भाजपा, हिंदुत्व और मतदाता

By: Nov 29th, 2018 12:08 am

पीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

यह एक तथ्य है कि मुज्ज्फरनगर के दंगों में मुस्लिम समाज को ज्यादा क्षति पहुंची, उनके ज्यादा लोग मरे, लेकिन भाजपा ने जानबूझकर गलत आंकड़े पेश किए। अखिलेश यादव ने छात्रवृत्तियां दीं, लैपटॉप बांटे, तो वे किसी एक जाति विशेष के लिए नहीं थे, सब को मिले, लेकिन भाजपा ने इस तरह से पेश किया मानो यह लाभ सिर्फ मुस्लिम वर्ग को मिला। समाज को जोड़ने के नाम पर भाजपा ने समाज को बांटा है। भाजपा अब भी राम मंदिर के बहाने हिंदू-मुस्लिम कार्ड का प्रयोग कर रही है और 2019 तक तो यह नाटक चलता ही रहेगा…

राष्ट्रीय स्वयंसेवक  संघ भारत का एक  दक्षिणपंथी, हिंदू राष्ट्रवादी, अर्धसैनिक  स्वयंसेवी संगठन है और इसे विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान माना जाता है, लेकिन दरअसल यह भारतीय जनता पार्टी का पैतृक  संगठन है। संघ का उद्देश्य हिंदुओं में अनुशासन के  माध्यम से चरित्र प्रशिक्षण प्रदान करना और हिंदू राष्ट्र बनाने के  लिए हिंदू समुदाय को एकजुट करना था। संघ भारतीय संस्कृति और नागरिक  समाज के  मूल्यों को बनाए रखने के  आदर्शों को बढ़ावा देता है और बहुसंख्यक  हिंदू समुदाय को मजबूत करने के  लिए हिंदुत्व की विचारधारा का प्रचार करता है। धीरे-धीरे आरएसएस एक  प्रमुख हिंदू राष्ट्रवादी पैतृक संगठन के रूप में उभरा, जिसने वैचारिक मान्यताओं को स्थापित करने के लिए कई संबद्ध संगठनों को जन्म दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक  संघ के जनक डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने 27 सितंबर, 1925 को विजयादशमी वाले दिन संघ की स्थापना की। सबसे पहले 50 वर्ष बाद 1975 में जब आपातकाल की घोषणा हुई, तो संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। आपातकाल हटने के  बाद जनसंघ का विलय जनता पार्टी में हुआ और केंद्र में मोरारजी देसाई के  प्रधानमंत्रित्व में मिली-जुली सरकार बनी। सन् 1975 के  बाद से धीरे-धीरे इस संगठन का राजनीतिक  महत्त्व बढ़ता गया और इसकी परिणति एक नए राजनीतिक  दल के  रूप में हुई, जिसे भारतीय जनता पार्टी का नाम दिया गया। संघ की स्थापना के  75 वर्ष बाद सन् 2000 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के  नेतृत्व में एनडीए की मिली-जुली सरकार ने भारतवर्ष के शासन की बागडोर संभाली। सन् 1967 में संविद सरकारों के अंग के रूप में भारतीय जनसंघ को सत्ता सुख भोगने का मौका मिला। इसके बावजूद जनसंघ की स्वीकार्यता सीमित रही।

सन् 1974 में लोकनायक जयप्रकाश के समग्र क्रांति आंदोलन के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की लोकप्रियता गिर रही थी कि सन् 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगमोहन सिन्हा ने तकनीकी कारणों से रायबरेली से इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। इसके बाद देश ने 19 महीने का आपातकाल भोगा। अपने चापलूसों की बातों में आकर इंदिरा गांधी ने सन् 1977 में संसद भंग करके मध्यावधि चुनावों की घोषणा कर दी और जहां उनकी पार्टी ने बहुमत गंवाया, वहीं खुद इंदिरा गांधी भी चुनाव हार गईं। भारतीय जनसंघ सहित पांच विपक्षी दलों के विलय से बनी जनता पार्टी ने देश की सत्ता संभाली। जनसंघ के नेताओं का केंद्र की सत्ता में आने का वह पहला मौका था, जिससे उनकी पहचान बनी। अढ़ाई साल में ही जनता पार्टी का पतन हो गया और इंदिरा गांधी दोबारा सत्ता में आ गईं। उनकी हत्या के बाद उनके बड़े सुपुत्र राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने और 1984 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने विपक्ष का सफाया कर डाला। बोफोर्स की काली छाया के चलते राजीव गांधी अगला चुनाव हार गए और भाजपा के बाहरी समर्थन से विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने। उनके प्रधानमंत्रित्व काल में भाजपा ने अपने पैर फैलाने शुरू किए, लेकिन जब वीपी सिंह ने मंडल का कार्ड खेल कर आरक्षण का प्रतिशत बढ़ा दिया, तो भाजपा दुविधा में पड़ गई क्योंकि भाजपा के समर्थक मुख्यतः सवर्ण हिंदू थे।

यदि वह आरक्षण का समर्थन करती, तो उसके कार्यकर्ता और हितचिंतक नाराज होते और यदि वह इसका विरोध करती, तो दलित वर्ग के मत मिलने की संभावना जाती रहती। ऐसे में भाजपा ने चतुराई से हिंदू कार्ड खेला और राम मंदिर का मुद्दा उठाना शुरू कर दिया। राम मंदिर का मुद्दा ऐसा था, जिसने सवर्णों और दलितों को समान रूप से प्रभावित किया। सन् 1992 में बाबरी मस्जिद कांड हुआ और एक बार फिर धु्रवीकरण का खेल चला। सन् 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने केंद्र की सत्ता संभाली, लेकिन वाजपेयी बहुमत नहीं जुटा पाए और एक पखवाड़े में ही उनकी सरकार गिर गई। वाजपेयी के ही नेतृत्व में भाजपा 1998 में एक बार फिर सत्ता में आई और वे 2004 तक प्रधानमंत्री रहे। इस बीच फिर से भाजपा का विस्तार हुआ। उन्हीं के प्रधानमंत्रित्व काल में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने। मोदी पर गोधरा कांड का कलंक लगा, वाजपेयी उनसे नाराज हुए लेकिन लालकृष्ण आडवाणी की कृपा से उनकी कुर्सी बची रही। हीरेन पंड्या की हत्या, एक अध्यापिका की जासूसी का कांड और सोहराबुद्दीन की हत्या के आरोप भी मोदी को नहीं हिला पाए। उनके विश्वस्त साथी और तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह गिरफ्तार हुए और फिर तड़ीपार हुए। इसके बाद अमित शाह उत्तर प्रदेश चले गए और उन्होंने उत्तर प्रदेश में भाजपा का हिंदू कार्ड चलाना आरंभ किया। उत्तर प्रदेश की खासियत यह है कि अयोध्या, काशी, मथुरा, वृंदावन, प्रयाग आदि हिंदू धर्मस्थल सब इस एक राज्य में हैं और यह एक संवेदनशील इलाका है। अमित शाह ने इसी का लाभ उठाया और भाजपा की ओर से हिंदुओं में यह भावना जागृत करनी शुरू कर दी कि उनकी उपेक्षा हो रही है, उनके साथ अन्याय हो रहा है। यहां यह उल्लेखनीय है कि गुजरात में मोदी के सत्तासीन होने के बाद तीन बार विधानसभा चुनाव हुए और हर बार हिंदू-मुस्लिम कार्ड भी खेला गया। अमित शाह ने उसी चाल का प्रयोग उत्तर प्रदेश में किया। दूसरी तरफ कांग्रेस, सपा और बसपा सचमुच मुस्लिम तुष्टिकरण में व्यस्त हो गए, इससे अमित शाह की चांदी बनी। इन दलों के नेताओं के बयानों ने भी मुस्लिम तुष्टिकरण की धारणा को पुष्ट किया, लेकिन धर्म और राष्ट्रीयता के नाम पर किए गए भाजपा के कार्यों ने आग में घी का काम किया। यह एक तथ्य है कि मुज्जफरनगर के दंगों में मुस्लिम समाज को ज्यादा क्षति पहुंची, उनके ज्यादा लोग मरे, लेकिन भाजपा ने जानबूझकर गलत आंकड़े पेश किए। अखिलेश यादव ने छात्रवृत्तियां दीं, लैपटॉप बांटे, तो वे किसी एक जाति विशेष के लिए नहीं थे, सब को मिले, लेकिन भाजपा ने इस तरह से पेश किया मानो यह लाभ सिर्फ मुस्लिम वर्ग को मिला।

समाज को जोड़ने के नाम पर भाजपा ने समाज को बांटा है। भाजपा अब भी राम मंदिर के बहाने हिंदू-मुस्लिम कार्ड का प्रयोग कर रही है और 2019 तक तो यह नाटक चलता ही रहेगा। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम हर दल को विकास के मुद्दे पर वापस खींच लाएं। कांग्रेस, भाजपा हो या कोई और दल, वे धर्म की राजनीति न खेल पाएं, वे समाज को बांटने में सफल न हो पाएं। इसी में हम मतदाताओं का भला है।

   ईमेलःindiatotal.features@gmail.

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