्र ही पार कर लेती है और पानी चौतरफा पूरे क्षेत्र में फैल जाता है, जिससे कि शहरों में बाढ़ आती है। बाढ़ आने का दूसरा कारण बड़े बांधों का बनाना है। बड़े बांध वर्षा के पानी को रोक लेते हैं और बांध के नीचे बाढ़ का प्रकोप कम हो जाता है, लेकिन यह तात्कालिक प्रभाव मात्र है। दीर्घकाल में बाढ़ को रोकने का प्रभाव अलग पड़ता है। नदी का स्वभाव होता है कि अपने साथ ऊपर से गाद लाती है और इस गाद को अपने पेटे में धीरे-धीरे जमा करती जाती है। चार पांच साल बाद जब बड़ी बाढ़ आती है, तब नदी एक झटके में इस जमा गाद को समुद्र तक पहुंचा देती है और अपने पेटे को पुनः खाली कर देती है। बड़े बांध बनाने से यह बड़ी बाढ़ आना अब बंद हो गया है। जो गाद नदी लेकर आती है, वह पेटे में जमती जाती है और नदी का पेटा उपर उठता जा रहा है। नदी का पेटा ऊंचा होने से छोटी बाढ़ भी चारों ओर फैल जाती है और ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। इस प्रकार सामान्य बाढ़ को रोकने के प्रयास में हमने वास्तव में बाढ़ के प्रकोप को बढ़ा दिया है। इसलिए बड़े बांधों का भी अंतिम प्रभाव नकारात्मक दिखता है। बाढ़ के प्रकोप का मैदानी क्षेत्रों में एक और कारण बंधों का बनाना है। उत्तर प्रदेश और बिहार के मैदानी क्षेत्रों में नदियों के दोनों तरफ मिट्टी के बंधे बना दिए जाते हैं, जिससे बाढ़ के समय नदी का पानी बंधों के बीच में ही बहे और चारों तरफ न फैले। इससे लोगों को राहत भी मिलती है, लेकिन यह भी अल्पकालीन प्रभाव मात्र है। दीर्घकाल में इसका भी प्रभाव उल्टा पड़ता है।

नदी अपने साथ ऊपर से गाद लाती है और इस गाद को बंधों के बीच में धीरे-धीरे जमा करती जाती है। बंधों के बीच नदी का पेटा ऊंचा होता जाता है। तब इंजीनियरों द्वारा बगल के बंधों को और ऊंचा कर दिया जाता है। शीघ्र ही ऐसी परिस्थिति बनती है कि नदी आसपास की जमीन के तल से ऊपर बहने लगती है, जैसे मेट्रो ट्रेन सड़क के ऊपर चलती है। ऐसे में जब कभी बंधे टूटते हैं, तो पानी झरने की तरह नदी के पाट से निकल कर चारों तरफ खेतों और मैदानी क्षेत्र में फैल जाता है। इस पानी के निकलने के रास्ते भी ये बंधे ही रोक लेते हैं। बंधों का जाल बनाने से बाढ़ के पानी की निकासी के जो सामान्य रास्ते होते थे, वे बंधों से बंद हो जाते हैं। कई बंधों के बीच में मैदानी क्षेत्र एक कटोरे के समान हो जाते हैं, जिसमें बरसात और बाढ़ का पानी जमा हो जाने के बाद निकलने का कोई रास्ता नहीं होता है। वही बाढ़ जो पहले हफ्ता, दस दिन में निकल जाती थी, अब ज्यादा समय तक रुकी रहती है। बाढ़ का एक लाभ भी होता है। सामान्य बाढ़ के समय नदी का पानी फैल कर बहता है और कई किलोमीटर तक फैल जाता है। फैले हुए पानी से भूमिगत जल का पुनर्भरण होता है और बरसात के बाद जाड़े और गर्मी के मौसम में किसानों द्वारा उस बाढ़ के पानी को आसानी से निकाला जा सकता है। आज से 20 वर्ष पूर्व गोरखपुर के क्षेत्र में केवल 5 फीट नीचे से डीजल पंप से पानी को आसानी से निकाला जा सकता था, लेकिन बाढ़ को बंधों के बीच में कैद करने से अथवा बड़े बांधों में पानी को रोक लेने से पानी का यह फैलाव बंद हो गया है। इससे भूमिगत जल का पुनर्भरण भी कम हो रहा है। भूमिगत जल का स्तर पूरे देश में तेजी से नीचे जा रहा है। सिंचाई के क्षेत्र में जितना हम विस्तार बांधों के माध्यम से करते हैं, उससे ज्यादा नुकसान पानी के कम पुनर्भरण होने से हो जाता है। अंतिम परिणाम यह है कि बांध बनाकर हम सिंचाई के कुल क्षेत्र में विस्तार नहीं ला रहे हैं।

इन सब कारणों को देखते हुए हमें बाढ़ के प्रति अपने विचार पर पुनर्विचार करना होगा। बाढ़ प्रबंधन के ऊपर नए सिरे से विचार करना होगा। ग्लोबल वार्मिंग के कारण नदी की वहन क्षमता को तो बढ़ाना ही होगा। मसलन रिवरफ्रंट, छोटे पुलों से बने अवरोध इत्यादि योजनाओं से नदी को कैद करने के स्थान पर नदी को फैलने का अवसर देना होगा, जिससे नदी आसानी से पानी को समुद्र तक पहुंचा सके। बड़े बांधों एवं बंधों को हटाने पर विचार करना चाहिए, जिससे नदी प्राकृतिक रूप में बह सके, नदी का पानी फैले, भूमिगत जल का पुनर्भरण हो और गाद को समुद्र तक ले जाए, जिससे प्राकृतिक रूप से आने वाली बाढ़ भयंकर रूप न धारण करे।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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