खेल उत्थान में पुलिस निभाए भूमिका

By: Dec 21st, 2018 12:07 am

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

पुलिस के पास विभिन्न खेलों के कई अच्छे खिलाड़ी हैं, उन्हें अच्छे प्रशिक्षण कार्यक्रम की जरूरत है और जो खिलाड़ी खेल छोड़ चुके हैं वे अच्छा प्रशिक्षण कार्यक्रम चला सकते हैं। यह पंजाब पुलिस शुरू भी कर चुकी है। पुलिस विभाग के पास दिनेश कुमार जैसे एथलेटिक प्रशिक्षक भी हैं, जो राष्ट्रीय विश्वविद्यालय स्तर पर स्वर्ण पदक विजेता के साथ-साथ एनआईएस से एक ग्रेड पास प्रशिक्षक भी हैं। इस तरह के प्रशिक्षकों की सेवाएं प्रदेश के खिलाडि़यों को अगर मिलेंगी, तो भविष्य में अच्छे खिलाड़ी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक लेते दिखेंगे…

भारत में खेल व खिलाड़ी को बढ़ावा देने के लिए सेना, सुरक्षा बल, रेलवे व विभिन्न विभागों एवं भारत सरकार के उपक्रमों ने अपना-अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। राज्य सरकारों के पास भी खेलों को बढ़ावा देने के लिए खेल विभाग के साथ-साथ स्कूल तथा विश्वविद्यालय स्तर पर महाविद्यालयों में शारीरिक शिक्षा के शिक्षक नियुक्त हैं। हिमाचल प्रदेश में स्कूली स्तर तक खेलों के लिए कई मौके हैं। राज्य में स्कूली खेल छात्रावासों के साथ-साथ दो राज्य खेल विभाग व दो भारतीय खेल प्राधिकरण के खेल छात्रावास चल रहे हैं। कनिष्ठ स्तर पर तो यहां खिलाडि़यों के लिए अच्छी प्रशिक्षण सुविधा है, मगर 20 वर्ष के बाद भी अधिकतर खेलों में खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर का सफर पूरा कर पाते हैं। इस समय राज्य में खिलाडि़यों के लिए न तो प्रशिक्षण सुविधा का कोई प्रबंध है और न ही राज्य के विभिन्न विभागों में कार्यरत खिलाडि़यों को विभाग व सरकार प्रोत्साहित करती है। प्रशिक्षण कार्यक्रम लगातार कई वर्ष चलने वाली प्रक्रिया है, तभी खिलाड़ी अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाता है। एशियाई व ओलंपिक खेलों में प्रतिनिधित्व कर पदक प्राप्त करने के लिए कम से कम आठ से दस वर्ष का समय चाहिए होता है।

शिक्षा संस्थान के बाद जब खिलाड़ी नौकरी के लिए किसी विभाग में आ जाता है, तो वह उससे अपना नियमित विभागीय कार्य करवाना चाहते हैं जैसे सभी कर्मचारियों के साथ होता है, मगर खिलाड़ी का प्रशिक्षण कार्यक्रम स्वयं अपने में पूरा का पूरा दैनिक कार्यक्रम है। ऐसे में फिर खेल छोड़ने के सिवाय हिमाचली खिलाड़ी के पास और कोई विकल्प नहीं बचता है। विभिन्न राज्यों के पुलिस विभाग अपने यहां खिलाडि़यों को अच्छा वातावरण दे रहे हैं, ताकि खिलाड़ी आगे चलकर देश का प्रतिनिधित्व करता हुआ देश को गौरव दिला सके। पुलिस के पास हजारों में कर्मचारी व अधिकारी होते हैं, चुनिंदा मुट्ठी भर प्रतिभावान खिलाडि़यों को प्रशिक्षण के लिए मौका दिया जा सकता है। यह सच है कि अस्सी के दशक में जब पंजाब पुलिस ने अपने यहां काफी खिलाडि़यों को भर्ती कर खेल प्रशिक्षण के लिए पूरा वर्ष माकूल वातावरण दिया था, तो उसी दौर में हिमाचल प्रदेश पुलिस ने भी विभिन्न खेलों के लिए लंबी अवधि के प्रशिक्षण शिविर लगाए थे, मगर इन प्रशिक्षण शिविरों का उचित निरीक्षण न होने के कारण खिलाड़ी व प्रशिक्षक बारी-बारी अपने घर भागे रहते थे। इसलिए ये प्रशिक्षण कार्यक्रम कोई भी पदक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तो दूर की बात थी, राष्ट्रीय स्तर पर भी पदक नहीं दिला सका। बाद में इन प्रशिक्षण शिविरों को धीरे-धीरे बंद कर दिया गया। आज हिमाचल पुलिस केवल दो सप्ताह का प्रशिक्षण शिविर लगाती है और वह भी अखिल भारतीय पुलिस खेलों से पहले। ऐसे में फिर कैसे राज्य में खेल ऊपर उठ सकते हैं। खेल आरक्षण के अंतर्गत सैकड़ों खिलाड़ी नौकरी लग रहे हैं, मगर नौकरी के बाद एक भी खिलाड़ी खेल मैदान में नहीं पहुंच रहा है, जबकि अन्य राज्यों व केंद्रीय विभागों में खेल आरक्षण से नौकरी प्राप्त खिलाड़ी कर्मचारी या अधिकारी को कम से कम आगामी पांच वर्षों तक अच्छे खेल परिणाम देने होते हैं। जब राज्य में नौकरी लगने के बाद प्रशिक्षण के लिए समय ही नहीं होगा, तो फिर कैसे खेल होगा और कौन खेल करेगा? हिमाचल पुलिस के कुछ अधिकारी अपने स्तर पर राज्य में खेलों के लिए कुछ करते भी देखे जा सकते हैं।

मंडी में पुलिस के उप अधीक्षक हितेष लखनपाल पिछले वर्ष से मंडी में मैराथन करवाकर राज्य के खिलाडि़यों को दौड़ के लिए प्रेरित कर रहे हैं। पंडोह बटालियन की कमांडेंट अजुम आरा ने विभिन्न खेलों के स्कूली खिलाडि़यों के लिए प्रशिक्षण का प्रबंध करना शुरू किया है, जिससे जहां भविष्य में कुछ अच्छे खिलाड़ी मिलेंगे, वहीं पर अधिकतर किशोर एवं युवाओं को खेल मैदान मिलने से उनके स्वास्थ्य में सुधार होगा तथा वे नशे आदि से भी दूर रहेंगे। इस तरह विभिन्न जिलों में भी पुलिस के उच्च अधिकारी अगर थोड़ी-बहुत रुचि लेते हैं, तो राज्य में खेलों के लिए एक नई पहल होगी। पुलिस के पास विभिन्न खेलों के कई अच्छे खिलाड़ी हैं, उन्हें अच्छे प्रशिक्षण कार्यक्रम की जरूरत है और जो खिलाड़ी खेल छोड़ चुके हैं वे अच्छा प्रशिक्षण कार्यक्रम चला सकते हैं। यह पंजाब पुलिस शुरू भी कर चुकी है। पुलिस विभाग के पास दिनेश कुमार जैसे एथलेटिक प्रशिक्षक भी हैं, जो राष्ट्रीय विश्वविद्यालय स्तर पर स्वर्ण पदक विजेता के साथ-साथ एनआईएस से एक ग्रेड पास प्रशिक्षक भी हैं।

इस तरह के प्रशिक्षकों की सेवाएं प्रदेश के खिलाडि़यों को अगर मिलेंगी, तो भविष्य में अच्छे खिलाड़ी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक लेते सामने दिखेंगे। हां, पुलिस विभाग को अपने प्रशिक्षण कार्यक्रम का निरीक्षण बहुत पैनी नजर से करना होगा, ताकि दोबारा यह कार्यक्रम फेल न हो जाए। आशा करते हैं हिमाचल सरकार हिमाचल प्रदेश में खेल प्रतिभा खोज के बाद प्रशिक्षण कार्यक्रम को सुचारू रूप से लागू कर जहां इस प्रदेश से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी तैयार करेगी, वहीं पर आज के किशारों व युवाओं से स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता व नशे से दूरी कर अधिक से अधिक खेल मैदान की ओर मोड़ेगी।


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