घोषणाओं के फलक से जमीं तक

By: Dec 27th, 2018 12:07 am

पीके खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

समस्या यह है कि मोदी और उनकी टीम के लोग समस्याओं का समाधान ढूंढने के बजाय अपनी असफलताओं का ठीकरा पिछली सरकारों पर फोड़ने के अलावा कुछ नहीं कर रहे हैं। किसान और छोटे व्यापारी हताश हैं, इंस्पेक्टर राज नए सिरे से शुरू हो गया है। हमारे युवा पकौड़ा रोजगार का जुमला नहीं चाहते, उन्हें काम चाहिए, लेकिन तीन राज्य विधानसभा चुनावों की हालिया हार के बावजूद मोदी और उनके मुख्यमंत्री अब भी शहरों और द्वीपों के नाम बदलने, मूर्तियां स्थापित करने को अहमियत दे रहे हैं। उनके मंत्री और अन्य भाजपा नेता अनर्गल बयान दे रहे हैं….

लोग मोदी के नाम पर वोट देते हैं यह मोदी की ताकत है। लोग मोदी के नाम पर वोट देते रहें, इसलिए मोदी को हमेशा उनकी यादों में बसे रहना विवशता हो गई, यह मोदी की कमजोरी है। यह एक विडंबना है कि मोदी की ताकत ही मोदी की कमजोरी का कारण बन गई। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने बहुत से अच्छे कार्य किए, राज्य के विकास के लिए कई योजनाएं चलाईं। वे विकास के प्रतीक बने, लेकिन चुनाव जीतने के लिए उन्होंने बड़ी चतुराई से विकास के अलावा धार्मिक ध्रुवीकरण का भी सहारा लिया। उन्होंने घृणा की एक अभूतपूर्व लहर पैदा की, जिसमें राज्य के अधिकांश हिंदू बह गए। धार्मिक धु्रवीकरण का उनका मॉडल बहुत सफल रहा। सन् 2012 में गुजरात विधानसभा का चुनाव तीसरी बार जीतने के बाद वे भाजपा कार्यकर्ताओं के अकेले हीरो बन गए। मोदी का जलवा ऐसा था कि लालकृष्ण आडवाणी सहित भाजपा के शेष वरिष्ठ नेता पृष्ठभूमि में चले गए। मोदी प्रधानमंत्री तो बन गए, परंतु राज्यों में भाजपा की सरकारें न होने तथा राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण उनकी राह में अड़चनें आना स्वाभाविक था। मोदी एक जिद्दी, कर्मठ व्यक्ति हैं और उन्होंने ठान लिया कि वे राज्यों में भी भाजपा की सरकार बनवाएंगे और राज्यसभा में भी अपना बहुमत सुनिश्चित करेंगे। इसके लिए पंचमुखी रणनीति अपनाई गई। पहली रणनीति थी विकास की बात करना।

इसके लिए मोदी ने थोक के भाव योजनाओं की घोषणा करनी शुरू कर दी। इससे मोदी का जलवा और भी बढ़ा, वे विकास पुरुष बन गए। दूसरी रणनीति थी विभिन्न नौकरशाहों तथा विदेशी नेताओं द्वारा मोदी की झूठी-सच्ची प्रशंसा की कहानियां फैलाना। इस रणनीति ने उन्हें समर्थकों की आंख का तारा बना दिया। तीसरी रणनीति थी विपक्षी नेताओं को बुद्धिहीन, भ्रष्ट, देशद्रोही सिद्ध करना। इसके लिए एक बड़ी सेना तैयार की गई जो विपक्षी नेताओं के बारे में अपमानजनक चुटकुले तैयार करके सोशल मीडिया के माध्यम से आम जनता तक पहुंचाने लगे।

विपक्ष के सभी दलों के सभी बड़े नेता इस रणनीति का शिकार हुए। इससे धारणा यह बनी कि मोदी का विकल्प है ही नहीं, किसी और को वोट कैसे दें? मोदी की जय-जयकार कुछ और बढ़ी। चौथी रणनीति थी नागरिकों को शर्मिंदा करना। मसलन, सोशल मीडिया पर ऐसे संदेशों की बाढ़ आ गई कि दीवार पर पेशाब करने वाला व्यक्ति मोदी से सवाल पूछ रहा है, मुफ्तखोरी करने वाला व्यक्ति मोदी से सवाल पूछ रहा है। पांचवीं रणनीति थी उन्हें हिंदू हितैषी के रूप में स्थापित करने की। इसके लिए कुछ विशिष्ट मुस्लिम नेताओं को जानबूझ कर उभारा गया और हिंदुओं को उनका डर दिखाया गया। परिणामस्वरूप खुद को उपेक्षित मान रहे हिंदुओं की बड़ी संख्या मोदी के साथ जुड़ गई। मोदी चुनाव पर चुनाव जीतने लगे, अहंकार बढ़ने लगा और मोदी और शाह की जोड़ी ने स्वयं को अजेय मान लिया। अजेय होने की खुशफहमी में मोदी न केवल अति करने लगे, बल्कि सीमाएं भी लांघने लगे। उनकी बहुत योजनाएं सिरे नहीं चढ़ीं, तो विकास का जलवा घटने लगा। नोटबंदी और जीएसटी की विफलता के कारण कई और चुनौतियां मिलीं। ऐसे में मोदी धार्मिक ध्रुवीकरण पर ज्यादा से ज्यादा जोर देने लगे। हर विपक्षी को नाकाबिल बताना, पाकिस्तानी बताना, देशद्रोही बताना एक सीमा के बाद बेअसर हो गया। हमेशा चुनावी मोड़ में रहने की ललक में मोदी ने कई अवांछित काम किए। नौकरशाही की सीमाओं को समझे बिना ताबड़तोड़ घोषणाएं कीं, ऐसी घोषणाएं कर डालीं, जिनको अमलीजामा पहनाने के लिए कोई होमवर्क नहीं किया गया था, उनकी प्रगति पर नजर रखने का कोई जरिया नहीं था, उन घोषणाओं की पूर्ति के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध नहीं करवाए गए और अब खुद मोदी को भी पता नहीं है कि उन घोषणाओं की स्थिति क्या है? ‘न खाउंगा, न खाने दूंगा’ का नारा लगाने वाले प्रधानमंत्री ने जब व्यापम जैसे जघन्य घोटाले पर चुप्पी साध ली और जयशाह की कंपनी के व्यापक विस्तार पर मौन धारण कर लिया, तो फिर राजस्थान अथवा उत्तर प्रदेश में चल रहे घोटालों पर तो उनसे किसी कार्रवाई की उम्मीद करना ही बेकार था। उनके अधिकतर मंत्री अयोग्य निकले। गोरक्षा और बीफ के नाम पर तो ऊधम मचा ही, लव जिहाद ने भी कम शोर नहीं मचाया और एंटी-रोमियो स्क्वैड के नाम पर युवाओं को बेइज्जत किया गया।

मोदी की आईटी टीम यहीं पर नहीं थमी। पहले तो झूठ-सच को मिलाकर मोदी की प्रशंसा में ह्वाट्सऐप को भर दिया, फिर मोदी को हिंदुओं का मसीहा बताकर समर्थन मांगने की मुहिम शुरू हुई, लेकिन इस मुहिम में नागरिकों को शर्मिंदा करने, उन्हें बेईमान बताने और मोदी का समर्थन न करने वालों को देशद्रोही करार देने का जो सिलसिला शुरू हुआ,  उसका अंत आज तक नहीं हुआ है। समस्या यह है कि मोदी और उनकी टीम के लोग समस्याओं का समाधान ढूंढने के बजाय अपनी असफलताओं का ठीकरा पिछली सरकारों पर फोड़ने के अलावा कुछ नहीं कर रहे हैं। किसान और छोटे व्यापारी हताश हैं, इंस्पेक्टर राज नए सिरे से शुरू हो गया है। हमारे युवा पकौड़ा रोजगार का जुमला नहीं चाहते, उन्हें काम चाहिए, लेकिन तीन राज्य विधानसभा चुनावों की हालिया हार के बावजूद मोदी और उनके मुख्यमंत्री अब भी शहरों और द्वीपों के नाम बदलने, मूर्तियां स्थापित करने को अहमियत दे रहे हैं। उनके मंत्री और अन्य भाजपा नेता अनर्गल बयान दे रहे हैं। इससे न केवल जनता में निराशा है, बल्कि मोदी खुद ही सिद्ध कर रहे हैं कि वे सिर्फ प्रचार मंत्री हैं, जुमलेबाज हैं।

कांग्रेस के पास न धन था, न लोग थे, न संगठन था। इसके बावजूद मतदाताओं ने कांग्रेस को जिताया है, तो इसका सीधा सा अर्थ यह है कि लोग प्रधानमंत्री मोदी के तौर-तरीकों से बेहद नाराज हैं। मोदी की रैलियों की भीड़ फीकी थी, मतदाता राहुल गांधी को सुन रहे थे। छत्तीसगढ़ में मायावती और जोगी के गठबंधन के बावजूद जनता ने कांग्रेस का साथ दिया। मतदाताओं ने स्वयं सक्रिय होकर कांग्रेस के जनजातीय उम्मीदवारों को धन दिया, उनका प्रचार किया और उन्हें जिताया। मोदी को कांग्रेस ने नहीं हराया, हरा ही नहीं सकती थी। मोदी को तो खुद मोदी ने हराया है। मोदी इससे सबक लेते हैं या नहीं, यह मोदी की मर्जी है।

 ईमेलः indiatotal.features@gmail.


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