आर्थिक चुनौतियां अभी बाकी हैं

By: Dec 24th, 2018 12:08 am

जयंती लाल भंडारी

ख्यात अर्थशास्त्री

जीएसटी संग्रह लक्ष्य से करीब एक लाख करोड़ रुपए कम है। विनिवेश लक्ष्य प्राप्ति से दूर है। तेल सबसिडी व अनाज सबसिडी का अतिरिक्त बोझ स्पष्ट दिखाई दे रहा है। देश की अर्थव्यवस्था के समक्ष एक बड़ी नई चुनौती किसानों की कर्जमाफी से संबंधित है। यदि किसानों की कर्जमाफी का ऐसा कुठाराघाती कदम उठाया गया, तो वर्ष 2019 में अर्थव्यवस्था की मुश्किलें बढ़ेंगी, महंगाई बढ़ेगी…

निस्संदेह वर्ष 2018 आर्थिक और वित्तीय चुनौतियों का वर्ष रहा। यद्यपि वर्ष 2018 को वर्ष 2017 से नोटबंदी व जीएसटी के कारण उद्योग-कारोबार की कठिनाई, कम निवेश, कम रोजगार और कम विकास दर जैसी कई आर्थिक मुश्किलें विरासत में मिली थीं, उनसे वर्ष 2018 पूरी तरह उबर नहीं पाया, लेकिन विभिन्न आर्थिक मुश्किलों के बाद भी 2018 में भारत 7.5 फीसदी विकास दर के साथ विकास दर के मामले में दुनिया में पहले क्रम पर रहा। साथ ही विश्व बैंक की रिपोर्ट 2018 के अनुसार भारत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आधार पर फ्रांस को पछाड़कर दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। निश्चित रूप से वर्ष 2018 में वर्षभर देश के आर्थिक परिदृश्य पर तेजी से बढ़ती हुई चार अहम आर्थिक-सामाजिक चुनौतियां आम आदमी से लेकर संपूर्ण अर्थव्यवस्था को चिंतित करती दिखाई दीं। पहली, कच्चे तेल की लगातार बढ़ती कीमतें। दूसरी, डालर की तुलना रुपए की कीमत में करीब 20 फीसदी की वृद्धि हुई। रुपए की तुलना में अमरीकी डालर का मूल्य 70 रुपए पर पहुंच गया। परिणामस्वरूप रुपए की घटती हुई कीमत और महंगाई बढ़ने से उपभोक्ताओं की परेशानियां बढ़ी हैं। तीसरी, देश का राजकोषीय घाटा तेजी से बढ़ा है और चौथी, आयात बढ़ने और निर्यात नहीं बढ़ने से विदेशी मुद्राकोष में कमी आई। यद्यपि इन चारों चुनौतियों का संबंध वैश्विक घटनाक्रम से रहा, लेकिन ये चुनौतियां आम आदमी और अर्थव्यवस्था के लिए परेशानियों का सबब बनती गईं। यकीनन उद्योग कारोबार और प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में वर्ष 2018 में भारत की कई उपलब्धियां रेखांकित हुईं। विश्व बैंक की डूइंग बिजनेस रिपोर्ट 2018 के अनुसार भारत को 190 देशों की सूची में 77वां स्थान दिया गया। विश्व प्रतिस्पर्धा केंद्र रिपोर्ट 2018 के अनुसार 63 देशों की वैश्विक प्रतिस्पर्धी रैंकिंग में भारत 44वें स्थान पर रहा। वैश्विक परामर्श फर्म एटी कियर्ने के अनुसार ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश विश्वास सूचकांक-2018’ में 25 देशों की अर्थव्यवस्थाओं में भारत को 11वां स्थान प्राप्त हुआ। इसी तरह अंतरराष्ट्रीय सलाहकारी कंपनी पीडब्ल्यूसी की एक अध्ययन रिपोर्ट 2018 के अनुसार भारत को दुनियाभर में निवेश में पांचवां सबसे आकर्षक बाजार बताया गया। वर्ष 2018 में देश का बैंकिंग क्षेत्र लगातार चर्चित रहा। 14 फरवरी, 2018 को पंजाब नेशनल बैंक में देश की बैंकिंग इंडस्ट्री की सबसे बड़ी धोखाधड़ी पकड़ी गई। यह फ्रॉड 13417 करोड़ रुपए से अधिक का था। पंजाब नेशनल बैंक ने डायमंड कारोबारी नीरव मोदी के खिलाफ केस दर्ज किया। फिर विजय माल्या के खिलाफ भी धोखाधड़ी का केस दर्ज हुआ। देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई)को जनवरी से मार्च 2018 के दौरान 7718 करोड़ रुपए का घाटा हुआ।  उल्लेखनीय है कि देश में बैंकिंग घोटालों को रोकने के लिए सरकार ने तीन महत्त्वपूर्ण आर्थिक कानून लागू किए, जिनसे बैंकिंग सुधार का परिदृश्य दिखाई देने लगा है। वर्ष 2018 में केंद्र और रिजर्व बैंक के रिश्तों में कड़वाहट रही, रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा दिया और सरकार ने शक्तिकांत दास को नया गवर्नर बनाया। वर्ष 2018 से सरकार ने कृषि, उद्योग, कारोबार क्षेत्र को राहत भी प्रदान की। चूंकि देश के सूक्ष्म, लघु और मझौले (एमएसएमई) क्षेत्र की अधिकांश इकाइयों ने नोटबंदी और जीएसटी के लगातार दो झटकों को झेला था। अतएव इस क्षेत्र के कारोबारियों को राहत देने के लिए 2 नवंबर, 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सूक्ष्म, लघु और मझौली इकाइयों को राहत देने के लिए 12 महत्त्वपूर्ण प्रोत्साहन पैकेजों की घोषणा की है। इसमें कोई दोमत नहीं है कि ब्याज दरों में कमी और नियमों व प्रक्रियाओं में सरलीकरण से छोटे उद्यमियों को लाभ होगा। इसी तरह प्रधानमंत्री मोदी ने 18 दिसंबर, 2018 को लग्जरी वस्तुओं को छोड़कर जरूरी इस्तेमाल की 99 फीसदी वस्तुओं को 18 फीसदी या इससे कम वाली जीएसटी स्लैब में रखे जाने की बात कही। निस्संदेह वर्ष 2018 कई प्रमुख आर्थिक निर्णयों के लिए भी याद किया जाएगा। देश के विकास में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के महत्त्व को देखते हुए इसे बढ़ावा देने के लिए इसे और अधिक उदार बनाया गया। ‘सिंगल ब्रांड रिटेल ट्रेडिंग’ में 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति आटोमैटिक रूट के जरिए प्रदान कर दी गई। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने वित्त वर्ष 2017-18 के लिए कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) पर ब्याज की दर घटाकर 8.55 फीसदी कर दी। केंद्रीय वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 31 मार्च, 2018 को समाप्त पिछले वित्त वर्ष में प्रत्यक्ष कर संग्रह 18 प्रतिशत बढ़कर 10.02 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया। इसके साथ ही 2017-18 के दौरान आयकर रिटर्न की संख्या बढ़कर 6.84 करोड़ हो गई। वर्ष 2018 में मुंबई स्टॉक एक्सचेंज संयुक्त राज्य अमरीका सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन द्वारा डिजाइंड आफ शोर सिक्योरिटीज मार्केट के रूप में नामित होने वाला पहला भारतीय स्टॉक एक्सचेंज बन गया। इससे भारत में अमरीकी निवेशकों के लिए व्यापार करना सरल हो गया। एक नवंबर, 2018 से अमरीका ने 90 वस्तुओं को ड्यूटी फ्री आयात की सूची से हटा दिया। यानी इन वस्तुओं के आयात पर अमरीका में शुल्क लगाना शुरू किया। भारत इनमें से करीब 50 वस्तुओं का निर्यात अमरीका को करता है। इनमें ज्यादातर हैंडलूम और कृषि क्षेत्र के उत्पाद हैं। इस फैसले से भारत का अमरीका को निर्यात प्रभावित हुआ। यद्यपि दुनिया के अधिकांश शेयर बाजार डालर की मजबूती, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और अमरीका-चीन के बीच बढ़ते ट्रेड वार के दुष्परिणामों से तेजी से ढहते हुए दिखाई दिए, लेकिन उनकी तुलना में भारतीय शेयर बाजार में गिरावट बहुत कम है। मुंबई स्टॉक एक्सचेंज का संवेदी सूचकांक सेंसेक्स दिसंबर, 2018 में 37000 अंकों के आसपास केंद्रित रहा। वर्ष 2019 को आर्थिक विरासत के रूप में मिलते हुए दिखाई दे रही हैं। इनमें से एक कच्चे तेल की कीमतें, दूसरी राजकोषीय घाटा तथा तीसरी किसानों की कर्जमाफी से संबंधित है। जीएसटी संग्रह लक्ष्य से करीब एक लाख करोड़ रुपए कम है। विनिवेश लक्ष्य प्राप्ति से दूर है। तेल सबसिडी व अनाज सबसिडी का अतिरिक्त बोझ स्पष्ट दिखाई दे रहा है। देश की अर्थव्यवस्था के समक्ष एक बड़ी नई चुनौती किसानों की कर्जमाफी से संबंधित है। यदि किसानों की कर्जमाफी का ऐसा कुठाराघाती कदम उठाया गया, तो वर्ष 2019 में अर्थव्यवस्था की मुश्किलें बढ़ेंगी, महंगाई बढ़ेगी, विकास दर घटेगी।


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